ज्ञान-ध्यान को बांट रहे हैं, पहन के वे अज्ञान
गांधी जी ने कहा था कि खादी वस्त्र नहीं, विचार है। जिन लोगों ने खादी को वस्त्र मान कर पहना या विचार मान कर पहना, दोनों ही कम से कम अच्छी तरह ढंके तो रहे। क्योंकि खादी वस्त्र भी थी, विचार भी थी। खादी...
गांधी जी ने कहा था कि खादी वस्त्र नहीं, विचार है। जिन लोगों ने खादी को वस्त्र मान कर पहना या विचार मान कर पहना, दोनों ही कम से कम अच्छी तरह ढंके तो रहे। क्योंकि खादी वस्त्र भी थी, विचार भी थी। खादी ने वस्त्र और विचार की तरह काफी दिनों तक काफी लोगों की लाज ढंकने का काम किया। बाद में कुछ लोगों की लाज इतनी बड़ी हो गई कि किसी तरह से ढंकने में ही नहीं आई, तब की बात और है। तब खादी तो क्या, कोई भी वस्त्र या विचार ऐसा नहीं था, जो उनकी लाज ढंक सके और उन्हें भी ढंकने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि बेशर्मी के फायदे ज्यादा थे। इसमें ‘खादी’ का क्या दोष?
ज्यादा बड़ी समस्या उनके साथ हुई, जो किसी चीज को वस्त्र या विचार मानकर पहनते रहे, और उन्हें पता ही न चला कि जो वे पहन रहे हैं, वह न वस्त्र है, न विचार। उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि अगर व्यक्ति के पास अज्ञान या बेशर्मी है, तो उसे किसी और चीज की जरूरत नहीं होती। अगर अज्ञान और बेशर्मी दोनों ही हों, तो फिर क्या कहने।
इससे यह हुआ कि समाज में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ गई, जो न वस्त्र, न विचार पहने थे, पर दूसरे लोगों को सुसंस्कृत लज्जवान होने का उपदेश देते थे, बल्कि धमकी देते थे। अज्ञान के साथ एक चीज मुफ्त मिलती है, वह है आत्मविश्वास। अपने देश में ऐसे लोगों की भरमार है, जो अब तक किसी चीज को विचार मानकर पहन ही नहीं रहे, ओढ़-बिछा भी रहे हैं और जबकि असलियत में उस चीज का कहीं अस्तित्व ही नहीं है।
ऐसे ही लोग हैं, जो महिलाओं और लड़कियों को उपदेश देते हैं कि उन्हें सड़क पर नीची नजर करके चलना चाहिए, मोबाइल पर बात नहीं करनी चाहिए, जहां तक हो सके अनपढ़ रहना चाहिए, दूसरे धर्म के पुरुषों से सावधान रहना चाहिए, यह पहनना चाहिए, वह नहीं पहनना चाहिए., वगैरह-वगैरह। क्या इन लोगों को कोई बता सकता है कि भाई, पहले तुम खुद तो कुछ पहनकर बाहर निकलो। तुमने जो पहना है या जो पहनने का भ्रम तुम पाले हो, वह न तो वस्त्र है, न विचार है।