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सौतेली आंखों में भी हो सकता है प्यार

हमारे समाज में सौतेली माताओं के किस्से अक्सर कहे-सुने जाते हैं। कहावत तो मशहूर है ही कि मां दूसरी, तो बाप तीसरा। पुराने जमाने में अक्सर माएं ही सौतेली बनती थीं, क्योंकि स्त्री की तो दूसरी शादी होती...

सौतेली आंखों में भी हो सकता है प्यार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 11 Oct 2015 09:38 PM
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हमारे समाज में सौतेली माताओं के किस्से अक्सर कहे-सुने जाते हैं। कहावत तो मशहूर है ही कि मां दूसरी, तो बाप तीसरा। पुराने जमाने में अक्सर माएं ही सौतेली बनती थीं, क्योंकि स्त्री की तो दूसरी शादी होती नहीं थी। इसलिए पिता को सौतेला पिता बनने का मौका ही नहीं होता था। 

 
गुजरात उच्च न्यायालय के एक ताजा फैसले ने बरबस ही इस परंपरागत सोच की याद दिला दी। अदालत ने कहा है कि सौतेले माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं है कि वे सौतेले बच्चों की देखभाल भी करें। कानून सिर्फ अपने खूनी रिश्तों या सगों की देखभाल की ही जिम्मेदारी देता है। 
 
सौतेले बच्चों की देखभाल के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है। किसी को अपने सौतेले बच्चे की देखभाल के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे बच्चों की उचित देखभाल हो सके, इसके लिए कानून बनना चाहिए। इंग्लैंड में इस तरह का कानून बाकायदे मौजूद है। 
 
कानून बन भी गया, तो यह सवाल बचा रह जाएगा कि क्या सभी मानवीय संबंधों और इमोशनल बांडिंग के मसलों को कानून के जरिये हल किया जा सकता है? बच्चे को कितना प्यार चाहिए, कितनी केयर, शिक्षा, इलाज इसमें पल-पल पर घर के भीतर कानून कैसे हस्तक्षेप करेगा? आज जब महानगरों में तलाक तेज गति से बढ़ रहे हैं, तो किसी बच्चे की मां सौतेली होगी, और किसी का पिता। ऐसे में, इन बच्चों की देखभाल कैसे होगी? या कि सिर्फ इन्हें कानून, सरकार और किसी एनजीओ के भरोसे छोड़ दिया जाएगा? अकेलेपन से उपजी तमाम किस्म की मुसीबतों, अपराध और नशे की  दुनिया में शामिल होने से इन्हें किस तरह रोका जाएगा या घर और बाहर इन्हें हर तरह की हिंसा और नफरत का सामना करना पड़ेगा?
 
वैसे यह भी सच है कि सौतेली मां की क्रूर छवि से इतर ऐसी माताएं भी देखने में आती हैं, जो विमाता होते हुए भी बच्चों को अपने दिल से लगाकर रखती हैं। उनके लिए बच्चे, बच्चे होते हैं। उनमें अपने-पराए का भेद नहीं होता। इन्हें देखकर लोगों को अकसर पता नहीं चल पाता कि वे बच्चे या बच्ची की सगी मां नहीं हैं। ऐसे पिता भी तो होते ही होंगे। 
 
दरअसल, कानून से पहले इसी भावना को विकसित करने की जरूरत है, जिससे कि बच्चे से कम से कम उसके घर और छत का सहारा सिर्फ सौतेले होने के कारण न छीन लिया जाए। मां या पिता तो ईश्वर या कुदरत ने पहले ही छीन लिए। इन बच्चों को प्यार और सहानुभूति की दरकार है, मासूम  या अमर प्रेम  जैसी फिल्मों में दिखाए गए मां के किरदार की तरह। फिल्मों से इतर अगर फिल्मी दुनिया के लोगों की ही बात करें, तो करीना कपूर के बारे में कहा जाता है कि वह सैफ अली खान के बच्चों को बहुत प्यार करती हैं। हो सकता है कि ऐसे उदाहरण बहुतों को बहुत कुछ सिखा सकें और इस तरह बच्चे सौतेले माता-पिता की आंखों में भी अपने लिए प्यार पढ़ सकें।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
 
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