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सूफी कलाम का शिखर

पंजाब की धरती पर 1680 ई. में पैदा हुए बुल्लेशाह की रचनाओं को ‘सूफी कलाम का शिखर’ कहा जाता है। उनकी कविताएं सदियों से लोगों की जुबान पर बसी हुई हैं। जिस तरह कबीर-रैदास आदि संत कवियों ने...

सूफी कलाम का शिखर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 20 Dec 2014 09:53 PM
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पंजाब की धरती पर 1680 ई. में पैदा हुए बुल्लेशाह की रचनाओं को ‘सूफी कलाम का शिखर’ कहा जाता है। उनकी कविताएं सदियों से लोगों की जुबान पर बसी हुई हैं। जिस तरह कबीर-रैदास आदि संत कवियों ने समाज में गैरबराबरी और धार्मिक पाखंड के खिलाफ तीखे प्रहार किए हैं और लोगों को सहजता से ईश्वर के प्रति अनुराग का संदेश दिया है, वैसे ही बुल्लेशाह ने भी सामाजिक कुरीतियों, र्धािमक पाखंड और धर्म के नाम पर नफरत और कर्मकांडों का विरोध किया है। उन्होंने प्रेम का ही पाठ पढ़ाया। महत्वपूर्ण यह कि उन्होंने अपनी बातें जनसामान्य की भाषा और लय में रखी हैं। उन्होंने प्रेम की तरह विरह की भी अद्वितीय कविताएं रची हैं। कहना न होगा कि प्रकट रूप में उनकी रचनाएं भौतिक जगत के आमफहम प्रसंगों, चीजों को उद्धृत करती हैं, पर उनका हमेशा एक उच्च आध्यात्मिक आशय रहता है। सूफी संत बुल्लेशाह और उनकी शायरी, रचना भोला ‘यामिनी’, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, मू. 150 रु.

धारा के साथ-साथ
यह एक यात्रा वृत्तांत है। लेखक ने अपनी युवावस्था में नदी के रास्ते सफर का सपना देखा था, जो बेहद दिलचस्प अंदाज में पूरा हुआ। कोई चार दशक बाद उसी सफर की कहानी अब सामने है। इस सफर की शुरुआत दिल्ली के ओखला हेड नहर से शुरू हुई थी और यमुना से होते हुए हुगली तक पहुंची थी। बीच में गंगा नदी का लंबा संग-साथ। दिल्ली से कोलकाता की यह यात्रा भौगोलिक तो है ही, यमुना-गंगा के किनारे बसे उन गांव-नगरों की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विशिष्टताओं का आईना भी है, जो लेखक के रास्ते में पड़े। कई दूसरी छोटी नदियों का जिक्र भी इसमें है। लेखक एक डोंगी में बैठकर दिल्ली से मथुरा, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस व पटना होते हुए बासठ दिन में कोलकाता पहुंचा था। पूरे रास्ते अजब-अनूठे लोग मिले, जानी-अनजानी कहानियां, जगह-जगह बदलती बोली-बानी मिली, जिन सबसे मिलकर यह वृत्तांत बना। सफर एक डोंगी में डगमग, राकेश तिवारी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली-2, मूल्य 200 रु.

जीवन का कुरुक्षेत्र
युवा कवि अरुण ठाकरे का यह पहला कविता संग्रह है, जिसे उन्हीं की पंक्तियां लेकर कहा जा सकता है कि यह कुरूपताओं के बीच सुंदरता को ढूंढ़ने की कोशिश का फल है। पूरी दुनिया प्रतिकूलताओं का समुच्चय है। बगैर संघर्ष के अस्तित्व का बचे रहना कठिन है। ऐसे में इस कठिनाई से जूझते हुए सुंदर का संधान करना कवि की संवेदनशीलता दर्शाता है। कवि बार-बार प्रकृति के पास जाता है। जीवन के सामान्य प्रसंग बार-बार उसकी कविता का आधार बनते हैं। साधारणता में ही वह जीवन के महत्तम मूल्यों की तलाश करता है। ‘जीवन पथ के सोपानों को चढ़ते-चढ़ते/अनुत्तरित प्रश्न/ और लंबे और गहरे होते चले जाते हैं/ जीवन के इस कुरुक्षेत्र में/ खड़ा मैं/ क्या तुम पाओ ‘कृष्ण’/ दे सकोगे उत्तर।’ यह है कवि का आह्वान। इसी आह्वान के साथ कृष्ण के इंतजार में मानो वह खुद कृष्ण हुआ जाता है। कविताएं, अरुण ठाकरे, पार्वती प्रकाशन, इंदौर, मूल्य 70 रु.

प्रेरणा का प्रकाश
दूसरों की सफलताओं की कहानियों से लोग अपने लिए प्रेरणा की तलाश करते हैं। दूसरे लोग अपनी असफलता के कारणों को भी समझ पाते हैं। ऐसे में आज जबकि प्रेरणा और उपदेश देना भी एक संगठित व्यवसाय की शक्ल ले चुका है, रांडा बर्न की यह किताब काफी लोकप्रिय हो रही है। इसमें एक हीरो की कहानी दी गई है, जो पृथ्वी पर एक साहसिक यात्रा आरंभ करता है और यात्रा के दौरान आने वाली कठिनाइयों से पार जाता है। वस्तुत: यह कथा इस पुस्तक का मूलाधार है, जिसके ढांचे में लेखिका ने दुनिया के चुनिंदा 12 लोगों की सफलता का वृत्तांत बताया है। हीरो, रॉन्डा बर्न, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल, मूल्य 350 रु.
धर्मेंद्र सुशांत

 

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