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विश्व कप क्रिकेट के यादगार क्षण

अभी तक विश्व कप क्रिकेट के जो नौ आयोजन हुए हैं, उनमें ढेरों यादगार लम्हें हैं। यहां हम याद करेंगे कुछ ऐसे ही लम्हों को, जो भुलाए नहीं भूलते। सबसे अच्छी इनिंग की बात करें तो विश्व कप के इतिहास में याद...

विश्व कप क्रिकेट के यादगार क्षण
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 18 Feb 2011 11:46 PM
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अभी तक विश्व कप क्रिकेट के जो नौ आयोजन हुए हैं, उनमें ढेरों यादगार लम्हें हैं। यहां हम याद करेंगे कुछ ऐसे ही लम्हों को, जो भुलाए नहीं भूलते। सबसे अच्छी इनिंग की बात करें तो विश्व कप के इतिहास में याद करने लायक बहुत कुछ है। जैसे 1975 के फाइनल में क्लाइव लॉयड की इनिंग, 1979 में विवियन रिचर्डस की इनिंग, 1996 में अरविंद डिसिल्वा की इनिंग, 2003 में रिकी पोंटिंग की इनिंग या फिर 2007 में एडम गिलक्रिस्ट की इनिंग।

2003 में सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के खिलाफ जो शानदार 98 रन बनाए थे, वे भी याद रखने लायक हैं, लेकिन मेरी पसंद है 1983 की कपिल देव की वह अजेय पारी, जिसमें उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ खेलते हुए 175 रन बनाए थे। वह भी तब, जब भारत के 17 रन पर पांच विकेट गिर चुके थे और हार लगभग तय लग रही थी।

संकट की उस घड़ी में कपिल देव ने असंभव को संभव कर दिखाया था। उन्होंने जिम्बाब्वे के गेंदबाजों की चौतरफा धुनाई की थी और 14 चौक्के व छह छक्के लगाए थे और जब तक साठ ओवर पूरे होते, भारत 266 रन बना चुका था, जिसमें अकेले कपिल देव के 175 रन थे। कपिल की इसी पारी ने भारत की किस्मत पलट दी थी और फिर टीम विश्व कप जीतकर ही भारत लौटी।

अब आते हैं गेंदबाजी पर। क्रिकेट को बल्लेबाजों का खेल कहा जाता है। अच्छी गेंदबाजी के मुकाबले रन और शतक ज्यादा याद रहते हैं। गेंदबाजी में सबसे यादगार है 1979 के फाइनल में वेस्ट इंडीज के जोएल गार्नर का प्रदर्शन, जब उन्होंने पांच विकेट लिए थे। एक समय इंग्लैंड के 183 पर दो विकेट थे और फिर 194 पर उनकी पूरी टीम ही आउट हो गई। उस दिन गार्नर ने दिखाया कि उन्हें एकदिवसीय क्रिकेट का सबसे अच्छा गेंदबाज क्यों कहा जाता है।

मोहाली में 1996 के विश्व कप सेमीफाइनल में शेन वार्न की गेंदबाजी भी याद करने लायक है। इस मैच में वेस्ट इंडीज ने तीन विकेट पर 173 रन बना लिए थे और जीतने के लिए सिर्फ 208 रन का लक्ष्य था, लेकिन वार्न ने 202 रन पर ही पूरी टीम को समेट दिया। लेकिन यहां पर मेरी पसंद है वर्ष 1992 के फाइनल में वसीम अकरम की गेंदबाजी, जिसमें उन्होंने इयान बॉथम, एलन लैंब और क्रिस लुइस जैसे बल्लेबाजों को वापस पैवेलियन लौटा दिया था।

सीमित ओवरों के क्रिकेट में हमेशा ही अच्छी फील्डिंग दिखाई दी है। 1992 के विश्व कप के उस क्षण को भला कैसे भूला जा सकता है, जब जोंटी रोडे ने इंजमामुल हक को रन आउट कर दिया था। 1983 के विश्व कप में विवियन रिचर्ड का जो कैच कपिल देव ने पकड़ा था, वह आज भी हर भारतीय को याद है। तब रिचर्ड अपने शिखर पर थे और पूरी लय के साथ खेल रहे थे। उन्होंने मदनलाल की एक गेंद को थोड़ा मिस टाइम कर दिया। गेंद जिस तरफ उछली, वहां कोई खिलाड़ी था, लेकिन बीस गज की दूरी पर खड़े कपिल देव ने डाइव लगाकर जो कैच पकड़ा, उसने विश्व कप ही भारत की झोली में डाल दिया।

लेकिन इतना ही अद्भुत एक और कैच है, 2007 के विश्व कप का जब स्लिप में खड़े बरमूडा के ड्वायेन लेवरॉक ने रॉबिन उत्थप्पा को आउट किया था। 127 किलोग्राम के लेवरॉक क्रिकेट खिलाड़ी के बजाय सूमो पहलवान ज्यादा लगते हैं, लेकिन उन्होंने इस कैच को पकड़ने के लिए लगभग असंभव-सी कमाल की डाइव लगाई थी।

बहुत से यादगार क्षणों में एक ऐसा क्षण भी आया, जिसने एक खिलाड़ी की महानता को भी दिखाया। यह था 1987 के विश्व कप में लाहौर में वेस्ट इंडीज और पाकिस्तान के बीच खेला गया एक मैच। वेस्ट इंडीज के लिए जरूरी था कि वह सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए इस मैच को जीते। मैच के आखिरी ओवर में जीतने के लिए पाकिस्तान को 14 रन बनाने थे और गेंद दी गई कोर्टनी वाल्श को। जो उस समय तक काफी किफायती गेंदबाजी कर रहे थे। सामने थे अब्दुल कादिर, जिन्होंने ओवर की पहली पांच गेंदों पर 12 रन बना लिए। 

आखिरी गेंद पर उन्हें दो रन बनाने थे। वाल्श गेंद फेंकने के लिए दौड़े, तो उन्होंने देखा कि गेंदबाजी वाले सिरे पर खड़े जाफर रन बनाने की बेताबी में क्रीज से बाहर जा चुके हैं। वे चाहते तो उन्हें आउट कर सकते थे, लेकिन वाल्श ने उन्हें आउट करने के बजाय उन्हें चेतावनी दी और फिर से गेंद फेंकने के लिए लौट गए। वेस्ट इंडीज यह मैच हार गया और कप्तान विवियन रिचर्ड ने वाल्श के इस रवैये पर नाखुशी भी जाहिर की, लेकिन दर्शकों ने इस खेल भावना का स्वागत तालियां बजाकर किया। बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने वाल्श को एक पाकिस्तानी कालीन देकर उनका आभार व्यक्त किया।

विश्व कप की इन्हीं खट्टी-मीठी यादों के बीच ही एक शर्मनाक क्षण भी आया, वह भी उस कोलकाता में, जिसके खेलप्रेमी क्रिकेट के दीवाने हैं। यह मौका था 1996 के विश्व कप सेमीफाइनल का जो भारत और श्रीलंका के बीच खेला जा रहा था। शुरू में जब श्रीनाथ ने दो विकेट ले लिए तो लगा कि श्रीलंका संकट में है। लेकिन फिर अरविंद डिसिल्वा की शानदार बल्लेबाजी ने श्रीलंका को एक शानदार स्कोर दे दिया।

भारत जब खेलने लगा तो विकेट गिरने लग गए। सचिन तेंदुलकर के आउट होते ही लगा कि मैच भारत के हाथों से निकल चुका है। मैदान में मौजूद दर्शक उत्तेजित हो उठे और मैदान पर सामान फेंका जाने लगा। पुलिस भी लोगों को रोकने में नाकाम रही। फिर क्या था, मैच खत्म करके श्रीलंका को विजयी घोषित कर दिया गया। मैदान पर बल्लेबाजी कर रहे विनोद कांबली जब लौट रहे थे, तो उनकी आंखों में आंसू थे।

लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं

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