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खाली वक्त की पहेली

दोस्त का फोन था। वह उखड़े बैठे थे, सो अपना दुखड़ा रोने लगे। ‘सुबह से बोर हो रहा हूं यार। यह खाली वक्त मुङो काटने को दौड़ता है।’ खाली वक्त की अपनी अहमियत होती है। वह हमें कम-से-कम काटे...

खाली वक्त की पहेली
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 31 Oct 2014 08:30 PM
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दोस्त का फोन था। वह उखड़े बैठे थे, सो अपना दुखड़ा रोने लगे। ‘सुबह से बोर हो रहा हूं यार। यह खाली वक्त मुङो काटने को दौड़ता है।’

खाली वक्त की अपनी अहमियत होती है। वह हमें कम-से-कम काटे तो नहीं। डॉ. मिहाई चिकचेनमिहाई मानते हैं, ‘अपने खाली वक्त में काम करते हुए हम ज्यादा खुश होते हैं। उसका बेहतर इस्तेमाल हमारी जिंदगी बदल सकता है।’ वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं और क्लेयरमॉन्ट यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं। उनकी कई किताबें हैं, उनमें सबसे चर्चित है, फ्लो: द साइकोलॉजी ऑफ ऑप्टिमल एक्सपीरियंस।

दरअसल, खाली वक्त में हम पर कोई दबाव नहीं होता। उस वक्त हम जो भी करते हैं, उसमें हमारी मरजी शामिल होती है। यों हम जो भी काम करते हैं, उसमें मरजी तो हमारी होती ही है। आखिर हम जब कोई काम करने को तैयार होते हैं, तो बिना मरजी के वह नहीं हो सकता। लेकिन उस मरजी और इस मरजी में फर्क होता है। मामूली नहीं, बड़ा भारी फर्क होता है। यह फर्क इसलिए बड़ा हो जाता है, क्योंकि एक मामले में हमारा तन हमारे मन को खींचता है। दूसरे मामले में हमारा मन अपने तन को बहाए ले जाता है। अब जब तन खींचेगा मन को, तो मजबूरी आएगी ही। जब मन बहा ले जाता है तन को, तो बात ही कुछ और होती है। मन और तन के बेहतर संतुलन से ही कुछ नया होता है। 

हम जब काम की तरह काम को करते हैं, तो तन आगे हो जाता है। मन पीछे रह जाता है। ढर्राई काम करते हुए तन हावी रहता है। खाली वक्त में होता यह है कि हमारे मन पर कोई बोझ नहीं होता। और जब कोई बोझ नहीं होता, तो फिर मन एक बहाव में होता है। इसीलिए हमारे कुछ रचने के लिए वह एक बेहतर माहौल होता है। हमें बस उसी माहौल का बेहतर इस्तेमाल कर लेना है। राजीव कटारा

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