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संकीर्ण राजनीति की नई प्रयोगशाला

करीब एक पखवाड़े पहले सुबह-सुबह मोटरसाइकिल पर सवार चार लोगों ने लोकप्रिय टीवी न्यूज चैनल पुथिया थलक्ष्मुरई के चेन्नई स्थित मुख्यालय पर बम से हमला किया। संयोग से कोई खून-खराबा नहीं हुआ। ऐसे वक्त में,...

संकीर्ण राजनीति की नई प्रयोगशाला
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 24 Mar 2015 08:38 PM
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करीब एक पखवाड़े पहले सुबह-सुबह मोटरसाइकिल पर सवार चार लोगों ने लोकप्रिय टीवी न्यूज चैनल पुथिया थलक्ष्मुरई के चेन्नई स्थित मुख्यालय पर बम से हमला किया। संयोग से कोई खून-खराबा नहीं हुआ। ऐसे वक्त में, जब हिंदुत्ववादी ताकतें तमिलनाडु में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही हैं, इस घटना ने राज्य में अभिव्यक्ति की आजादी और उदार सोच को करारी चोट पहुंचाई है। दरअसल, विवाद आठ मार्च को यानी महिला दिवस पर प्रसारित किए जाने के लिए तैयार एक कार्यक्रम को लेकर था। यह कार्यक्रम ‘मंगलसूत्र’ की प्रासंगिकता पर एक परिचर्चा से जुड़ा था, खासकर उन महिलाओं के संदर्भ में, जिन्हें उनके पतियों ने छोड़ दिया है। इस कार्यक्रम का शीर्षक था ‘वरदान या शाप।’ मगर इस परिचर्चा के 30 सेकंड का विज्ञापन ही हिंदुत्व के खैरख्वाहों को इतना भड़का दिया कि वे चैनल के दफ्तर में फोन करके गाली-गलौज पर उतर आए।

उन्होंने फोन करके संबंधित चैनल को आगाह किया कि उसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा और यदि यह कार्यक्रम प्रसारित हुआ, तो इसके और भी घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। भाजपा की स्थानीय इकाई ने न सिर्फ इस आंदोलन का समर्थन किया, बल्कि चैनल के बहिष्कार तक की धमकी भी दी। न्यूज चैनल ने कार्यक्रम के प्रसारण को रोक दिया और उसकी दोबारा समीक्षा करने का फैसला किया। मगर इसका असर नहीं हुआ और आठ मार्च को हिंदुत्व के हितैषी चैनल के दफ्तर पहुंच गए और उसके खिलाफ नारे लगाने लगे। इस पूरी कवायद को शूट कर रहे चैनल के एक कैमरामैन के साथ नारेबाजी कर रहे लोगों ने न सिर्फ बदसलूकी की, बल्कि उसका कैमरा भी तोड़ डाला। पुलिस की मौजूदगी से भी प्रदर्शनकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ा और इसके चार दिन बाद ही बम हमले की घटना को अंजाम दिया गया।

पिछले कुछ समय से तमिलनाडु में उदार विचारों पर हमले बढ़ गए हैं। अभिनेत्री खुशबू पर भी उनके एक बयान के लिए हमला हुआ था। खुशबू ने शादी से पूर्व यौन रिश्ते के बारे में बयान दिया था। इसी तरह, चर्चित तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को अपने ही शहर में अपनी एक किताब के लिए कट्टरपंथी तत्वों के हाथों अपमानित होना पड़ा। दरअसल, उनकी किताब गरीब नि:संतान दंपति की हालत और स्थानीय मंदिर की एक परंपरा पर है। आरएसएस-भाजपा से जुड़े संगठन ‘हिंदू मुन्नानी’ ने मुरुगन और उनकी किताब मधोरुबगम के खिलाफ आपत्तियां उठाईं, हालांकि तमिल में यह किताब चार साल पहले की छप चुकी है। बहरहाल, यह कहते हुए प्रदर्शन किए जाने लगे कि इससे स्थानीय समुदायों की भावना को ठेस लगी है, इसलिए इस किताब को प्रतिबंधित किया जाए। इस सबसे नाराज मुरुगन ने अपने फेसबुक पेज पर बतौर लेखक अपनी ‘मौत’ की घोषणा कर दी और प्रकाशकों से गुजारिश की कि वे उनकी किताब न बेचें और पाठकों से कहा कि वे उनकी प्रतियां जला दें।

तमिलनाडु अंतर्विरोधों का पुलिंदा है, जहां साक्षरता दर काफी ऊंची है, और रूढ़िवाद व उदारवादी सोच साथ-साथ मिलते हैं। इस सूबे ने देश में कई सामाजिक सुधारों व प्रगतिशील विचारों की अगुवाई की है। वैसे भी, आपका नजरिया चाहे जो भी हो, उसमें हिंसा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। विचारों का फर्क बमों से नहीं पाटा जा सकता। दुर्भाग्य से राज्य सरकार इस मसले को सामान्य कानून-व्यवस्था के सवाल के तौर पर देख रही है। सत्ता में बैठी अन्नाद्रमुक ने तो इस वारदात पर अपना मुंह भी नहीं खोला है, जबकि वाम दलों, कांग्रेस, डीएमके और यहां तक कि छोटी तमिल पार्टियों ने भी इस घटना की तीखी भर्त्सना करते हुए बेहद तल्ख बयान जारी किए हैं। वैसे तो, हिन्दुस्तान के दूसरे इलाकों की तरह ही तमिलनाडु में भी उदार विचारधारा हमेशा दबाव में रही है, मगर अब लग रहा है कि द्रविड़ आंदोलन से उपजी पार्टियों व हिंदुत्ववादी ताकतों के बीच संघर्ष की स्थिति बन रही है।

समाचार चैनल तो अपना मूल काम कर रहा था। अपने दर्शकों को मंच मुहैया करा रहा था कि महिला दिवस के मौके पर वे मंगलसूत्र के बारे में अपनी राय जाहिर करें। हिंदू, बल्कि कुछ ईसाई भी मंगलसूत्र पहनते हैं। पर हिंदू मुन्नानी ने इसे न सिर्फ चिढ़ाने वाला कृत्य माना, बल्कि दावा किया कि केवल हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। संगठन ने इस तथ्य को छिपा लिया कि चैनल पहले ही तलाक से जुड़ा एक कार्यक्रम प्रसारित कर चुका है, जिसमें इसके कानूनी पहलुओं की पड़ताल की गई थी। हिंदू मुन्नानी संगठन का दावा है कि वह हिंदुओं के हितों की पैरोकारी कर रहा है, लेकिन उसने एक व्यक्ति के निजी अधिकारों और चयन की आजादी के मुद्दे को आसानी से भुला दिया।

यह सही है कि मंगलसूत्र पहनने की परंपरा को हिंदुओं में पर्याप्त सम्मान प्राप्त है, लेकिन इस रवायत को निभाने के मामले में धर्म का काफी उदार नजरिया है। विवाहित महिलाएं सड़कों पर चेन झपटे जाने के डर से अक्सर अपना मंगलसूत्र घर पर ही रखकर बाहर निकलती हैं। दरअसल, 60-70 के दशक की फिल्मों ने मंगलसूत्र को अधिक महिमामंडित किया। फिर सवाल यह भी है कि जिन औरतों को उनके पतियों ने छोड़ दिया, उनका क्या? क्या उन्हें तब भी मंगलसूत्र पहनना चाहिए? इसी तरह, यह हमेशा ही एक व्यक्ति की निजी पसंद का मसला रहा है कि वह सगाई की अंगूठी पहने या न पहने। फिर अचानक इन परंपराओं को लेकर इतना दबाव क्यों? अचानक हिंदू मुन्नानी को तकलीफ क्यों हो उठी? दिलचस्प बात यह है कि किसी भी महिला संगठन ने इस कार्यक्रम के खिलाफ आवाज नहीं उठाई।

विवाह के मामले में ही एक अलग फलक पर तमिलनाडु बेहद प्रगतिशील प्रांत रहा है। पिछली सदी के पचास के दशक की शुरुआत में, जब ई वी रामास्वामी यानी पेरियार द्वारा शुरू किया गया द्रविड़ आंदोलन अपने उत्कर्ष पर था, तब इस मसले को एक अलग नजरिये से देखा गया था। चूंकि अपने समूचे ताने-बाने में द्रविड़ आंदोलन ब्राह्मण-विरोधी था, इसलिए राज्य विवाह कानून में भी बदलाव का फैसला किया गया था। तब ‘सेल्फ रेसपेक्ट मैरिज’ की अवधारणा अपनाई गई, जो यह साफ कहती है कि ब्राह्मण पुरोहित के बगैर भी शादियां संपन्न हो सकती हैं। और सिर्फ कन्या तथा वर द्वारा एक-दूसरे को माला पहनाने को भी वैध विवाह माना जा सकता है।

यही नहीं, अनेक उदारवादी लेखक भी इस तथ्य की याद दिलाते हैं कि प्राचीन तमिल साहित्य में मंगलसूत्र का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता। जाहिर है, रूढ़िवादी लोग पहचान की राजनीति के जरिये अपने लिए राजनीतिक मौके तलाश रहे हैं। अन्य राजनीतिक पार्टियों को इस स्थिति से राजनीतिक तौर पर ही निपटना चाहिए। राज्य सरकार से  यह अपेक्षा की जाती है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी को पर्याप्त संरक्षण मुहैया कराएगी। रूढ़िवादियों का दावा है कि वे देश के सांस्कृतिक-धार्मिक ताने-बाने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे सदियों पुराने उदार मूल्यों और विचारों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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