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तृष्णा का साथ

हर किसी की तरह उसे भी अमीर बनने की इच्छा हुई। अमीर बनने की कामना से वह एक संन्यासी के पास गया। संन्यासी के पास जाकर बोला,  ‘बाबा, मैं बहुत गरीब हूं,  मुझे कुछ दो।’ ...

तृष्णा का साथ
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 15 Dec 2014 09:44 PM
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हर किसी की तरह उसे भी अमीर बनने की इच्छा हुई। अमीर बनने की कामना से वह एक संन्यासी के पास गया। संन्यासी के पास जाकर बोला,  ‘बाबा, मैं बहुत गरीब हूं,  मुझे कुछ दो।’  संन्यासी ने कहा,  ‘मैं अकिंचन तुम्हें क्या दे सकता हूं?  मेरे पास तो अब कुछ भी नहीं है।’ संन्यासी ने उसे बहुत समझाया,  मगर वह नहीं माना। तब बाबा ने कहा,  ‘अच्छा, यदि तुम इतना आग्रह कर रहे हो,  तो जाओ नदी के किनारे एक पारस का टुकड़ा है,  उसे ले जाओ। मैंने उसे फेंका है। उस टुकड़े से लोहा सोना बन जाता है।’  वह दौड़ा-दौड़ा नदी किनारे गया। वहां से पारस का टुकड़ा उठा लिया और बाबा को नमस्कार करके घर की ओर चला। वह अभी सौ कदम ही गया होगा कि उसके मन में कुछ विचार उठा और वह उल्टे पांव संन्यासी के पास लौटकर बोला,  ‘बाबा,  यह लो तुम्हारा पारस,  मुझे नहीं चाहिए।’ संन्यासी ने पूछा, ‘ क्यों?’  उसने कहा,  ‘बाबा!  मुझे वह चाहिए,  जिसे पाकर तुमने पारस को ठुकराया है। वह पारस से भी कीमती है,  इसलिए आप वही मुझे दीजिए।’  बाबा ने कहा,  ‘तो ठीक है,  तुम अपनी तृष्णाओं को छोड़ दो,  तृष्णा को छोड़ते ही सब कुछ स्वयं पा लोगे।’

एक मशहूर मनोवैज्ञानिक का कहना है कि तृष्णा जैसा साथी ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। संगी-साथी, घर-परिवार, पद-प्रतिष्ठा, लोक-संग्रह, स्वास्थ्य, धन आदि सभी परिस्थिति विशेष में छूट सकते हैं,  लेकिन एक तृष्णा ही ऐसी होती है,  जो कभी नहीं छूटती। मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि आजीवन कारावास के कैदियों तक के दिल में तृष्णा ताना-बाना बुनती रहती है। तृष्णा उन्हें भी नहीं छोड़ती। एकांतवासी भी तृष्णा के मोहपाश से नहीं बच पाता। तृष्णा आनंदपूर्ण व्यक्ति को भी खेदयुक्त बना देती है। संसार के बड़े दुखों में एक तृष्णा है,  इस दुख से केवल आवश्यकताओं में कटौती करके ही बचा जा सकता है।

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