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किसी का भी चुनावी मुद्दा नहीं है पानी

जीवन के लिए सबसे अमूल्य समझी जाने वाली चीज पानी के मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दल मौन हैं। किसी ने भी अपने चुनाव घोषणापत्र में इसे नहीं शामिल किया। यह नहीं कहा कि सबको पीने का साफ पानी मिलेगा, कोई...

किसी का भी चुनावी मुद्दा नहीं है पानी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Apr 2014 09:15 PM
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जीवन के लिए सबसे अमूल्य समझी जाने वाली चीज पानी के मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दल मौन हैं। किसी ने भी अपने चुनाव घोषणापत्र में इसे नहीं शामिल किया। यह नहीं कहा कि सबको पीने का साफ पानी मिलेगा, कोई भी पीने के पानी के लिए दर-दर नहीं भटकेगा। पानी की बात चुनाव के कुछ विज्ञापनों में तो है, लेकिन घोषणापत्र में नहीं है। वह भी उस समय, जब देश गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। देश की आबादी बढ़ने के साथ ही इस संकट का बढ़ना तय है। कहीं-कहीं तो केवल पीने का पानी लाने के लिए देशवासियों को अपने काम के तकरीबन सात-आठ घंटे खर्च करने पड़ते हैं। 70 फीसदी पानी का उपयोग हम कृषि कार्यों में करते हैं। 2020 तक हमें कृषि कार्य हेतु 17 फीसदी पानी की और अधिक जरूरत पड़ेगी। इसकी भरपायी कैसे होगी, यह समझ से परे है। जल संकट के पीछे असली कारण उपलब्धता के मुकाबले मांग का बहुत अधिक होना है। फिर पानी की बेतहाशा बर्बादी एक अहम सच्चई है। कहीं पाइप लाइनों के रख-रखाव में लापरवाही के चलते पानी बहता रहता है और कहीं भूजल माफिया द्वारा चोरी  और वाहनों की सफाई में पानी बहा दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार, हमारे यहां बस, कार, टैक्सी, और दुपहिया वाहनों की सफाई में करीब पांच करोड़ लीटर से अधिक पानी बर्बाद कर दिया जाता है, जबकि अमेरिका में यहां से वाहन ज्यादा हैं और वहां इस काम में काफी कम पानी इस्तेमाल होता है।

सिर्फ दिल्ली में पाइप लाइनों के टूटने से इतना ज्यादा पानी बर्बाद हो जाता है, जिससे तकरीबन 40 लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। पानी की इस तरह की बर्बादी को रोकने की हमारे पास न तो कोई बड़ी योजना है, न नीति और न ही कोई प्रतिबद्धता। पानी का सवाल सिर्फ जीवन के लिए जरूरी पानी का सवाल नहीं है, यह सवाल पर्यावरण से भी जुड़ा है, कृषि और उद्योगों से भी और हमारे भविष्य से भी। अभी तक हम शहरों के विस्तार और विकास के लिए जो रास्ता अपनाते हैं, उनका पहला शिकार पानी के हमारे परंपरागत स्रोत ही बनते हैं। इन्हें बचाने की कोई कारगर  नीति हम अभी तक नहीं बना सके। साथ ही हमें ऐसी नीति की भी जरूरत है, जिससे हम वर्षा जल की हर बूंद का इस्तेमाल कर सकें। अभी तक बारिश का ज्यादातर पानी बर्बाद हो जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि वर्षाजल हमारे बहुत से संकट दूर कर सकता है।

पानी की इन समस्याओं की हर साल पर्यावरण सम्मेलनों में बहुत चर्चा होती है। इन सब बहसों में यही उम्मीद बांधी जाती है कि सरकारें आगे बढ़कर बेहतर जल प्रबंधन के लिए कार्यक्रम और नीतियां बनाएंगी और उनको लागू करेंगी। लेकिन राजनीतिक दलों के घोषणापत्र देखकर लगता है कि इस तरह की उम्मीदें भी व्यर्थ ही हैं। जो चीजें घोषणापत्रों में नहीं हैं, वे सरकार की प्राथमिकताओं में भला कैसे जगह पाएंगी?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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