फोटो गैलरी

Hindi Newsआलवार संत

आलवार संत

जब-जब भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए खतरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक संतों की जमात ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर, उसकी रक्षा की। दक्षिण के आलवार संतों की भी यही भूमिका रही है।...

आलवार संत
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Oct 2009 12:41 AM
ऐप पर पढ़ें

जब-जब भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए खतरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक संतों की जमात ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर, उसकी रक्षा की। दक्षिण के आलवार संतों की भी यही भूमिका रही है। ‘आलवार’ का अर्थ है ‘जिसने अध्यात्म ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाया हो।’ आलवार संत गीता की सजीव मूर्ति थे। वे उपनिषदों के उपदेश के जीते जागते नमूने थे। 

आलवार संतों की संख्या बारह मानी गई है। उन्होंने भगवान नारायण, राम, कृष्ण आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हजारों पद रचे। इन पदों को सुन-गाकर आज भी लोग भक्ति रस में डुबकी लगाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर रहे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत थे कि न तो किसी को दुख पहुंचाते न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते।
   
उन्होंने स्वयं कभी नहीं चाहा, न ही इसका प्रयास किया कि लोग उनके पदों को जानें। ये आलवार संत भिन्न-भिन्न जातियों में पैदा हुए थे, परंतु संत होने के कारण उन सबका समान रूप से आदर है। क्योंकि इन्हीं के कथनानुसार संतों का एक अपना ही कुटुम्ब होता है, जो सदा भगवान में स्थित रहकर उन्हीं के नामों का कीर्तन करता रहता है। वास्तव में नीच वही है, जो भगवान नारायण की प्रेम सहित पूजा नहीं करते।

आलवार संत स्वामी, पिता, सुहृद, प्रियतम तथा पुत्र के रूप में नारायण को ही भजते थे। और नारायण से ही प्रेम करते थे। ‘‘मेरा हृदय स्वप्न में भी उनका साथ नहीं छोड़ता है। जब तक मैं अपने स्वरूप से अनभिज्ञ था, तब तक ‘मैं’ और ‘मेरे’ के भाव को ही पुष्ट करता रहता था। परंतु अब मैं देखता हूं कि जो तुम हो वही मैं हूं, मेरा सब कुछ तुम्हारा है, अत: हे प्रभो! मेरे चित्त को डुलाओ नहीं, उसे सदा अपने पादपद्मों से दृढ़तापूर्वक चिपकाए रखो।’’ आलवार संतों की वाणी तथा भक्ति इसी प्रकार की थी।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें