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कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा

कई फिल्मी मुहावरे अब सामाजिक जीवन में घुल-मिलकर इंसानी मुहावरों में तब्दील हो गए हैं। इनमें एक प्रसिद्ध मुहावरा है आचार्य धर्मेद्र उच्चारित- कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। यह अब कई प्रसिद्ध, लेकिन...

कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 08 May 2015 09:15 PM
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कई फिल्मी मुहावरे अब सामाजिक जीवन में घुल-मिलकर इंसानी मुहावरों में तब्दील हो गए हैं। इनमें एक प्रसिद्ध मुहावरा है आचार्य धर्मेद्र उच्चारित- कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। यह अब कई प्रसिद्ध, लेकिन बासी मुहावरों में शामिल हो चुका है। जैसे- भारत एक कृषि प्रधान देश है या साहित्य समाज का दर्पण है आदि-आदि। लेकिन कुत्ते का खून पीने के संकल्प में एक साहस है। एक उद्बोधन है। इसमें गर्जन-तर्जन है। भाषाशास्त्र के अनुसार, यह दफा 302 की धारा है। हम सिर्फ पशु हत्या के इरादे से ही - तेरा खून पी जाऊंगा कहते हैं। असल में पीते नहीं। हम मुरगा और बकरा तो खाते हैं, मगर उनका खून नहीं पीते। हम सभ्य हैं। इधर कुछ ऐसा हुआ है कि आदमी और कुत्ता चर्चा में हैं। एक नया शोध यह है कि फुटपाथ कुत्तों के लिए होता है आदमियों के लिए नहीं। उन गरीब आदमियों के लिए भी नहीं, जो वाकई कुत्तों की जिंदगी जी रहे हैं। कुत्ता स्वयं एक सामाजिक जीव है। वह अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। लोग अक्सर गालीनुसार कहते हैं कि- बड़ी कुत्ती चीज हो यार।

कुत्ते की औलाद कहने की भी परंपरा है। टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों के आगे फेंक दूंगा- ये भी कुत्तों को दावत देना है। भंडारे की तरह का। सलमान खान की गाड़ी से अगर कुत्ता मर जाता, तो उसे जेल न होती। एक पूर्व फिल्मी गायक यदि यह साबित कर देता कि जो मरा वह कुत्ता था, तो न्यायपालिका शरमाने लगती। इस घटना में जो घायल हैं, उन्हें यदि उचित मुआवजा मिल जाता, तो वे स्वयं को आदमी साबित कर सकते थे। मगर क्या करें, जिसके भाग में कुत्ते की मौत लिखी हो, उसे कोई नहीं बचा सकता। ये भी सच है कि वफादारी सिर्फ कुत्तों में मिलती है। स्वर्ग के रास्ते पर युधिष्ठिर को एक कुत्ते ने ही गाइड किया था। कुत्तों के पक्ष में एक और बात है। अगर आप कभी घनी रात में अकेले हों और जंगल में रास्ता भूल जाएं, तो तारों की रोशनी में आप आसपास की बस्ती नहीं तलाश सकते। एक ही रास्ता बचता है कि जहां से कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे, समझो उसी तरफ गांव है। बस्ती है। जीवन है।

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