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गुजरात मॉडल की हकीकत

गुजरात मॉडल 21वीं सदी का एक स्थायी मिथक है। यह कैसा चमत्कार है? और इसे किसने देखा है? क्या इसका अर्थ वह विकास है, जिसे भ्रष्टाचार मुक्त गुजरात सरकार ने अंजाम दिया है? इससे जुड़ा हुआ एक नीरस तथ्य यह...

गुजरात मॉडल की हकीकत
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Apr 2014 09:16 PM
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गुजरात मॉडल 21वीं सदी का एक स्थायी मिथक है। यह कैसा चमत्कार है? और इसे किसने देखा है? क्या इसका अर्थ वह विकास है, जिसे भ्रष्टाचार मुक्त गुजरात सरकार ने अंजाम दिया है? इससे जुड़ा हुआ एक नीरस तथ्य यह है कि गुजरात में जो कायदे-कानून हैं, वे अलग नहीं हैं। ये कायदे-कानून वही हैं, जो अन्य भारतीय राज्यों में हैं। इसलिए अगर यह एक मॉडल है, तो इसे बाकी राज्यों से अलग करके किस तरह देखा जाए? और जब आप इस विषय में आगे पड़ताल करते हैं, तो यह बताया जाता है कि इस मॉडल में जो चीजें निहित हैं, उनको मापा नहीं जा सकता। जैसे अच्छा प्रशासन! तुरंत फैसले लेना! यह सब शुद्ध बकवास लगता है। इन सबके बावजूद गुजरात मॉडल की चर्चा इतने लंबे समय से, इतने जोरदार ढंग से और इतने ऊंचे स्वर में चलती है कि अब यह मॉडल एक हकीकत-सा बन गया है। देश के करोड़ों लोग इसके लिए वोट डाल रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही यह मॉडल उनके राज्य में भी आ जाएगा। ऐसे मतदाताओं को निराश करने के लिए मैं क्षमा चाहता हूं, लेकिन सच यही है कि गुजरात मॉडल जैसा कुछ भी नहीं है। बेशक, एक गुजरात मॉडल है, लेकिन वह तो हमेशा से ही था। इस धरती पर रहने वाले गुजरातियों को कामयाब होने के लिए नरेंद्र मोदी की जरूरत कब से पड़ने लगी? अमेरिका में रहने वाले वे पटेल, जिन्होंने मोटेल की श्रृंखला का एक साम्राज्य खड़ा कर दिया, क्या उन्हें मोदी की प्रतिभा की जरूरत है?

क्या दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले मेमन लोगों को उनकी जरूरत है? क्या पूर्वी अफ्रीका के केन्या और तंजानिया की अर्थव्यवस्थाओं पर छा जाने वाले गुजरातियों को मोदी की जरूरत है? पालनपुरी के वे जैन, जो दुनिया भर के हीरा बाजारों में इजरायल के यहूदी व्यापारियों को कड़ी टक्कर देते हैं, क्या उन्हें गुजरात मॉडल की जरूरत है? आप बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी के बारे में क्या कहेंगे? क्या उन्हें नरेंद्र मोदी की जरूरत है? क्या टाटा को उनकी जरूरत है? मुंबई के शेयर बाजार में गुजरात के लोगों का वर्चस्व है और यह 19वीं सदी से ही है। कोचीन के मशहूर मसाला बाजार की प्रतिष्ठित दुकानों पर बोर्ड लगा रहता है- ‘गुजराती ओनर’, यानी इस दुकान का मालिक गुजराती है। प्रतिष्ठा का यह मानक इन गुजरातियों ने सदियों की मेहनत से हासिल किया है, यह साल 2001 के बाद मिली चीज नहीं है। धीरूभाई अंबानी को अपना साम्राज्य बनाने के लिए किसी नरेंद्र मोदी की जरूरत नहीं पड़ी थी। इस मामले में सिर्फ गौतम अडानी का नाम लिया जा सकता है।

जहां तक गुजरात मॉडल का सवाल है, तो इसे बिल्कुल इसी तरह से पश्चिम बंगाल, ओडिशा या बिहार में नहीं लागू किया जा सकता। यह काम तब तक तो नहीं ही हो सकता, जब तक कि हम ढेर सारे गुजराती पैदा करके उन्हें इन प्रदेशों में न भेज दें। वे अपनी शाकाहारी प्रतिबद्धता और शराब को हाथ न लगाने की सौगंध के साथ वहां जाएं और स्थानीय लोगों को अपनी संस्कृति सिखाएं। अगर गुजरात के लोगों को यह कहा जाए कि उनके महान राज्य की कामयाबी का कारण किसी एक व्यक्ति की प्रतिभा में छिपा है, तो शायद वे इसका बुरा मान जाएं। मैं भी ऐसे ही गुजरातियों में से हूं। लेकिन मैं ऐसे लोगों को भी पसंद करता हूं, जिन्हें जो मिल सकता है, उसे वे हासिल कर ही लेते हैं। मोदी अपने से जुड़े जिस तरह के दावे करते हैं, उन्हें उसके लिए गलत नहीं कहा जा सकता। मेरी समस्या उन लोगों के साथ है, जो इसे सही मान लेते हैं।

देश की अर्थव्यवस्था जब 1991 के आसपास खुलने लगी और कानून बदलने लगे, तो गुजरात की अर्थव्यवस्था ने भी ऊपर उठना शुरू कर दिया। यह तो होना ही था, इस मामले में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि गुजराती कारोबारियों की दुनिया को खोलने का काम किस सरकार ने किया? गुजरात में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार होती, यह तो होना ही था। और ऐसा भी नहीं हुआ कि गुजराती लोग अपने आर्थिक विकास से दुनिया पर छा गए। छोटे से आधार पर उनकी विकास दर दस फीसदी तक भी नहीं पहुंच सकी। गुजरातियों में कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं, जो गुजरात मॉडल की सीमाएं हैं। हम अंग्रेजी से बहुत दूर हैं, इसलिए सेवा क्षेत्र के उस कारोबार में नहीं पहुंच सके, जिसने भारत को नया शहरी मध्य वर्ग दिया है। मोदी के इंटरनेट उत्साहियों को इस बारे में भी सोचना चाहिए। हमेशा की तरह ही गुजरातियों का सारा ध्यान अब भी कुछ एक उद्योगों पर ही है। और इन उद्योगों को लेकर भी हम बहुत कुछ नया नहीं कर रहे। इन उद्योगों के विज्ञान और तकनीकी पक्ष में हमारा योगदान बहुत ज्यादा नहीं है। बेशक, हम बहुत कुशलता से पूंजी जुटाते हैं और उसका बेहतरीन प्रबंधन करते हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका कि हम सभी तरह के उद्योगों में दुनिया को पछाड़ देते हों।

हालांकि, इन सबमें नरेंद्र मोदी का कोई दोष नहीं है। सारे विकास का श्रेय मोदी को देना जितना गलत है, उतना ही गलत सभी दोष उन पर मढ़ देना भी है। विज्ञान और तकनीक से जुड़ी खोजों में गुजरातियों की दिलचस्पी  उतनी ही है, जितनी कि बाकी भारतीयों की है। बहुत से मोदी समर्थकों की तरह मैं भी यह मानता हूं कि गुजराती पुरुष एक आला दर्जे की प्रजाति है, लेकिन बाकी प्रदेशों के लोगों के लिए एक ‘अनरोमांटिक’ यथार्थ यही है कि कोई भी अकेला आदमी आपके राज्य का उद्धार नहीं कर सकता। आपको खुद अपने राज्य के लिए एक मॉडल तैयार करना होगा। वैसे ही जैसे, गुजरात के लोगों ने अपने लिए एक मॉडल तैयार किया है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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