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अपनी जिंदगी जीनी है

ऑफिस में बैठे-बैठे अचानक वह उखड़ गए। यह उखड़ना किसी और पर नहीं, अपने पर ही था। सुबह ठीक-ठाक आए थे। लेकिन एक फोन के बाद सोचने लगे। यह कैसी पराई-सी जिंदगी जी रहे हैं...

अपनी जिंदगी जीनी है
Fri, 14 Dec 2012 08:01 PM
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ऑफिस में बैठे-बैठे अचानक वह उखड़ गए। यह उखड़ना किसी और पर नहीं, अपने पर ही था। सुबह ठीक-ठाक आए थे। लेकिन एक फोन के बाद सोचने लगे। यह कैसी पराई-सी जिंदगी जी रहे हैं वह?

अपनी जिंदगी जीने के मायने ही कुछ और होते हैं। डॉ. रोम ब्रैफमैन मानते हैं कि हम जब चीजों को खुद चुनते हैं, तो हमारी शख्सीयत ही अलग हो जाती है। चुनने के मायने हैं, अपने फैसले खुद लेना। और यहीं से पूरी तस्वीर बदल जाती है। वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। ओरी ब्रैफमैन के साथ उन्होंने चर्चित किताब लिखी है, स्वे: द इर्रिजिस्टेबल पुल ऑफ इर्रेशनल बिहेवियर।

जिंदगी में चुन लेना ही काफी नहीं होता है। उस चुनने के साथ-साथ कई जिम्मेदारियां आती हैं। उसके साथ कुछ जोखिम आते हैं। हमें उसके लिए तैयार रहना होता है। या कहना चाहिए उसके लिए तैयारी करनी होती है। हमारे साथ दिक्कत यह आती है कि हम अपने लिए चुनी हुई जिंदगी चाहते हैं। लेकिन उससे जुड़े बाकी काम नहीं करना चाहते। हम बहुत आराम-आराम से अपनी पसंदीदा जिंदगी जीना चाहते हैं। और जब वह नहीं मिलती, तो परेशान होते हैं।

अपनी किस्मत को रोने लगते हैं। दूसरों को कोसने भी लग जाते हैं। हम जब कायदे से अपनी चुनी हुई जिंदगी जीना चाहते हैं, तो हमारा पूरा अंदाज ही बदल जाता है। हमें अपनी कीमत समझ में आती है। हम जानते हैं कि हम क्या हैं? और क्या चाह रहे हैं? उस चाहना के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। हम उसके लिए कोशिश करते हैं। कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। फिर हम जो भी करते हैं, उसकी पूरी जिम्मेदारी लेने को तैयार रहते हैं। कामयाब होने पर भी और नाकामयाबी पर भी। असल में चुनी हुई जिंदगी का मतलब है, अपनी सौ फीसदी कोशिश। अगर हम उसके लिए तैयार हैं, तभी कोई बात बनती है।

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