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नए बंगाल की तलाश

पश्चिम बंगाल में विगत कई वर्षों में जिस तरह की जड़ता, हताशा और पराजय भाव का जन्म हुआ है, उसने सभी जागरूक लोगों को चिंताग्रस्त कर दिया है। चिंताएं इसलिए भी बढ़ी हैं, क्योंकि वाम दलों की साख घटी है,...

नए बंगाल की तलाश
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 23 Sep 2014 08:06 PM
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पश्चिम बंगाल में विगत कई वर्षों में जिस तरह की जड़ता, हताशा और पराजय भाव का जन्म हुआ है, उसने सभी जागरूक लोगों को चिंताग्रस्त कर दिया है। चिंताएं इसलिए भी बढ़ी हैं, क्योंकि वाम दलों की साख घटी है, जन-संघर्षों के प्रति संशय व संदेह का भाव बढ़ा है। शासकों में अन्याय-हिंसा, भ्रष्टाचार-बर्बरता की नग्न हिमायत ने जन्म लिया है। ममता बनर्जी ने जिस समय वाम के खिलाफ मोर्चा संभाला, बंगाल असभ्यता के शिखर था। हर क्षेत्र में सभ्यता के मानक नष्ट करने की प्रक्रिया आरंभ होती है ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ। बुद्धदेव भट्टाचार्य का शासन असभ्यता के विकास का शासन है। उसकी स्वाभाविक परिणति ममता विजय में हुई। ममता ने वाम को राजनीति में हरा दिया, लेकिन असभ्यता की मीनारों को तोड़ने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की, बल्कि स्वयं असभ्यता की मीनारों पर जाकर बैठ गईं।

ऐसे में, जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने स्त्री के अपमान और उत्पीड़न के मामले को जिस दृढ़ता के साथ उठाया है, उसने नए बंगाल के निर्माण की नींव डाल दी है। सभ्यता के नए आख्यान के निर्माण के लिए यह बिंदु बेहद महत्वपूर्ण है। आंदोलनकारी छात्र सरकार बनाने या गिराने के लिए आंदोलन नहीं कर रहे हैं, स्त्री के सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। स्त्री का बंगाल की राजनीति में मुद्दे के तौर पर केंद्र में आना मूल्यवान परिवर्तन का संकेत है। इस बिंदु से नए सभ्य बंगाल की संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं।
नया जमाना में जगदीश्वर चतुर्वेदी

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