थक चुकी शाम
‘मैं बहुत थक चुका हूं, अभी कुछ मत कहो।’ जैसे उनका तकिया कलाम हो। इसलिए उन्हें अब कोई कुछ कहता ही नहीं। लेकिन इससे खुश होने की बजाय वह दुखी रहने लगे हैं। उन्हें आभास हो चुका है कि घर से...
‘मैं बहुत थक चुका हूं, अभी कुछ मत कहो।’ जैसे उनका तकिया कलाम हो। इसलिए उन्हें अब कोई कुछ कहता ही नहीं। लेकिन इससे खुश होने की बजाय वह दुखी रहने लगे हैं। उन्हें आभास हो चुका है कि घर से लेकर ऑफिस तक जहां भी काम की बात हो, उन्हें हाशिये पर रखा जा रहा है। थके होने का यह बहाना बहुत आम है। अपने थकने की बात कहना 90 प्रतिशत मामलों में झूठा होता है। मनोवैज्ञानिक शैरोन रोज पॉवेल अपने शोध के हवाले से बताते हैं कि शारीरिक थकान की बात करना मानसिक समस्या है और मानसिक थकान की बात करना शारीरिक। वह कहते हैं कि दोनों बातें झूठ साबित होंगी, अगर आप रिचार्गिंग की प्रक्रिया से अवगत हों। वे कहते हैं कि अधिकांश मामलों में थके होने की बात करना यह दर्शाता है कि आपको अपने सामने पड़े काम को पूरा करने में दिलचस्पी नहीं। सवाल यह है कि आप दिलचस्पी जगाएं कैसे? यहां उस तकनीक को अपनाया जा सकता है, जिसे अब्राहम लिंकन अपनाते थे।
अब्राहम लिंकन थकान महसूस करते ही किसी मित्र के पास जाते या बगीचे में निकल जाते, कुछ ऐसा करते, जो उन्हें मनोरंजक लगता था। लिंकन ने यह बात भी कही कि उन्होंने जीवन में आधे से ज्यादा ऐसे काम किए, जो उन्हें पहली नजर में नीरस लगा था, लेकिन उन्होंने उसे पूरी प्रसन्नता के साथ पूरा किया, क्योंकि वे जरूरी काम थे। दरअसल, हर व्यक्ति के पास जरूरी कामों का जमावड़ा होता है। आप स्थगित काम जितने कम रखें, सहूलियत के साथ गुजर-बसर कर पाएंगे। आप किसी भी काम को लेकर जैसे ही यह सोचते हैं कि यह मेरे बस का नहीं, तो आपकी 72 मांशपेशियां सिकुड़ती हैं, लेकिन अगर आप मुस्कराते हुए उसे स्वीकार करते हैं, तो केवल 15 मांसपेशियों पर जोर पड़ता है। 15 की संख्या 72 से कितनी कम है, यह तो घोर आलसी को भी पता है।