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क्या वाकई मोदी की लहर है

यह इस लोकसभा चुनाव के बहुचर्चित सवालों में से एक है। लेकिन इस सवाल का कोई सीधा और स्पष्ट जवाब नहीं हो सकता। पूरे देश में पूछा जा रहा है कि क्या वाकई नरेंद्र मोदी की कोई लहर चल रही है? लेकिन यह भी साफ...

क्या वाकई मोदी की लहर है
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 16 Apr 2014 10:35 PM
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यह इस लोकसभा चुनाव के बहुचर्चित सवालों में से एक है। लेकिन इस सवाल का कोई सीधा और स्पष्ट जवाब नहीं हो सकता। पूरे देश में पूछा जा रहा है कि क्या वाकई नरेंद्र मोदी की कोई लहर चल रही है? लेकिन यह भी साफ है कि नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द केंद्रित आक्रामक अभियान देश के हर कोने में एक समान मोदी लहर पैदा करने में नाकाम है। हालांकि, कुछ राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के मतदाता प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर वोट करते दिख रहे हैं, लेकिन अन्य राज्यों में मतदाता अब भी पार्टी को ध्यान में रखते हुए वोट देने का फैसला कर रहे हैं। भाजपा के ही ऐसे मतदाता भी हैं, जिन्होंने संकेत दिया है कि पार्टी द्वारा उतारे गए स्थानीय उम्मीदवार ही उनकी पसंद हैं। यह सच है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने में सफल रही है। लेकिन यह साफ दिख रहा है कि पार्टी वहां लोकसभा की सीटें जीतने से अब भी दूर है। हां, इस मामले में कर्नाटक एक अपवाद हो सकता है। इसी तरह, राष्ट्रीय स्तर पर और उत्तर भारत में मोदी का करिश्मा शायद उतना काम नहीं कर रहा, जितना कि संप्रग सरकार से असंतोष का असर दिख रहा है। इसी असंतोष की वजह से भाजपा को चुनाव के मैदान में अन्य सियासी पार्टियों से बढ़त लेने में मदद मिल रही है।

यह तो रहा पूरे देश का मिजाज, लेकिन विभिन्न राज्यों से भी अलग-अलग रुझान मिल रहे हैं। नरेंद्र मोदी की अपील भाजपा को उन प्रांतों में वोट खींचने में अच्छी मदद कर रही है, जहां उसका आधार अपेक्षाकृत छोटा है या उसका स्थानीय पार्टियों से गठजोड़ है। यह अपील उन राज्यों में भी भाजपा की मदद कर रही है, जहां यह पार्टी बीते वर्षो में अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन में थी। इन दोनों रुझानों के उदाहरण हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और झारखंड। झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडीशा और दिल्ली में ज्यादातर भाजपा मतदाताओं ने मोदी के नाम पर पार्टी को वोट देने के संकेत दिए। कम ही भाजपा मतदाताओं ने पार्टी या स्थानीय उम्मीदवारों के नाम पर वोट देने के रुझान दिखाए हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसे भाजपा मतदाताओं की तादाद ठीक-ठाक है, जो यह मानते हैं कि उन्हें नरेंद्र मोदी पसंद है, इसलिए वे भाजपा को वोट कर सकते हैं। तब भी, वैसे भाजपा मतदाताओं की तादाद  सबसे अधिक है, जो पार्टी के नाम पर वोट देने की बात करते हैं।

उन राज्यों में, जहां भाजपा कुछ समय सत्ता में रही है या उसने हाल के विधानसभा चुनाव जीते हैं, वहां बड़ी संख्या में मतदाता यही कह रहे हैं कि वे भाजपा को वोट दे सकते हैं। ये राज्य हैं, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीगसढ़ और राजस्थान। लेकिन यह बड़ा जनाधार इसलिए वजूद में है कि मतदाता पार्टी की तरफ अपना खिंचाव महसूस करते हैं, न कि नरेंद्र मोदी की तरफ। मध्य प्रदेश में भाजपा के 32 प्रतिशत मतदाताओं ने यह संकेत दिया कि वे मोदी के लिए पार्टी को वोट देंगे, वहीं इसके 43 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि वे पार्टी को तरजीह देते हैं। अगर नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के बीच अगले प्रधानमंत्री का चुनाव उन्हें करना पड़ता, तो मोदी की तुलना में चौहान को वे कुछ अधिक तरजीह देते। यह बिल्कुल साफ संकेत है कि नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश में पार्टी के लिए वोट नहीं जुटा पा रहे हैं।
कुछ इसी तरह का हाल राजस्थान में है। यहां भाजपा के 29 प्रतिशत मतदाता अपने वोट के लिए नरेंद्र मोदी को एक फैक्टर के रूप में आगे करते हैं। वहीं, 41 प्रतिशत भाजपा मतदाता पार्टी को तरजीह देते हैं। लेकिन वैसे भाजपा समर्थकों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, जो मोदी के लिए ही पार्टी को वोट दे सकते हैं। ऐसे लोग सिर्फ 18 प्रतिशत हैं, जबकि पार्टी के नाम पर भाजपा को वोट देने की इच्छा जताने वालों की तादाद 44 प्रतिशत है। यहां तक कि गुजरात में भी वैसे भाजपा मतदाताओं की तादाद कम है, जो सिर्फ मोदी के ही नाम पर भाजपा को वोट देने की इच्छा रखते हैं, जबकि नरेंद्र मोदी एक दशक से अधिक समय से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं।

गुजरात में 19 प्रतिशत भाजपा वोटरों ने मोदी के नाम पर मत देने के संकेत दिए और 41 प्रतिशत भाजपा मतदाताओं ने कहा कि वे पार्टी को पसंद करते हैं, इसलिए उनका वोट भाजपा के पक्ष में होगा। इससे यह साफ हो जाता है कि जिन राज्यों में भाजपा का शासन है, वहां सरकार की लोकप्रियता पार्टी के लिए मतदाताओं को आकर्षित कर रही है, न कि सिर्फ नरेंद्र मोदी का करिश्मा वोटरों को आकर्षित कर रहा है। 

अब बात करते हैं उन राज्यों की, जहां भाजपा अब भी हाशिये पर है। ऐसे राज्यों में मिले-जुले रुझान दिख रहे हैं। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में वैसे भाजपा समर्थकों की तादाद ठीक-ठाक है, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा को वोट देने के संकेत दिए हैं। लेकिन दूसरे राज्यों में, जैसे कर्नाटक, केरल, असम और पंजाब में, जो मतदाता इस चुनाव में भाजपा को वोट देने के रुझान दिखा रहे हैं, उनमें से अधिकतर पार्टी को इसकी वजह बताते हैं, न कि नरेंद्र मोदी को।

अगर इन रुझानों के साथ जाएं, तो शायद ही कोई यह कहेगा कि पूरे देश में मोदी की लहर है। जबकि मोदी लहर से कहीं अधिक भाजपा का जनाधार बढ़ता दिख रहा है। लगभग सभी मतदाता वर्गो, जैसे कि ग्रामीण और शहरी, नौजवान और अधेड़ तथा अन्य सामाजिक समूहों के बीच भाजपा को फायदा होने की संभावना है। ऐसा इसलिए कि ये सामाजिक तबके संप्रग सरकार के प्रदर्शन से काफी असंतुष्ट हैं। ये भ्रष्टाचार और केंद्रीय मंत्रियों से जुड़े स्कैंडल से नाराज दिखाई देते हैं। बीते कुछ वर्षो में आसमान छूती महंगाई ने उन्हें निराश कर रखा है। किसी भी अन्य और व्यावहारिक राष्ट्रीय विकल्प के अभाव में, स्वाभाविक तौर पर भाजपा को सीधा लाभ मिल रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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