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आखिर क्यों अलग है यह स्वतंत्रता दिवस

देश आज अपनी आजादी का 68वां दिवस मना रहा है। इस बार का स्वाधीनता दिवस कुछ अलग है और इसके पीछे  पांच बदली हुई परिस्थितियां हैं। पहली तो यही कि पिछले दस वर्षो से लाल किले के प्राचीर से कांग्रेसी...

आखिर क्यों अलग है यह स्वतंत्रता दिवस
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 14 Aug 2014 10:03 PM
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देश आज अपनी आजादी का 68वां दिवस मना रहा है। इस बार का स्वाधीनता दिवस कुछ अलग है और इसके पीछे  पांच बदली हुई परिस्थितियां हैं। पहली तो यही कि पिछले दस वर्षो से लाल किले के प्राचीर से कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राष्ट्र को संबोधित करते आ रहे थे। इस बार वह क्रम टूट रहा है, क्योंकि इस ऐतिहासिक प्राचीर से आज नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करेंगे।

वही नरेंद्र मोदी, जिन्होंने आलोचकों के साथ समर्थकों को भी चौंकाते हुए इस मंच पर पहुंचने का गौरव हासिल किया है। उन्हें यह कामयाबी कांग्रेस के भारी नुकसान के कारण मिला है, जो महज 44 सीटों पर सिमटकर रह गई, बल्कि लोकसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत के लायक नंबर भी नहीं पा सकी। कांग्रेस की यह अपमानजनक स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही है, जैसी 2004 में भाजपा की थी, जो चुनाव हार चुकी थी, मगर उसे स्वीकारने को तैयार नहीं थी।

आज कांग्रेस की भी कुछ वही हालत है। जिस समय उसे आत्मचिंतन की जरूरत है, वह अपना नेतृत्व करने वाले परिवार के बचाव में जुटी है। एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर इसके पास देश के राजनीतिक विपक्ष की भूमिका निभाने के साधन हैं। मगर इस समय वह खीझ की मन:स्थिति में है। 1984 के बाद से आज तक विपक्ष को इतना असहाय कभी नहीं देखा गया।

दूसरी, यह शायद पहली सरकार है, जिससे लोगों ने बेशुमार उम्मीदें पाल ली हैं। नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी फतह लोगों की इन्हीं उम्मीदों को अपने सांचे में ढालकर हासिल की, उन्होंने नौजवानों को सपने देखने के लिए प्रेरित किया। हिन्दुस्तान की 65 फीसदी आबादी 35 साल के कम उम्र के लोगों की है। लेकिन सपने बेचने की भी एक कीमत होती है। जिन सरकारों ने अपने वायदे पूरे नहीं किए, लोगों ने उन्हें माफ नहीं किया। गौर कीजिए, ये अपेक्षाएं एक जैसी नहीं हैं और यह जिन्न दिन-ब-दिन बढम्ता ही है।

तीसरी, इस सरकार के शुरुआती 75 दिनों ने यह दर्शाया है कि यह लोगों को अधिकारों से लैस करने से आगे उनके सशक्तीकरण की तरफ बढ़ रही है। लेकिन इसमें काफी सतर्कता की जरूरत होगी। चौथी, जिस तत्परता से मोदी सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के नेता उमड़े, उससे दक्षिण एशिया में शांति की चाहत को बल मिला है।

सिर्फ भारत व उसके पड़ोसी मुल्क नहीं, पूरी दुनिया आर्थिक असमानता व बेरोजगारी की समस्या से जूझ रही है। अवाम को युद्धोन्मादी माहौल बनाकर अधिक दिनों तक झांसा नहीं जा सकता। पाचंवी, डब्ल्यूटीओ में व्यापार को सुगम बनाने से संबंधित करार के मामले में हम ऊहापोह में फंसे रहे हैं। पर जैसा कि मोदी ने भी भाजपा के राष्ट्रीय सम्मेलन में पिछले दिनों कहा है, दुनिया एक बहुमत सरकार की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। जिस तरह से मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान अपनी छाप छोड़ी, आज मौका है कि वह इसे अपने नाम कर लें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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