कट्टरपंथियों से सीखो सह-अस्तित्व
कंपिटीशन के इस दौर में, जहां कंपनियां प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने के लिए उसके खिलाफ नकारात्मक प्रचार से लेकर उसे बाजार से बाहर करने का कोई भी हथकंडा अपनाने को तैयार रहती हैं, ऐसे में कट्टरपंथ के धंधे...
कंपिटीशन के इस दौर में, जहां कंपनियां प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने के लिए उसके खिलाफ नकारात्मक प्रचार से लेकर उसे बाजार से बाहर करने का कोई भी हथकंडा अपनाने को तैयार रहती हैं, ऐसे में कट्टरपंथ के धंधे में सक्रिय लोग पूरी दुनिया के लिए मिसाल हैं। सह-अस्तित्व का ऐसा उदाहरण आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। यह ऐसा धंधा है, जहां हर बार कुछ कहने और करने पर आपको गालियां पड़ती हैं, बावजूद इसके आप इसलिए सक्रिय रहते हैं, ताकि आपके प्रतिद्वंद्वी के वजूद को जायज ठहराया जा सके।
एक पक्ष कोई आंदोलन छेड़कर आलोचना का शिकार हो रहा होता है, तभी उसका विपक्षी कहीं कोई धमाका कर देता है। अब तक इस पक्ष को लानत दे रहे लोग, अगले ही पल दूसरे को गरियाने लगते हैं। आप घटना को मानवीय इतिहास की सबसे खौफनाक घटना बताने के तीसरे ही मिनट अपने लोगों का बचाव करने लगते हैं। मैं सोचता हूं कि अगर कोई इंसान बेवक्त सड़क हादसे में गुजर जाए, तो आप उसके परिजनों को अपने को खोने के लिए ढाढस बधाएंगे या फिर सड़क हादसों में मरने वालों का आंकड़ा पेश कर उसकी विवेचना करने लगेंगे?
आपको ऐसा कोई धंधा नहीं दिखेगा, जहां दुश्मन की सफलता आपको इतना उत्साहित कर देती है। ऐसा कोई और पेशा नहीं मिलेगा, जहां लोग अपनी उपलब्धियों का क्रेडिट नहीं लेते और अगर कोई ले ले, जैसे पेशावर मामले में तालिबान ने लिया, तो हाफिज सईद जैसे लोग कहने लगते हैं कि नई, ये सब टीम इंडिया का किया-धरा है। यही संस्कारवान की निशानी है। अपनी उपलब्धियों का श्रेय हमेशा दूसरों को दें, ताकि आपमें ‘मैं’ न आए।
कहते हैं कि कट्टरपंथी के पास अपने अस्तित्व को जायज ठहराने के लिए कोई तर्क नहीं होता। सही बात है, इसीलिए ये लोग एक-दूसरे की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए तर्क जुटाने में मदद करते हैं। तुम ऐसा क्यों सोचते हो? क्योंकि वह ऐसा सोचता है। तुम ऐसा क्यों कर रहे? क्योंकि वह ऐसा कर चुका है। कितनी सुंदर स्थिति है। जो लोग एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हैं, वही एक-दूजे की वजह से बचे हुए हैं।