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महाशक्ति बनने के लिए इतना काफी नहीं

चमत्कार की आशा तो थी, लेकिन रक्षा मद में हुई वृद्धि को देखकर यही कहा जा सकता है कि बजट में जो बढ़ाया गया, वह बहुत नहीं, बस ठीक-ठाक है। यूपीए-दो सरकार ने रक्षा क्षेत्र के लिए अंतरिम बजट  में...

महाशक्ति बनने के लिए इतना काफी नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 10 Jul 2014 09:06 PM
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चमत्कार की आशा तो थी, लेकिन रक्षा मद में हुई वृद्धि को देखकर यही कहा जा सकता है कि बजट में जो बढ़ाया गया, वह बहुत नहीं, बस ठीक-ठाक है। यूपीए-दो सरकार ने रक्षा क्षेत्र के लिए अंतरिम बजट  में 2,24,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जिसमें 5,000 करोड़ की अतिरिक्त वृद्धि की गई और अब यह रकम 2,29,000 करोड़ रुपये हो गई। हालांकि, पिछले वित्तीय सत्र 2013-14 के कुल रक्षा आवंटन 2.04 लाख करोड़ रुपये से यह करीब दस प्रतिशत अधिक है, जो सुकूनदेह है। मगर इस वित्तीय साल के अभी आठ महीने बाकी हैं और मालूम होता है कि यह बढ़ोतरी सिर्फ कैपिटल प्रोक्योरमेंट के लिए हुई है, रेवेन्यू खर्चे के लिए नहीं। ऐसे में, जब वायुसेना के लिए  लड़ाकू विमानों की खरीदारी का सौदा अधर में है, कई आधुनिक हथियारों की खरीद बाकी है और हमें एक सैन्य महाशक्ति के तौर पर उभरना है, तब यह रकम कम ही पड़ेगी। फिर वेतन और विभिन्न ऑपरेशन संबंधी खर्चो में बढ़ोतरी के कारण बजट का बहुत बड़ा हिस्सा इस मद में चला जाता है। अंतरिम बजट में 89,587.95 करोड़ रुपये कैपिटल प्रोक्योरमेंट के लिए तय किया गया और 134,412.05 करोड़ रुपये रेवेन्यू व्यय के लिए। लेकिन बाद में 8,000 करोड़ रुपये कैपिटल से रेवेन्यू में डाल दिए गए। अब उसी कैपिटल मद में 5,000 करोड़ रुपये डालकर भरपायी की गई है। हथियार खरीद और रक्षा क्षेत्र को आधुनिक बनाने की मुहिम में 94,588 करोड़ रुपये आवंटित हैं। हां, अच्छा यह है कि वन रैंक, वन पेंशन स्कीम के लिए अलग से एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

बजट की अच्छी बात यह रही कि रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि 26 फीसदी से 49 फीसदी कर दी गई है। इससे भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम के रास्ते तेज होंगे। विदेशी कंपनियां भारतीय रक्षा उद्योग की तरफ ज्यादा आकर्षित होंगी। इसलिए वित्त मंत्री का यह फैसला सराहनीय है और इसका असर निकट भविष्य में दिखने लगेगा। किंतु इस 49 फीसदी को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है, इसलिए इसके पूरे ब्योरे का इंतजार है। इसमें ‘ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी’ को शामिल नहीं किया गया है। औद्योगिक प्रोत्साहन और नीति विभाग (डीआईपीपी) ने रक्षा क्षेत्र में 74 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वकालत की थी, क्योंकि इससे कंपनियां टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर पाएंगी।

ऐसे में, कुल रक्षा आवंटन पर सरसरी निगाह डालें, तो लगता है कि शुरुआत अच्छी हुई है, क्योंकि करीब दस फीसदी की बढ़ोतरी के अलावा वन रैंक, वन पेंशन स्कीम और युद्ध स्मारक के लिए रुपये आवंटित हुए हैं। आने वाले समय में अपने प्रयासों से ही यह सरकार साफ कर पाएगी कि वह सैन्य आधुनिकीकरण और एक सैन्य महाशक्ति बनने की दिशा में प्रतिबद्ध है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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