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डर और संघर्ष

सफलता और मुश्किलों के बीच अक्सर छत्तीस का आंकड़ा बैठा रहता है। लेकिन बिना मुश्किलों के हम सफलता के दरवाजे भी तो नहीं खटखटा सकते। जीवन में सब कुछ आसानी से मिलता होता, तो मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती।...

डर और संघर्ष
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 31 Oct 2014 12:56 AM
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सफलता और मुश्किलों के बीच अक्सर छत्तीस का आंकड़ा बैठा रहता है। लेकिन बिना मुश्किलों के हम सफलता के दरवाजे भी तो नहीं खटखटा सकते। जीवन में सब कुछ आसानी से मिलता होता, तो मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती। हम मांगते तभी हैं, जब हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है, संघर्ष की ताकत कमजोर पड़ जाती है और गिरने के भय से ग्रस्त हो जाते हैं। अनुभव बताते हैं कि मुश्किलें नहीं होतीं, तो आगे का रास्ता खोजने में भी मुश्किलें आ जातीं। रॉबर्ट एच शुलर तो इससे भी आगे की बात कहते हैं- मुश्किलें हमेशा हारती हैं, संघर्ष करने वाले हमेशा जीतते हैं। यानी मुश्किलों और सफलता के बीच संघर्ष मौजूद रहता है, जो हमें उठ खडे़ होने के लिए तैयार करता है।
यह महत्व नहीं रखता कि कोई कितनी बार गिरता है, महत्व इस बात का होता है कि वह कितनी बार ऊपर उठ सकता है। लेकिन हम अस्थायी विफलता से इतने परेशान हो जाते हैं कि इससे ऊपर उठने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। एक बार टॉमस अल्वा एडिसन के दो सहयोगियों ने निराशा भरे स्वर में कहा कि हम लोग अभी तक कुल सात सौ प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन असफलता ही मिली है। एडिसन का जवाब था- हम असफल नहीं हुए हैं, बल्कि हम इस विषय मे बाकियों के मुकाबले सात सौ गुना अधिक जानते हैं। वैसे भी हम सफलता के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। यही सकारात्मक सोच हमें आगे ले जाती है। यह खुद के प्रति आस्था का भाव पैदा करती है और मन को ऊहापोह से मुक्त भी।
शुलर का सुझाव है कि अगर आप डर रहे हैं, तो आपको सिर्फ एक डर का इलाज करना है। वह है असफलता का डर। लेकिन इसके लिए काम शुरू करना होगा और संघर्ष को अपना प्रिय साथी बनाना होगा। भूत और भविष्य को किनारे रखकर रोज एक नई जिंदगी का स्वाद चखना होगा।

 

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