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काम को निपटाने के लिए शॉर्टकट का तरीका हम जरूर अपनाते हैं। इसमें समस्या भी नहीं है। समस्या तब है, जब यह हमारी आदत ही बन जाए और हमारे नाम के साथ जुगाड़ शब्द टैग हो जाए। आखिर क्यों हम अपनाते हैं...
काम को निपटाने के लिए शॉर्टकट का तरीका हम जरूर अपनाते हैं। इसमें समस्या भी नहीं है। समस्या तब है, जब यह हमारी आदत ही बन जाए और हमारे नाम के साथ जुगाड़ शब्द टैग हो जाए। आखिर क्यों हम अपनाते हैं शॉर्टकट?
द पावर ऑफ सबकॉन्शस माइंड के लेखक और मनोविश्लेषक डॉक्टर जोसेफ मर्फी कहते हैं कि आज इंस्टेंट गेट्रिफिकेशन, यानी तुरंत इच्छापूर्ति की भावना बलवती हो गई है। लोग जो भी हासिल करना चाहते हैं, आनन-फानन में चाहते हैं। उनके पास कोई दीर्घकालिक यानी लॉन्ग टर्म स्ट्रैटजी नहीं होती। वे सब कुछ शार्ट टर्म में हासिल करना चाहते हैं। नतीजा यह होता है कि या तो आप गलत रास्ते अपनाते हैं या काम को सही तरीके से नहीं करते हैं।
साध्य और साधन, दोनों में तारतम्य नहीं हो पाता। हमारा व्यवहार गांधीजी की उस बात से असहमति जताता प्रतीत होता है, जिसमें उन्होंने साध्य के साथ-साथ साधन को भी पवित्र माना। तो सवाल यह है कि क्या जुगाडम् होना या शॉर्टकट अपनाना गलत है? नहीं, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपके तरीके गलत न हों। यह आपकी नेटवर्किंग कला और मामूली-से-मामूली दिखने वाली चीजों का बेहतरीन इस्तेमाल तक सीमित हो। साथ ही, जरूरी यह है कि यह आपके जूझने की क्षमता में कमी लाने वाली न हो।
दरअसल, कई लोग इतने शॉर्टकट तरीके वाले हो जाते हैं कि उनमें जूझने की ताकत कम हो जाती है। मानसिक अवसाद एक महामारी के तौर पर फैली है, तो इसलिए कि हम जूझने से चूक रहे हैं। क्रिकेटर और कोच जॉन बुकानन ने एक बार सौरव गांगुली के बारे में कहा था कि उनकी तकनीक, कौशल को एक तरफ धकेलिए, बस यह देखिए कि वह कितने जुझारू हैं, और यही बात उन्हें खास बनाने के लिए काफी है। इसमें कोई दोराय नहीं कि वह संस्कृति उतना ही ज्यादा टिकाऊ और पल्लवित-पुष्पित होती है, जितनी अधिक संख्या में जुझारू लोग उससे जुड़े होते हैं।