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पाकिस्तान के लिए फैसले का समय

पेशावर के आर्मी स्कूल में हुआ बड़ा आतंकी हमला दरअसल आतंकियों की एक जवाबी कार्रवाई है, पाकिस्तानी फौज के चलाए गए ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब के बरअक्स। आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने इस हमले की...

पाकिस्तान के लिए फैसले का समय
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 16 Dec 2014 08:50 PM
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पेशावर के आर्मी स्कूल में हुआ बड़ा आतंकी हमला दरअसल आतंकियों की एक जवाबी कार्रवाई है, पाकिस्तानी फौज के चलाए गए ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब के बरअक्स। आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। मुमकिन है कि आने वाले वक्त में इस तरह के बड़े आतंकी हमले पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में और दिख जाएं और उनके पीछे यह संगठन या कोई और आतंकी संगठन हो। किसी जगह पर, किसी इमारत में लोगों को बंधक बनाया जा सकता है, बड़े धमाकों से पाकिस्तानी शहर को दहलाया जा सकता है, रिहाइशी इलाकों और सरकारी प्रतिष्ठानों में फिदायीन हमले भी हो सकते हैं। दहशतगर्दी का एक खौफनाक सिलसिला बड़े स्तर पर शुरू होने की पुरजोर आशंका है और अगर ऐसा होता है, तो इसे रोकने में पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र एक स्तर पर जाकर नाकामी को ही हासिल करेगा, क्योंकि आतंक की यह फसल पाकिस्तान ने खुद पैदा की है और उसकी जड़ अब बड़ी गहराई में पसर-फैल चुकी हैं।

साफ है,  अब उसे यह सब भुगतने के लिए तैयार रहना होगा या फिर एक नए पाकिस्तान के निर्माण के लिए आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया करना होगा। नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर के हिस्से में तालिबान ने यह कार्रवाई इसलिए की है कि वह इसके जरिये हुकूमत-ए-पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता है,  जबकि यह बात उसे भी मालूम है कि पाकिस्तान में कई चीजें हुकूमत के बस में नहीं होतीं। इनमें से ही एक चीज है ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब। यह आतंकी जमातों के खिलाफ पाकिस्तानी सुरक्षा बलों का एक साझा ऑपरेशन है। इस ऑपरेशन में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। उसके कई महफूज ठिकाने पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं।

यह पूरा फौजी ऑपरेशन अफगानिस्तान से सटे इलाकों में चलाया जा रहा है। पिछले दिनों यह रिपोर्ट आई थी कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पाकिस्तानी फौज के निर्देश पर चौड़ी खाई खोदी जा रही है, ताकि आतंकियों के अफगानिस्तान भागने के रास्ते बंद हो जाएं और उनका संपर्क भी अफगान तालिबान से टूटे, इसलिए कई संगठनों को बड़ा नुकसान हुआ है। 15 जून, 2014 को यह ऑपरेशन उत्तरी वजीरिस्तान में शुरू किया गया, जो पूरा कबाइली इलाका है और अफगानिस्तान सीमा से सटा है। इसे खैबर पख्तूनख्वा तक अंजाम दिया जा रहा है, जिसकी राजधानी पेशावर है।

आठ जून, 2014 को कराची में जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान फौज ने इस कार्रवाई का फैसला किया था। एक अनुमान के अनुसार, कुल मिलाकर 30,000 जवान इस कार्रवाई को अंजाम दे रहे हैं। शुरुआत में यह ऑपरेशन मुकम्मल नहीं लग रहा था,  लेकिन हाल के समय में इसमें तेज रफ्तार आई है। पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ राहील शरीफ खुद इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। कई दफे राहील शरीफ यह जता चुके हैं कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्या हिन्दुस्तान नहीं है,  बल्कि उसके अस्थिर अंदरूनी हालात हैं, जो आतंकी जमातों की देन हैं।

जनरल कयानी, जो इससे पहले पाकिस्तानी फौज के मुखिया थे, इससे अलग राय रखते थे। वह मानते थे कि ये आतंकी जमातें हमारे लिए मददगार हैं और इनसे एक रिश्ता बनाए रखना चाहिए, भले ही उसकी खबर बाहर किसी को न हो। इसलिए उस समय आतंकी संगठनों से फौज का एक अघोषित समझौता था। यहां तक कि जनरल कयानी अमेरिका के खिलाफ इन संगठनों का इस्तेमाल करते थे और हुकूमत से उनका गुपचुप समझौता भी कराते थे। अफगानिस्तान को अस्थिर बनाए रखने में भी इन आतंकी ताकतों का बेजा इस्तेमाल हुआ, जिस पर तत्कालीन करजई हुकूमत ने कई बार तल्ख नाराजगी जताई थी।
अब स्थिति एकदम अलग है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ चाहते थे कि फौज और आतंकी जमात के बीच एक किस्म का समझौता हो जाए। इस सिलसिले में उनकी और राहील शरीफ की कुछ बैठकें भी हुई थीं। लेकिन राहील शरीफ ने किसी भी किस्म के समझौते से एकदम इनकार किया और ऑपरेशन को हरी झंडी दी। जनरल राहील शरीफ ने यह भी आगाह किया कि ऐसा कोई भी कदम मुल्क के हित में नहीं होगा और न ही हुकूमत-ए-पाकिस्तान को यह कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इससे आने वाले समय में उसको भी नुकसान हो सकता है।

यहां भारत के लिए एक बड़ी चिंता यह छिपी हुई है कि ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब में उन आतंकी संगठनों को ही निशाना बनाया जा रहा है, जो पाकिस्तानी फौज के मुताबिक मुल्क के लिए खतरा हैं। यानी लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन अब भी वहां फल-फूल रहे हैं। ऐसे में, पाकिस्तानी फौज की यह सोच कि जो हमें नहीं छेड़ेगा, उसे हम नहीं छेड़ेगे, भारत के लिए बेहद सुकूनदायक स्थिति तो नहीं है। लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार फौज आतंकी संगठन के खिलाफ खड़ी हुई है और इस आतंकी घटना के बाद, जिसमें 100 से भी अधिक निरीह लोग मारे गए हैं, पाकिस्तानी फौज और हुकूमत को इस नतीजे पर पहुंचना ही होगा कि आतंकी बस आतंकी होते हैं, वे सबके लिए बुरे ही होते हैं।

पेशावर के आर्मी स्कूल में कई सौ बच्चों को बंधक बनाने और उनमें से कई मासूमों की जिंदगी खत्म करने के बाद निश्चित तौर पर पाकिस्तानी फौज और हुकूमत पर एक दबाव बना है। लेकिन देखना यह है कि ताजा सूरत-ए-हाल में क्या ये दोनों घुटने टेकती हैं या फिर आतंकवाद के खिलाफ पूरा पाकिस्तान एकजुट होता है। पाकिस्तान के लिए यह फैसले का समय है। खासकर, आतंकवाद के मसले पर अलग-अलग सोच रखने वाली पाकिस्तानी हुकूमत और पाकिस्तानी फौज को सोचना होगा। साथ ही, प्रांतीय सरकार को भी आतंकवाद के खिलाफ सख्त रवैया अपनाना होगा। अब तक यह सूबाई सरकार और उसकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ आतंकवाद के प्रति नरम रुख रखती आई है। पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान नवाज हुकूमत के खिलाफ खोल चुके अपने मोर्चे में इसे बड़ा मुद्दा बनाते रहे हैं।

मासूमों को निशाना बनाया जाना आतंकियों की एक कायराना कार्रवाई है, लेकिन ऐसी कार्रवाइयों से आतंक का जबर्दस्त प्रचार-प्रसार भी हो जाता है। पश्चिम एशिया में आईएसआईएस अपनी क्रूर हरकतों से काफी प्रचार-प्रसार पा रहा है, अब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी यह जताना चाहता है कि आतंक के इस बाजार में वह भी वैश्विक नाम है। डर यह है कि ऐसी हरकतों से और आतंकी संगठनों का दुस्साहस बढ़ेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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