फोटो गैलरी

Hindi Newsडॉक्टरों और मरीजों में कम होता संवाद

डॉक्टरों और मरीजों में कम होता संवाद

बीते दिनों यह खबर आई कि देश की राजधानी के एक बाल चिकित्सालय में हर महीने 10,000 मरीज आते हैं, डॉक्टरों की संख्या मरीजों के अनुपात में बहुत कम है,  इसलिए वे एक मरीज को औसतन डेढ़ मिनट का समय ही दे...

डॉक्टरों और मरीजों में कम होता संवाद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 01 Mar 2015 08:10 PM
ऐप पर पढ़ें

बीते दिनों यह खबर आई कि देश की राजधानी के एक बाल चिकित्सालय में हर महीने 10,000 मरीज आते हैं, डॉक्टरों की संख्या मरीजों के अनुपात में बहुत कम है,  इसलिए वे एक मरीज को औसतन डेढ़ मिनट का समय ही दे पाते हैं। चिकित्सकों की कमी एक ऐसा विषय है, जिसका असर आप देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर देख सकते हैं। पिछले दिनों देश के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री ने राज्यसभा में यह स्वीकार किया कि देश भर में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है, और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप चिकित्सक-मरीज अनुपात कम है। इसे देश के तकरीबन हर स्वास्थ्य केंद्र पर देखा जा सकता है कि वहां मरीजों को डॉक्टर कम समय दे पाते हैं, इसका एक कारण संवेदनशीलता का कम होना भी माना जा सकता है। विश्व जनसंख्या में 16.5 प्रतिशत की भागीदारी निभाने वाला देश विश्व की बीमारियों में 20 प्रतिशत का भागीदार है। दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बनता भारत सेहत के मामले में काफी कमजोर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक, हर 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए, जबकि देश में यह संख्या महज 0.5 है।

योजना आयोग के विशेषज्ञों के एक दल ने 2020 तक सबको स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लक्ष्य के मद्देनजर राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियामक प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की है, लेकिन दिक्कत यह है कि केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही योजना आयोग की विदाई हो चुकी है और नीति आयोग की स्थापना के बाद उन लक्ष्यों का क्या होगा, अभी कहा नहीं जा सकता। इस दल की कई सिफारिशें काफी महत्व की हैं। दल ने महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह जेनेरिक दवाएं इस्तेमाल करने के लिए डॉक्टरों व मरीजों को जागरूक बनाने पर जोर दिया था। आबादी और डॉक्टर के अनुपात के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मुद्दे पर भी काफी विचार किया है कि एक डॉक्टर को मरीज की जांच के लिए कितना समय लगाना चाहिए। यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है कि मरीज और चिकित्सक के बीच हुआ संवाद कई तरह से इलाज पर असर डालता है।

बात सिर्फ इतनी नहीं है कि डॉक्टर मर्ज को समझ ले और उसके लिए जरूरी दवा लिखे। यह संवाद इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे मरीज की मनोदशा पर असर पड़ता है। इस संवाद से ही उसे अपने ठीक होने का आश्वासन मिलता है। मरीज का आश्वस्त होना उसके ठीक होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पाया गया है कि विकासशील देशों में चिकित्सक हर मरीज को देखने में औसतन एक मिनट से भी कम वक्त लगाते हैं। इतने कम समय में अक्सर मरीज यह तक नहीं समझ पाते कि उन्हें दवाइयां कब और कैसे लेनी हैं। इसके साथ ही यह संवाद डॉक्टरी पेशे के उस मानवीय पक्ष को विकसित करता है, जो अब नदारद होता जा रहा है।
 (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें