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चीन से आगे बढ़ने की राह पर

लंबे समय से भारत सहित दुनिया भर की आर्थिक-वित्तीय संस्थाएं, रेटिंग एजेंसियां व विशेषज्ञ इस बात का आकलन करते रहे हैं कि आने वाले समय में भारत और चीन में से कौन आर्थिक विकास में आगे निकलेगा। इस दिशा...

चीन से आगे बढ़ने की राह पर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 25 Apr 2011 10:29 PM
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लंबे समय से भारत सहित दुनिया भर की आर्थिक-वित्तीय संस्थाएं, रेटिंग एजेंसियां व विशेषज्ञ इस बात का आकलन करते रहे हैं कि आने वाले समय में भारत और चीन में से कौन आर्थिक विकास में आगे निकलेगा। इस दिशा में सबसे अंतिम आकलन भारत के दूसरे बड़े बैंक आईसीआईसीआई बैंक का है। इसने ‘भारत : विकास, अवसर और चुनौतियां’ रिपोर्ट में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से भारत की तुलना की है। इसका आकलन है कि 2015 तक भारत की विकास दर चीन से आगे हो जाएगी और यह कम से कम 15 वर्षों तक आगे रहेगा। यानी तीन वर्ष बाद से अगले 15 वर्षो तक चीन की विकास दर हमारी विकास दर से नीचे रहेगी। पिछले 30 वर्षो तक चीन की अर्थव्यवस्था औसतन 10 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी है, जबकि भारत की विकास दर छह प्रतिशत रही है। 

यह आकलन उत्साह बढ़ाने वाला है। वैसे इसमें ज्यादातर बातें ऐसी हैं, जिनके आईने से देखने पर भारत की ऐसी ही लहलहाती तस्वीर सामने आती है।  मसलन, भारत की विकास गति तेज होने में बढ़ती विशाल युवा आबादी का मुख्य योगदान होगा। जनसंख्या बढ़ने की गति के अनुसार सन 2020 तक भारत में अतिरिक्त 13.5 करोड़ युवा होंगे, जबकि इसके समानांतर चीन की आबादी में इस दौरान केवल 2.3 करोड़ युवा जुड़ेंगे। युवा आबादी उत्पादन के साथ व्यय में भी बढ़ोतरी करेगी और विकास का कारवां छलांग लगाता जाएगा। इसके विपरीत चीन में उम्रदराज लोगों की बढ़ती संख्या उसकी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती साबित होगी। भारत और चीन के संदर्भ में ऐसा ही आकलन पहले एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक, सीआईए और कई संस्थाएं कर चुकी हैं।

कुछ ही दिनों पहले जापान को पछाड़कर चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान बाजार मूल्यों के अनुसार 58 खरब डॉलर का है। अमेरिका का 148 खरब डॉलर है। दुनिया के अनेक विशेषज्ञ मानते हैं कि मौजूदा वैश्विक ढांचे में अर्थव्यवस्था मापने के जितने पैमाने हैं, उनमें से कई पैमानों पर चीन अब दूसरी नहीं, बल्कि पहली अर्थव्यवस्था बन चुका है। लेकिन भारत के संदर्भ में किसी पैमाने पर ऐसा निष्कर्ष नहीं आता। आर्थिक स्थिति के आकलन का एक पैमाना पर्चेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) है। इसके अनुसार करीब छह महीने पूर्व चीन की अर्थव्यवस्था को 100.84 खरब डॉलर माना गया था। इसके समानांतर भारत की केवल 4.046 खबर डॉलर। अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में यह बताया गया है कि आर्थिक सुधार की प्रक्रिया में आने के बाद चीन के पीपीपी आधारित आर्थिक आकार में 27 प्रतिशत और भारत में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यानी  भारत को अभी कई आयामों और मोर्चो पर कोशिश करनी होगी। अब हमें इस पर विचार करना चाहिए कि आर्थिक नीतियों का लाभ समाज के सबसे निचले हिस्से तक कैसे पहुंचे।

 

 

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