फोटो गैलरी

Hindi Newsसंस्कृति की सूखती धार का संरक्षण

संस्कृति की सूखती धार का संरक्षण

वरुणा और असि नदियों के पुनर्जीवन के प्रयासों से आशा की किरणें फूटी हैं। कोई पांच हजार सालों के ज्ञात-अज्ञात इतिहास की परतों में लिपटे वाराणसी या काशी का अस्तित्व यदि गंगा से है, तो ‘वरुणा और...

संस्कृति की सूखती धार का संरक्षण
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 06 Apr 2015 08:40 PM
ऐप पर पढ़ें

वरुणा और असि नदियों के पुनर्जीवन के प्रयासों से आशा की किरणें फूटी हैं। कोई पांच हजार सालों के ज्ञात-अज्ञात इतिहास की परतों में लिपटे वाराणसी या काशी का अस्तित्व यदि गंगा से है, तो ‘वरुणा और असि’ नदियां भी इस शहर के भौगोलिक-सांस्कृतिक अस्तित्व को धार देती हैं, अपनी सिमटती-सूखती धारा से ही सही। वरुणा और असि नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में विकसित करने पर दोनों नदियों को नया जीवन दान मिलेगा। केंद्र सरकार ने देश की नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। इनमें काशी की उपेक्षित सी इन सहायक छोटी नदियों को शामिल किए जाने से कई उम्मीदें जगी हैं। बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही असि को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाने पर आश्चर्य स्वाभाविक है। नाले में तब्दील हो चुकी इस नदी पर हुए अतिक्रमण और इसकी जलधारा को अविरल बनाना चुनौती भरा काम है, पर असंभव नहीं। वरुणा में पानी तो है, पर वह रुकता नहीं। इसे रोकना जरूरी है। वरुणा कोरीडोर योजना केंद्र सरकार की इस मुहिम में सहायक हो सकती है।

जल प्रकृति के संरक्षण में और वैज्ञानिक शब्दावली के अनुसार प्राकृतिक संतुलन एवं जैव विविधता का आधार रहा है। हमारी मूल संस्कृति और इस विशाल देश की पूरक संस्कृतियों का विकास नदियों-जलाशयों के संसर्ग और संरक्षण में हुआ। इसलिए हमारी सभी नदियों और जलाशयों की पूजा होती है।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती..
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।
यह प्रार्थना करते हुए हम इन जीवनदायिनी बड़ी नदियों का स्मरण और इनमें श्रद्धापूरित वैचारिक अवगाहन करते रहे हैं। इन नदियों के अस्तित्व में पूरक-सहायक नदियों का अवदान कम महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे पहले ‘जीवनदायिनी’ और ‘माता’ नाम से जिस पवित्र नदी की जलधारा का स्मरण करते हैं, वह है-गंगा। गंगा की की दो सहायक-पूरक नदियों को ‘ट्रिब्यूटरी’ के रूप में भारतीय तथा अंग्रेज इतिहासकारों ने महत्व दिया। वैदिक-पौराणिक साहित्य में वर्णित प्राचीन नदियों के रूप में ‘वरुणा’ और ‘असि’ नदियों का अस्तित्व सैकड़ों साल पुरानी हमारी नदी-तटों पर पनपी संस्कृति व सभ्यता की कथाओं- किंवदंतियों से जुड़ा है। वाराणसी शहर के प्रारंभिक दक्षिणी छोर पर उत्तरवाहिनी गंगा में मिलती ‘असि’ नदी और प्रवाह के अंतिम उत्तरी छोर पर अपने प्रवाह से गंगा की गोद भरती वरुणा केवल जलधाराएं नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संस्कृति की समृद्ध स्रोतस्विनी हैं।

वाराणसी नाम का अस्तित्व ही वरुणा और असि से है। मोक्षदायिनी गंगा तो वाराणसी को प्रकृति की अनूठी देन है। काशी में इन्हीं तीनों नदियों, गंगा, असि और वरुणा की धारा के साथ-साथ हमारी संस्कृति और निरंतर गतिमान परंपरा की अजस्र धारा सदियों से प्रवाहित होती रही है। असि-गंगा संगम और वरुणा-गंगा संगम केवल भौगोलिक ही नहीं, हमारे विविधतापूर्ण सांस्कृतिक जीवन की तमाम अदृश्य धाराओं के भी संगम हैं। काशी के दक्षिणी छोर पर उसकी धार्मिक, भौगोलिक और पौराणिक सीमा जहां समाहित होती है, उस स्थल को हम अस्सी के नाम से जानते हैं। इसका पुराना और शुद्ध नाम कभी असि था। बोलचाल की भाषा में अस्सी हो गया। यह असि धार और मुहल्ला काशी की तमाम धार्मिक गतिविधियों व कर्मकांड की सीमारेखा है।

इसी मुहल्ले के पास से असि नदी बहती थी, जिसकी धारा को अब मोड़ दिया गया है। अस्सी घाट पर ही असि-गंगा संगम है, जहां अधिष्ठाता देव संगमेश्वर महादेव स्थापित हैं। यह मंदिर और बगल में गोस्वामी तुलसीदास का साधना स्थल व गोस्वामी जी द्वारा स्थापित हनुमान मंदिर इस क्षेत्र को विशिष्ट बनाते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस  को यहीं पर पूर्णता प्रदान की। आज भी असि नदी का कल-कल प्रवाह पुराने लोगों की स्मृतियों में सुरक्षित है। लोग इसमें स्नान करते, पूजा-पाठ संपन्न करते थे। इसी नदी के तट पर बना प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर, प्रसिद्ध मछली बंदर मठ, रामानुज कोट मंदिर संस्थान, शीतलदास का प्रसिद्ध अखाड़ा तथा अनेक धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व के स्थल थे। मंदिरों में इसी नदी के जल से बना भोग-प्रसाद चढ़ाया जाता था। अनेक संस्कृतियां इस नदी की धारा के किनारे पनपीं और फैलीं। इनमें स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा प्रवर्तित यात्राओं और धार्मिक आयोजनों की श्रृंखला अब इतिहास बन चुकी है।

काशी में ‘काश्यां मरणान्मुक्ति:’ यानी काशी में मरने से सीधे मुक्ति मिलती है की मान्यता प्राचीन है। यहां लोग मृत्यु का वरण करने आते रहे हैं। इसी नदी के तट पर ‘मुमुक्ष भवन’ है, बना जहां बहुतेरे वयोवृद्ध मोक्ष की कामना में जी रहे हैं। यह ऐसा शहर है, जहां मरण भी मंगल का अवसर माना गया है। वाराणसी के इस ऐतिहासिक पक्ष पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि असि नदी की धारा 40 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके गंगा में मिलती है। अनेक साधु-संतों के आश्रम और कुटीर इसके तट पर दशकों से बसे हैं। पर यह धारा सूख रही है। गंगा-असि संगम से मात्र 40 किलोमीटर दूर, इसके उद्गम स्थल में कभी 15 तालाब इस नदी के जल स्रोत थे। अब वहां सिर्फ पांच तालाब बचे हैं। इसीलिए यह सदनीरा अब सूखती जा रही है।

अपने तट पर अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को समेटे वरुणा नदी का नाम वैसे तो वाराणसी शहर से जुड़ा है। पर प्राय:100 किलोमीटर के अपने प्रवाह क्षेत्र में अपने अस्तित्व के ज्ञात दो सौ साल के इतिहास में यह निरंतर प्रवाहित रही है। भदोही जिले के पास उद्गम स्थल से निकलकर पूर्व से दक्षिण पूर्व की ओर बहने वाली वरुणा जल के देवता वरुण के नाम से साम्य रखती है। वरुणा के तटवर्ती जौनपुर, आंशिक भदोही और वाराणसी के विभिन्न स्थानों पर स्थित धार्मिक स्थल और काशी की पंचकोशी यात्रा इस नदी के सांस्कृतिक संरक्षण की साक्षी है। ‘वारुणी’ नामक स्नान-दान पर्व और ‘प्याला का मेला’ वरुणा तट पर संपन्न होने वाले आयोजनों में प्रमुख हैं।

मान्यता है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोक नृत्य ‘धोबिया’ का यहीं पर विकास हुआ। काशी में वरुणा-गंगा संगम स्थल पर स्थापित आदिकेशव मंदिर महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। ‘थियोसॉफी’ के केंद्र के रूप स्थित जे कृष्णमूर्ति का वसंता कॉलेज फाउंडेशन और पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव स्थल के रूप में इसकी एक सांस्कृतिक महत्ता है। यहीं पर ऐतिहासिक मकबरा ‘रौजा’ है। इसके अस्तित्व की रक्षा के प्रयास जारी हैं, लेकिन अनियोजित व अनियंत्रित नगर निर्माण का दबाव झेल रही यह नदी कराह रही है।

प्राचीन काल से दोनों नदियों से अनाज, लकड़ियों और वन-उपजों का परिवहन होता रहा। वरुणा और असि नदियों से होकर छोटी नौकाएं माल-सामान गंगा की मुख्य धारा तक पहुंचाती थीं। वाराणसी के अन्वेषक विद्वान जेम्स प्रिंसेप के प्रसिद्ध और प्राचीन नक्शे में भी इन दोनों नदियों का मुख्य जलमार्ग के रूप में विवरण है। ऐसे में, अब राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में विकसित होने पर दोनों नदियों के दिन बहुरेंगे, इसमें संदेह नहीं।
 (ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें