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मोदी, मिथ और चुनाव के नतीजे

मोदी की जीत के साथ ही मिथ गढ़ने का काम भी शुरू हो गया है। दो तरह के मिथ गढ़े जा रहे हैं। एक, मोदी ने गुजरात का सर्वांगीण विकास किया है और इस विकास में सभी की बराबर भागीदारी है। मोदी ने चुनाव के दौरान...

मोदी, मिथ और चुनाव के नतीजे
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 23 Dec 2012 07:09 PM
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मोदी की जीत के साथ ही मिथ गढ़ने का काम भी शुरू हो गया है। दो तरह के मिथ गढ़े जा रहे हैं। एक, मोदी ने गुजरात का सर्वांगीण विकास किया है और इस विकास में सभी की बराबर भागीदारी है। मोदी ने चुनाव के दौरान अपने भाषणों में इस बात को जोरदार तरीके से दोहराया भी। इस मिथ को बनाने के पीछे सोच यह है कि देश को अगर आगे बढ़ना है, उसे अमेरिका व चीन के बराबर खड़े होना है, तो देश की बागडोर मोदी के हाथ में होनी चाहिए। वह गुजरात की तरह ही देश के सामने सर्वांगीण विकास का नया मॉडल खड़ा करके नए और शक्तिशाली हिन्दुस्तान का सृजन कर सकते हैं। मोदी के मिथ को समझने लिए हमें जरा ठहरकर सोचना होगा। लोकतंत्र में जनता ही किसी  नेता की लोकप्रियता और क्षमता तय करती है। बेशक, गुजरात में मोदी का एकछत्र राज है। लेकिन वहां उनका विकास हर तबके को साथ लेकर चल रहा है, इस पर खुद चुनाव के आंकड़े ही सवाल खड़े कर रहे हैं। चुनावी आंकड़ों पर अगर नजर डालें, तो साफ है कि गुजरात में मोदी का शहरी क्षेत्रों में कोई सानी नहीं है। कांग्रेस और दूसरी पार्टियां उनके सामने कहीं नहीं ठहरतीं।

गुजरात के अर्ध शहरी इलाकों में कुल 31 सीटें हैं और शहरी इलाकों में 53। अर्ध शहरी इलाकों में बीजेपी को 31 में 23 सीटें मिलीं और कांग्रेस की झोली में गिरी सिर्फ सात सीटें। जबकि शहरी इलाकों की 53 सीटों में बीजेपी को 48 व कांग्रेस को पांच सीटें ही मिलीं। यानी कुल 84 शहरी सीटों में बीजेपी को 71 सीटें मिलीं, जबकि विरोधियों को महज 13। इसका अर्थ है कि शहरी इलाकों में मोदी की प्रचंड लहर थी और उनकी लोकप्रियता या उनके आर्थिक विकास ने लोगों को अपने जबर्दस्त मोहपाश में जकड़ रखा है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में कहानी पलट जाती है। ग्रामीण इलाकों की कुल 98 सीटों में से मोदी को 45 और कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। अर्थात गांवों में मोदी का वह प्रभाव नहीं दिखा, जो शहरों में है। अगर गांवों के आधार पर चुनाव का नतीजा आता, तो मोदी को तीसरा मौका नहीं मिलता और कांग्रेस की सरकार बनती।

ऐसा क्यों हुआ? शहर छोड़कर जाने वाले हर संवाददाता ने चुनाव के पहले ही इस ओर इशारा किया था और ऐसे संवाददाता यह अंदाजा लगा बैठे थे कि मोदी की तीसरी जीत मुश्किल है। कहीं पानी की भयंकर समस्या दिखी, तो कहीं नौकरी व दूसरी चीजों पर लोगों की शिकायत। अगर मोदी के विकास के मॉडल से सबको फायदा मिल रहा होता,तो ऐसा नहीं होता। गुजरात के गांव गुजरात के शहरों के मुकाबले अपने को विकास की मुख्यधारा में नहीं पाते हैं। कहीं न कहीं गुजरात 2004 के शाइनिंग इंडिया सिंड्रोम से प्रभावित है। वाजपेयी सरकार तमाम उम्मीदों के बाद 2004 में इसलिए हारी कि विकास का दावा करने वाली उस सरकार ने गांवों को नजरअंदाज किया था। मोदी की खुशकिस्मती यह रही कि गुजरात देश के अन्य राज्यों की तुलना में उनके वहां आने के पहले से विकास के मामले में काफी आगे था और इस वजह से वहां शहरीकरण की प्रक्रिया कहीं अधिक तेज थी।

मोदी ने इस प्रक्रिया को और गति प्रदान की। लेकिन गांवों की तरफ ध्यान नहीं दिया। दूसरा मिथ जो खड़ा किया जा रहा है, वो यह है कि इस बार गुजरात के मुसलमानों ने मोदी को वोट दिया। इस तर्क के लिए चुनावी आंकड़ों का सहारा बीजेपी व मोदी समर्थक लेते हैं। कहते हैं कि गुजरात में कुल 12 ऐसी सीटें हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम हैं। बीजेपी यानी मोदी ने 12 में से 8 सीटें जीतीं और कांग्रेस को सिर्फ 4 से संतोष करना पड़ा। जफर सरेसवाला जैसे मोदी समर्थक मुस्लिम नेता इस मिथ को गढ़ने मे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं और बयां करते हैं कि गुजरात के मुसलमानों का नजरिया मोदी को लेकर बदल रहा है। वे अब पहले के मुकाबले अधिक सुकून महसूस कर रहे हैं। 2002 के दंगों को भूल वे नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं और मोदी में उनका यकीन बढ़ रहा है। इसलिए अब वे मोदी को वोट देने लगे हैं और इसका असर इन आठ सीटों पर दिखा। लोग ये भूल जाते है कि इन सीटों पर 80 फीसदी हिंदू हैं। गुजरात के हिंदुओं के मिजाज के मद्देनजर जैसे ही मुसलमानों की संख्या बढ़ती है, सारे के सारे हिंदू उनके खिलाफ गोलबंद होकर एकमुश्त वोट देने लगते हैं। ऐसे में, इन सीटों पर मुसलमानों ने मोदी को वोट दिया, यह कहना झूठ को बड़ा बनाना है।

गुजरात के इस हिंदू मिजाज की वजह से ही मोदी ने इस बार भी तमाम इमेज बदलने की कोशिश के बीच एक भी मुसलमान को बीजेपी से चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया। लोगों को याद होगा कि सद्भावना यात्रा के दौरान मोदी ने एक मौलाना के हाथ से मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। और न ही 2007 की टी-20 वर्ल्ड कप में जीत के बाद दूसरे राज्यों की तरह इरफान पठान और यूसुफ पठान का मोदी ने सम्मान किया और न ही उन्हें पुरस्कृत किया। जबकि दूसरे राज्यों में इसके लिए होड़-सी लग गई थी। यह सही है कि इरफान पठान को एक रैली में मोदी ने मंच पर जगह दी, लेकिन पठान को बोलने का मौका नहीं दिया।

मेरा सवाल यह है कि अगर नरेंद्र मोदी को लगता है कि मुस्लिम तबका उनको वोट देने लगा है और वह 2002 के दंगों के दाग से उबरना चाहते हैं, तो फिर गुजरात में मुस्लिम आबादी के हिसाब से बीजेपी को 182 में से कम से कम 18 सीटें देनी चाहिए, क्योंकि गुजरात में मुस्लिम आबादी 9.82 फीसदी है। गुजरात विधानसभा में इस बार सिर्फ दो मुस्लिम विधायक बन पाए और वे दोनों ही कांग्रेस पार्टी से हैं। साफ है, मोदी और उनके समर्थक राष्ट्रीय राजनीति में उनकी स्वीकारोक्ति को बढ़ाने के लिए यह बताने में लगे  हैं कि मोदी शहर और गांव, यानी सर्वागीण विकास कर सकते हैं। चूंकि मुस्लिम तबका भी अब उनके प्रति नरम हो गया है, इसलिए उन पर समेकित विकास न करने का आरोप  लगाने वाले गलत हैं। गलत कौन है, यह फैसला अब आप करें?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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