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लोग गाते-गाते चिल्लाने लगे हैं

पिछले दिनों अमेरिका से इजरायल जा रही फ्लाइट के संचालक सांसत में पड़ गए। हुआ यह कि एक विराट दाढ़ी वाले यात्री ने निर्धारित सीट पर बैठने से मना कर दिया। वजह? उनके बगल में महिला यात्री के लिए स्थान...

लोग गाते-गाते चिल्लाने लगे हैं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 11 Apr 2015 08:50 PM
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पिछले दिनों अमेरिका से इजरायल जा रही फ्लाइट के संचालक सांसत में पड़ गए। हुआ यह कि एक विराट दाढ़ी वाले यात्री ने निर्धारित सीट पर बैठने से मना कर दिया। वजह? उनके बगल में महिला यात्री के लिए स्थान निर्धारित था और उनका धर्म किसी अनजानी महिला के साथ बैठने की इजाजत नहीं देता। कहने की जरूरत नहीं कि इससे हंगामा बरपा हो गया। दुनिया भर के एयर लाइन कारोबारी इस समय परेशान हैं। ऐसी घटनाएं लगातार आकार ले रही हैं। अमेरिका से येरुशलम जाने वाली एक और उड़ान का मिलता-जुलता वाकया सुन लें। धर्म का हवाला देते हुए एक अन्य सज्जन ने अपनी सीट बदलने का आग्रह किया,  क्योंकि उनके अगल-बगल महिलाएं बैठी हुई थीं। बात यहीं खत्म नहीं होती। एक जहाज में ऐस्ले (इनसाइड कॉर्नर वाली)  सीट पर पति बैठा हुआ था और पत्नी बीच वाली पर। खिड़की से लगी हुई सीट जिस मुसाफिर की थी,  वह पति से गुजारिश करने लगा कि वे बीच में आ जाएं। कारण वही, ‘धर्म।’ पति महोदय को बीच में बैठने से नफरत थी। वे अड़ गए, हम अपनी नियत जगहों को क्यों बदलें? कोई और यात्री सहयोग को तैयार नहीं हुआ, लिहाजा उड़ान में घंटों की देरी हुई।

खुद को सबसे समझदार और आधुनिक मानने वाले अमेरिका में हफ्ते-दर-हफ्ते ऐसे विवाद शक्ल ले रहे हैं। इनके चलते कुछ उड़ानों को रद्द तक करना पड़ गया। इस तरह के बढ़ते वाकयों पर पश्चिम में बहस छिड़ गई है। यहूदी रब्बियों का एक गुट इसे धार्मिक अधिकार बताता है,  जबकि दूसरा नरम रुख रखता है। क्या यह सिर्फ यहूदियों की कट्टरता का मामला है? यकीनन नहीं। सभी धर्मों और समाजों में कट्टरपंथियों की बन आई है। यह खतरनाक है।
बोको हराम को ही ले लीजिए। इसके आतंकवादियों ने निरपराध ईसाई नवयुवतियों पर कहर ढा रखा है। वे उन्हें उठा ले जाते हैं और उनका जबरन धर्म परिवर्तन करवा देते हैं। ऐसा नहीं है कि यह कहर सिर्फ दूसरे धर्म को मानने वाली महिलाओं पर टूटता है। औरतों की परदादारी को लेकर अपने देश में भी खौफनाक किस्से सामने आए हैं। कश्मीर में चरमपंथियों के कुछ गुट रह-रहकर धमकाते हैं कि महिलाएं ब्यूटी पार्लरों में न जाएं और खुद को सिर से पांव तक ढककर रखें।

यहां कश्मीरी महिलाओं की दाद देनी होगी। तेजाब से चेहरा झुलसाए जाने की धमकी के बावजूद वे डरी नहीं, झुकी नहीं। घाटी को अफगानिस्तान बनाने की साजिशें उन्हीं के हौसलों के कारण आकार नहीं ले सकी हैं। इस मामले में ईसाई रूढ़िवादी भी पीछे नहीं हैं। रोमन कैथोलिक पंथ में मान्यता है कि परिवार नियोजन नहीं करना चाहिए। उनके आला धर्माधिकारी अक्सर इस तरह की अपीलें जारी करते रहते हैं। इसका प्रभाव भी पड़ता है। अमेरिका और यूरोप में रहने वाले मेरे तमाम परिचितों के चार से सात तक बच्चे हैं।

बच्चों पर याद आया। खुद हिन्दुस्तान में हिंदुत्व के स्वघोषित ठेकेदार उकसाते हैं कि हिंदू महिलाओं को बड़ी तादाद में शिशु जनने चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो एक दिन ऐसा आएगा, जब ‘हमारी’ संख्या नामालूम-सी रह जाएगी। वे तमाम आंकड़ों की खौफनाक व्याख्याएं पेश करते हैं। गंगा-जमुनी संस्कृति को अपनी संतानों से ऐसे आघात सहने की आदत है। सवाल उठता है कि क्या पूरे संसार में असहिष्णुता बढ़ रही है?  इसका जवाब हां के अलावा कुछ और नहीं हो सकता। कुछ दिन पहले केन्या के एक विश्वविद्यालय में सोते हुए नौजवानों पर दहशतगर्दों ने हमला बोल दिया। करीब 150 छात्र मारे गए। ये लोग सिर्फ विद्यार्थी नहीं थे। इनके हाथों में उस मुल्क का भविष्य था। पाकिस्तान में पेशावर की घटना आपको याद होगी, जहां स्कूल में घुसकर आतताइयों ने अबोधों पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं। 132 बच्चे काल के गाल में समा गए।

दूसरों के घरों के चिराग बुझाने वाले खुद को किसी भी मजहब की रोशनी में नहाया हुआ कैसे कह सकते हैं?  इन पंक्तियों को पढ़कर कृपया यह मत समझ लीजिएगा कि सिर्फ धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है। हम बड़ी तेजी से अपनी निजी जिंदगी में आकुल-व्याकुल होते जा रहे हैं। पिछले दिनों पुरानी दिल्ली में बेहद खौफनाक घटना घटी। पांच अप्रैल की रात एक मोटर साइकिल सवार तुर्कमान गेट के इलाके में कार से टकरा गया। कार सवारों ने उसे बेदर्दी से पीटना शुरू कर दिया। यह इलाका भीड़ से भरा रहता है। बेरहमी से पिटता हुआ युवक मदद की गुहार लगाने लगा। लोग इकट्ठा हो गए, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की। पीटने वालों ने उसे इस हद तक पीटा कि उसकी जिंदगी की डोर टूट गई। इस सारे मामले का सबसे खौफनाक पहलू यह है कि मदद की गुहार लगाने वाला वह अकेला नहीं था।

आतताई उसके बच्चों के सामने उसे पीट रहे थे। वे सहायता के लिए आर्तनाद कर रहे थे। पिता को इस तरह से दम तोड़ते देखना संतानों के लिए कितना दर्दनाक रहा होगा!  कमाल! पुलिस ने बाद में तथाकथित आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, अब उसे चश्मदीदों की तलाश है। घटना दजर्नों लोगों के सामने हुई, पर कोई गवाही देने को तैयार नहीं। हम खुद को दहशतगर्दों, आतताइयों, आक्रामकों या अपराधियों के हवाले कर शांत कैसे बैठे रह सकते हैं? हर काम पुलिस और फौज कैसे कर सकती है?  मानवता का इतिहास गवाह है कि कुछ खराब लोग एकजुट होकर शांतिप्रिय लोगों के बहुमत को प्रताड़ित करते हैं। रावण ने जब सीता का हरण किया था, तो खुद उसके परिवार में तमाम लोग इस जघन्य कृत्य के खिलाफ थे। वे सत्ता के आतंक के समक्ष चुप रहे। नतीजतन श्री राम के हमले में स्वर्ण नगरी खाक हो गई। संसार के हर मजहब और समाज में इस तरह की कहानियां बिखरी पड़ी हैं। हम उन्हें श्रद्धा से सुनते जरूर हैं, पर गुनते कभी नहीं।

इसीलिए चारों ओर तरह-तरह की दहशत का वातावरण गहराता जा रहा है। 21वीं सदी में जैसे-जैसे संचार और अन्य सुविधाओं के साधन बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे ही असहिष्णुता भी आकार ग्रहण कर रही है। खुद को ‘विश्व नागरिक’ मानने वालों के लिए यह बड़ी चुनौती है। ये वे लोग हैं, जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। अकेले फेसबुक की सदस्य-संख्या संसार के सर्वाधिक आबादी वाले मुल्क चीन की जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। ‘ट्विटर’, ‘व्‍हाटसएप’ और ऐसे अन्य संसाधनों को जोड़ लें, तो यकीनन दुनिया का हर समझदार शख्स इनका उपयोग करता मिलेगा। क्या वे इस शक्ति का साझा प्रयोग नहीं कर सकते? उन्हें ऐसा  करना ही होगा, क्योंकि इन्हीं साधनों के जरिए कट्टरपंथी, नौजवानों और किशोरों को भड़का रहे हैं।

आईएसआईएस का सबसे बड़ा हथियार सोशल मीडिया है। हमें ऐसे लोगों को इसी के जरिए मुंहतोड़ जवाब देना होगा। आपका एक सकारात्मक ‘जुमला’ बहुतों की जिंदगी को बहकने से बचा सकता है। जब साथ के लोग गाते-गाते चिल्लाने लगें, तो तटस्थ चुप्पी जानलेवा बन जाती है। हम अपनी धरती को भेड़ियों के हवाले नहीं कर सकते। जैसा कि मैंने पहले अनुरोध किया, रावण के भाइयों और अंत:पुर ने यदि अपनी आवाज बुलंद की होती, तो हजारों लंकावासी तबाही से बच सकते थे। इस बार यह जिम्मेदारी हमारे और आपके ऊपर है।
shashi.shekhar@livehindustan.com
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