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अब अमेरिका को जागना होगा

इधर अमेरिका अफगानिस्तान से वापसी की तैयारी कर रहा है और उधर रोज ही नई परेशानियां खड़ी हो रही हैं। विकीलीक्स के ताजा खुलासे से पता चला है कि अमेरिकी सरकार ने पाकिस्तान के गुप्तचर संगठन आईएसआई को 2007...

अब अमेरिका को जागना होगा
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 26 Apr 2011 11:22 PM
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इधर अमेरिका अफगानिस्तान से वापसी की तैयारी कर रहा है और उधर रोज ही नई परेशानियां खड़ी हो रही हैं। विकीलीक्स के ताजा खुलासे से पता चला है कि अमेरिकी सरकार ने पाकिस्तान के गुप्तचर संगठन आईएसआई को 2007 में ही बाकायदा एक आतंकवादी गिरोह मान लिया था। आईएसआई और सीआईए के बीच पिछले दिनों रेमंड डेविस को लेकर काफी गर्मागर्मी हुई थी। डेविस की गिरफ्तारी से दोनों सरकारों के बीच तनाव पैदा हो गया था और उन्हीं दिनों ऐसी खबरें भी छप रही थीं कि आईएसआई लुक-छिपकर आतंकवादियों को प्रोत्साहित करती रहती है, लेकिन विकीलीक्स की खबर से न केवल इस संदेह पर मुहर लगा दी है, बल्कि यह सिद्ध कर दिया है कि दुनिया के 36 अन्य आतंकवादी संगठनों की तरह आईएसआई भी एक आतंकवादी संगठन ही है।

किसी भी देश के लिए इससे अधिक शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि उसका एक मित्र-देश ही उस पर यह आरोप लगाए कि उसकी एक प्रमुख सरकारी संस्था आतंकवादी है। हालांकि इसी वजह से उसकी दुकान चल रही है। यदि पाक-अफगान क्षेत्रों में आतंकवाद समाप्त हो जाए, तो पाकिस्तान को जो लगभग 8,000 करोड़ रुपये की मदद हर साल मिल रही है, वह क्या बंद नहीं हो जाएगी? पाकिस्तान की सरकार की हालत इतनी खस्ता है कि वह अपने फौजी अफसरों और नौकरशाहों को उनका मासिक वेतन भी नहीं दे सकती। फौज को हथियारों की सप्लाई के लिए भी वह अमेरिका पर निर्भर है। सवाल यह है कि यह सब माले-मुफ्त अमेरिका पाकिस्तान को आखिर क्यों दिए चला जा रहा है? क्योंकि वह आतंकवाद का उन्मूलन करना चाहता है। इस युद्ध में पाकिस्तान उसका साङीदार बना हुआ है। पाकिस्तान को पता है कि जब तक आतंकवाद रहेगा, उसे यह मदद मिलती रहेगी, उसका हित इसी में है कि आतंकवाद कभी खत्म न हो।

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के इस पाखंड को अमेरिका समझता नहीं है। लेकिन कई तरह से वह मजबूर है। कई समीकरण ऐसे हैं, जो उसे पाकिस्तान के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने से रोकते हैं। एक तो वह पहले ही बुरी तरह से फंसा हुआ है। ईरान से उसके संबंध काफी लंबे समय से खराब थे। उसके बाद वह अफगानिस्तान और इराक के दल-दल में फंस गया। अब वह इस हालत में नहीं है कि सीधे पाकिस्तान से उलझ सके। पाकिस्तान बड़ा देश है। उसमें कई अफगानिस्तान और इराक समा सकते हैं। वह परमाणु हथियार संपन्न देश है और उससे अमेरिका वह बर्ताव नहीं कर सकता, जो उसने अफगानिस्तान या इराक से किया है। जब न्यूयॉर्क के ट्रेड टॉवर पर हमला हुआ था, तो अमेरिका ने अफगानिस्तान को अपना निशाना बनाया। हमला बोलकर उसने एक तरह से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। लेकिन अब से दस-बारह साल पहले अफगानिस्तान क्या था? एक तरह से देखा जाए, तो वह कोई स्वतंत्र राष्ट्र ही नहीं था? वह तो प्रकारांतर से तालिबान की सत्ता वाला पाकिस्तान का पांचवां प्रांत भर था। तब भी यह कहा गया था कि आतंकवाद को जड़-मूल से उखाड़ना है, तो पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी अड्डों पर सीधे हमले किए जाएं, आईएसआई को खत्म कर दिया जाए। लेकिन उस समय अमेरिका ने दूसरी रणनीति अपनाई। उसने सोचा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाकर वह अलकायदा को खत्म कर देगा। लेकिन जल्द ही साबित हो गया कि यह रणनीति पूरी तरह से गलत थी।

शायद इसी से उसे यह अहसास हुआ होगा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और कुछ नहीं, आतंकवादी संगठन ही है। लेकिन दिक्कत यह है कि उसके इस अहसास ने कोई नतीजा नहीं दिया। आईएसआई आखिर पाकिस्तानी फौज का हिस्सा ही तो है, यानी एक तरह से पाकिस्तान सरकार का ही एक अंग है। उसे इसी सरकार से पैसा मिलता है और यह संगठन पाकिस्तानी फौज की नीतियों के हिसाब से ही चलता है। इसलिए यह कहना पूरी तरह गलत है कि आईएसआई स्वायत्त है। इसलिए जब हम यह कहते हैं कि आईएसआई आतंकवादी संगठन है, तो एक तरह से यह आरोप पाकिस्तान की फौज और उसकी सरकार पर ही लगता है। और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का असली निशाना भी इन्हीं को होना चाहिए। यही दोनों सारे षड्यंत्रों के मूल में हैं। अगर हम मान लें कि ऐसा नहीं है और इसका उल्टा है, तो भी फौज और सरकार के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि वे दोनों ही निकम्मी और निर्थक हैं। दोनों स्थितियां हमें इसी निष्कर्ष पर पहुंचाती हैं कि अकेली आईएसआई को आतंकवादी घोषित कर देने से कुछ नहीं होगा। वास्तव में पाकिस्तान को ही आतंकवादी राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। जैसे पहले तालिबानी अफगानिस्तान और गद्दाफी के लीबिया के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए हैं, बिल्कुल वैसे ही पाकिस्तान के खिलाफ भी होना चाहिए। यदि अमेरिका इस अभियान की अगुवाई करता, तो पाकिस्तानी आतंकवाद से जूझने में पिछले 10 साल बर्बाद नहीं होते। पाकिस्तान की जो जनता आज अमेरिका-विरोधी है, तब वह भी शायद अमेरिका का अहसान मानती कि उसके कारण आतंकवाद का उन्मूलन हो गया। वास्तव में, पाकिस्तानी आतंकवाद के बारे में अमेरिका की ढीली नीति के कारण भारत और अफगानिस्तान में उसके प्रति कृतज्ञता का कोई भाव नहीं है।

पाकिस्तान पर सही ढंग से लगाम न लगा पाने के कारण ही अमेरिका के बारे में गलत धारणा बनने लगी है। यह माना जाने लगा है कि अमेरिका का दम फूल गया है। वह किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान से अपना पिंड छुड़ाना चाहता है। यही  सोच है, जिसके चलते पाकिस्तान में हर दूसरे दिन अमेरिका विरोधी प्रदर्शन होते हैं। इन हालात ने तालिबान का भी हौसला बढ़ा दिया है। कंधार की जेल से 480 तालिबान के भाग जाने की घटना को इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता।

इस बीच विकीलीक्स का एक और रहस्योद्घाटन यह बताता है कि 9/11 के मुख्य षड्यंत्रकारी खालिद शेख मुहम्मद ने यह कहा था कि अगर ओसामा बिन लादेन को पकड़ लिया गया, तो अल-कायदा के आतंकवादी यूरोप में परमाणु-विस्फोट कर देंगे। पता नहीं इस दावे में कितना दम है, लेकिन इस तरह के दुस्साहस को अंतिम रूप से खत्म करने का रास्ता पाकिस्तान से ही गुजरता है।

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