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पुलिस को प्रतिष्ठा देना है सबसे बड़ी जरूरत

भ्रष्टाचार और तरह-तरह के अपराध, पुलिस के बारे में यही सोच हर जगह दिखाई देती है। यह सोचने वाले भी मिल जाएंगे कि कई अपराधों का सबसे बड़ा कारण हमारी पुलिस ही है। सांप्रदायिक दंगों में भी पुलिस की भूमिका...

पुलिस को प्रतिष्ठा देना है सबसे बड़ी जरूरत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 22 Jun 2014 08:40 PM
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भ्रष्टाचार और तरह-तरह के अपराध, पुलिस के बारे में यही सोच हर जगह दिखाई देती है। यह सोचने वाले भी मिल जाएंगे कि कई अपराधों का सबसे बड़ा कारण हमारी पुलिस ही है। सांप्रदायिक दंगों में भी पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। इनमें से बहुत-सी बातें ठीक भी हैं, लेकिन सब कुछ ऐसा ही नहीं है। वे हमारे पुलिस के ही जवान थे, जो संसद भवन की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। वीरप्पनों, नक्सलियों तथा आतंकवादियों से वे ही लड़ते हैं। दिन-रात गश्त लगाते हैं। उनकी ड्यूटी के घंटे बंधे नहीं होते। कठोर ठंड, बर्फ और तपन सहते हुए अक्सर उन्हें परिवार से बहुत दूर रहना पड़ता है। इसी 16 जून की रात को गश्त लगाते हुए फिरोजाबाद की सड़कों पर दो सिपाही बदमाशों द्वारा भून दिए गए। दिल्ली में रात के वक्त शराब पिए एक युवक ने ट्रैफिक पुलिस वाले पर कार चढ़ा दी। पुलिस सेवा राज्य सरकार के अधीन है। राज्य सरकार का 80-90 प्रतिशत पुलिस बल उन कांस्टेबलों का होता है, जिनके कंधों पर कानून-व्यवस्था और मुल्क की अंदरूनी सुरक्षा टिकी हुई है। दुर्भाग्यवश इन पुलिस जवानों की स्थिति सबसे शोचनीय है।

अनुशासन के नाम पर इनका अधिकतम शोषण होता है। उपेंद्र बख्शी ने अपनी पुस्तक में इन्हें उपेक्षित अल्पसंख्यक वर्ग की संज्ञा दी है। यह भी कहा जाता है कि भारत में सबसे अधिक निंदनीय और गाली खाने वाला सरकारी कर्मचारी पुलिस कांस्टेबल होता है। न ही उसे वेतन ठीक मिलता है, न ही उसकी तरक्की के रास्ते खुले होते हैं। अफसरों के जूतों के फीते बांधना, उनके बच्चों को स्कूल पहुंचाना, उनके लॉन में घास काटना, उन्हें ऐसे बेगार काम करने पड़ते हैं, जो कि उनकी सेवा के दायरे में नहीं आते। भारतीय थानों की दुर्दशा देखते ही बनती है। न टॉयलेट और न स्नानगृह। इस सबके खिलाफ पुलिस वाले आवाज भी नहीं उठा सकते।

पुलिस में सुधार के लिए गोरे कमेटी, राष्ट्रीय पुलिस आयोग 1979, रिबेरो कमेटी और सोली सोराबजी जैसी अनेक कमेटियां बनीं, किंतु स्थिति ज्यों की त्यों है। वस्तुत: आज भी हिन्दुस्तान की पुलिस सेवा 1861 में बने ऐक्ट से नियंत्रित होती है। इस ऐक्ट में जनता के अधिकारों की सुरक्षा की ओर नहीं, सरकारी आदेश लागू करने पर अधिक जोर दिया गया है। जबकि सच यह है कि घोटालों, आतंकवादी और नक्सली हमलों के युग में पुराने ढंग से काम नहीं चल सकता। पुलिस बल का आधुनिकीकरण आज बहुत जरूरी हो गया है। बलात्कार जैसे अपराधों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि महिला पुलिस की अधिक भरती के साथ ही पुलिस को स्त्रियों के प्रति संवेदनशील बनाया जाए। धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा भी उनके प्रशिक्षण में होनी चाहिए। सेवा शर्तों में सुधार के साथ उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा देना बहुत जरूरी है, ताकि लोग उन्हें मित्र की तरह देखें, शिकायत की दृष्टि से नहीं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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