न्याय को नुकसान
यह फैसला बहुत सख्त है या बहुत नरम? अदालत का फैसला आते ही मिस्र के लोगों में इस पर बहस छिड़ गई। खासकर सोशल मीडिया में जमकर बहस हो रही है। पूर्व जनरल और मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी के समर्थकों...
यह फैसला बहुत सख्त है या बहुत नरम? अदालत का फैसला आते ही मिस्र के लोगों में इस पर बहस छिड़ गई। खासकर सोशल मीडिया में जमकर बहस हो रही है। पूर्व जनरल और मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी के समर्थकों की चले, तो वे पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद मोर्सी के लिए मौत की सजा चाहते हैं। इसके विपरीत अब आतंकी संगठन के रूप में प्रतिबंधित मोर्सी की मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी के प्रतिनिधि इस फैसले को लोकतंत्र के लिए आजीवन सजा बताते हैं। हालांकि, मोर्सी आदर्श चरित्र वाले लोकतांत्रिक नेता नहीं हैं, पर ताकतवर सेना के साये से निकले आज के शासक भी लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकते। भले ही मोर्सी के खिलाफ हुआ फैसला मिस्र के मौजूदा हालात में अपेक्षाकृत नरम लगता हो, पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ठीक ही ध्यान दिलाया है कि मुकदमा न तो निष्पक्ष था और न ही कानून सम्मत तरीके से चला। मिस्र की कानून-व्यवस्था न सिर्फ आज्ञाकारी है, बल्कि लोचदार भी, जो राजनीतिक माहौल के अनुरूप बदलती रहती है। इस प्रक्रिया में न्याय का नुकसान हो रहा है। मिस्र में पिछले वर्षों में हुए नाटकीय आंदोलनों ने भयावह रूप से काफी जानें ली हैं। कम से कम 600 लोग तो मोर्सी के तख्तापलट के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड के आंदोलन को दबाने के दौरान ही मारे गए। इसके लिए जिम्मेदार लोगों को न तो मौत की सजा का और न ही उम्रकैद की सजा से डरने की जरूरत है, जब तक अल सीसी सत्ता में हैं। वे मौजूदा शासन व्यवस्था के सदस्य हैं।
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