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हंगामा है क्यूं बरपा, सिफारिश ही तो की है

खाली इंसान जनसंपर्क नहीं करेगा, तो और क्या करेगा? आखिर छुट्टी वाले दिन ही हम दोस्त-यारों से फुरसत से बात कर पाते हैं न। फोन पर अगर कोई पूछता है, यार बिजी तो नहीं हो और हम कहते हैं बिल्कुल नहीं और...

हंगामा है क्यूं बरपा, सिफारिश ही तो की है
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 18 Jun 2015 11:52 PM
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खाली इंसान जनसंपर्क नहीं करेगा, तो और क्या करेगा? आखिर छुट्टी वाले दिन ही हम दोस्त-यारों से फुरसत से बात कर पाते हैं न। फोन पर अगर कोई पूछता है, यार बिजी तो नहीं हो और हम कहते हैं बिल्कुल नहीं और बताओ, बस यही विवाद की जड़ है। सुषमाजी इतनी खाली थीं कि ललित मोदी को कह पाईं, कुछ नहीं और बताओ क्या चल रहा है, तो इसका कसूरवार कौन है? अगर विदेश मंत्री बनाने के बाद मोदीजी उन्हें भी कहीं साथ ले गए होते या जाने दिया होता, तो शायद उनके पास ललित मोदी का फोन पिक करने की फुरसत ही नहीं होती।

हम भारतीय भावुक लोग हैं। हमें बस में कोई सीट भी दे दे, तो हम उसके यहां लड़की ब्याहने को तैयार हो जाते हैं। फिर अगर कोई आदमी पति का क्लाइंट हो, हमारे बच्चे को उससे बड़ा ब्रेक मिला हो, तो उसके लिए इतनी मानवता तो दिखाई ही जा सकती है। मां-बाप के जरा-से प्रयास से बच्चों का करियर सेट होता है, तो इसमें क्या बुराई है? आपको क्या लगता है कि राहुल गांधी क्या यूपीएससी की परीक्षा पास करके कांग्रेस उपाध्यक्ष बने हैं? या उदय चोपड़ा को इंडियाज गॉट टैलेंट जीतने के बाद धूम  सीरीज की फिल्में मिली हैं?

जरा-सी सिफारिश से भतीजे का एडमिशन हो गया, तो किसी का क्या चला गया? दरअसल इस सबमें उनकी ही महानता छिपी है। परिवारिक मित्र की मदद करके, बेटी का करियर सेट करवा, पति के पुराने क्लाइंट का लिहाज रख और भतीजे की मदद करके उन्होंने उन तमाम लोगों को करारा जवाब दिया है, जो लगातार यह कहते रहते हैं कि कामकाजी महिलाएं अपने परिवार पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पातीं।

मंत्री महोदय से मेरी बस एक गुजारिश है। वह खुद वकील भी हैं। आदमी जिस पेशे से जुड़ा होता है, उसकी व्यर्थता या उसकी खामियां उससे ज्यादा और कोई नहीं जानता। वह सरकार में भी हैं। मैं बस यह चाहता हूं कि तमाम नियम-कायदे, कानूनों, तथ्यों के बीच वह ‘मानवीय आधार’ को भी न्याय प्रक्रिया में कहीं जगह दिलवा दें, ताकि भविष्य में उनकी तरह बाकी लोगों को भी ऐसे परोपकार के मौके मिलते रहें।

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