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स्कॉटलैंड की आजादी और बदलाव की चाहत

मैं बीस वर्षों से भी अधिक समय से वोट डाल रही हूं। लेकिन इससे पहले कभी नहीं लगा कि मेरे वोट से वाकई कुछ बदल जाएगा या फिर अपनी दुनिया बदलने की शक्ति मुझमें है। बैलेट पर अपनी पेंसिल चलाने से पहले तक मैं...

स्कॉटलैंड की आजादी और बदलाव की चाहत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 21 Sep 2014 07:45 PM
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मैं बीस वर्षों से भी अधिक समय से वोट डाल रही हूं। लेकिन इससे पहले कभी नहीं लगा कि मेरे वोट से वाकई कुछ बदल जाएगा या फिर अपनी दुनिया बदलने की शक्ति मुझमें है। बैलेट पर अपनी पेंसिल चलाने से पहले तक मैं हक्की-बक्की और दुविधा में थी। मुझे लगा कि ‘नहीं’ में वोट करना चाहिए। किंतु जब मेरा ध्यान स्वतंत्रता अभियान और उनके सपनों के स्कॉटलैंड पर गया, तब मुझे शर्म महसूस हुई। स्कॉटलैंड के अलग देश होने से जुड़ा  ‘हां’ का अभियान आशा से भरा था और इसमें सब तरह के लोग थे। ‘हां’ वोट कर रहे लोग मुझे बता रहे थे कि वे ऐसा इसलिए नहीं कर रहे कि स्कॉटलैंड बेहतर जगह है, बल्कि इसलिए कि एक नया स्कॉटलैंड और ज्यादा बेहतर होगा। वहीं ‘नहीं’ से जुड़ा अभियान हमें बताता था कि यह असंभव है, जो अजीब लगता था। दो ही विकल्प थे: छोटे देश के साथ कुछ बड़े की इच्छा या अलग-थलग रहते हुए अपेक्षाकृत बड़ा देश बने रहना। कुछ सप्ताह पहले सब बदल गया। एक जनमत सर्वे में ‘हां’ वोटों को आगे बताया गया। मुझे लगा कि यदि मैं ‘हां’ में वोट करती हूं, तो इसका अर्थ है कि मैं स्कॉटलैंड की आजादी चाहती हूं। यानी उर्न समझौते व सच्चाइयों से सामना, जो हर किसी को दुख पहुंचाएंगे। मैं अभियान से पीछे हटने की कोशिशें करने लगी। मुझे लगा कि ‘नहीं’ में वोट करने के तर्कसंगत व अच्छे कारण हैं, जो अभियान में गिनाए नहीं गए।

क्या ‘हां’ में वोट करना इतना आसान है? क्या ‘नहीं’ में वोट करना साहसिक फैसला होगा? क्या स्कॉटलैंड को स्वतंत्र देश होना चाहिए? मैं सोचती रही और कई रात सो नहीं पाई। वोटिंग से पहले की रात मैं देर तक टहलती रही। हर कोई मतदान के बारे में बातें कर रहा था। मैंने अपनी निराशा के आधार पर फैसला लिया। अगर मैं ‘नहीं’ में वोट डालती हूं और इससे विपत्ति आती है, तो मैं खुद को असहाय व दोषी मानूंगी। यदि मैं ‘हां’ में वोट करती हूं और इससे विपत्ति आती है, तो बदलाव लाने की स्थिति में रहूंगी। मैं दुविधा में थी। पोलिंग स्टेशन के बाहर दो पोस्टर थे- ‘बेहतर भविष्य के लिए ‘हां’ में वोट करें।’ ‘नहीं में वोट करें, इसमें कोई जोखिम नहीं है।’
दो बजे मैंने रेडियो ऑन किया। उधर से आवाज आई कि अभी ‘नहीं’ आगे है। फिर शाम पांच बजे पता चला कि स्कॉटलैंड ने ‘नहीं’के पक्ष में वोट किया है। मैंने ‘हां’ के पक्ष में किया था। इस फैसले से मुझे राहत मिली, नतीजे से नहीं, यह सोचकर कि अब मैं जवाबदेह नहीं। सात बजे जिंदगी फिर से सामान्य हो गई थी।

डेविड कैमरन, विलियम हेग टिप्पणी कर रहे थे, पर मैं यह सुन रही थी कि महंगाई काफी बढ़ गई है। मैं रो पड़ी। मैं नहीं जानती कि मैंने कभी स्वतंत्र स्कॉटलैंड चाहा, लेकिन मैं बदलाव चाहती थी। यह दुविधा कभी नहीं थी कि जीने के लिए बेहतर जगह मिले, सरहद चाहे जो भी हो।
द गाजिर्यन से साभार 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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