तालिबान को लेकर पाकिस्तान की उलझन
जून महीने से ही पाकिस्तान की फौज ने उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में तहरीक-ए- तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी के आतंकियों का सफाया शुरू कर दिया है। इस कार्रवाई में अब तक 400 खूंखार तालिबानी आतंकी मारे गए...
जून महीने से ही पाकिस्तान की फौज ने उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में तहरीक-ए- तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी के आतंकियों का सफाया शुरू कर दिया है। इस कार्रवाई में अब तक 400 खूंखार तालिबानी आतंकी मारे गए हैं और 25 पाकिस्तानी सैनिक भी शहीद हुए हैं। इस संघर्ष के कारण पांच लाख नागरिक, जिनमें बूढ़े, बच्चे और नौजवान, सभी शामिल थे, रातोंरात उत्तरी वजीरिस्तान से भागकर पाकिस्तान के दूसरे इलाकों में सुरक्षा के लिए चले गए हैं। इन शरणार्थियों का कहना है कि उत्तरी वजीरिस्तान में पाकिस्तानी फौज और टीटीपी के बीच घमासान लड़ाई चल रही है।
अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की फौजें अपना कारोबार समेटकर निकलने की तैयारी कर रही हैं। ऐसे में, पाकिस्तान को यह डर है कि ये आतंकी अफगानिस्तान के दहशतगर्दों के साथ मिलकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कहर मचाएंगे, जब अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की फौजें चली जाएंगी। इसलिए पाकिस्तान की सरकार चाहती है कि इसके पहले कि अमेरिका और नाटो की फौजें अफगानिस्तान से चली जाएं, पाकिस्तान में टीटीपी का सफाया हो जाए। हालांकि शुरू में पाकिस्तान सरकार को यह उम्मीद थी कि टीटीपी के कुछ गुटों से बातचीत करके समाधान निकाला जा सकता है, लेकिन बातचीत की लंबी कोशिशों के बाद भी कोई हल नहीं निकाला जा सका। टीटीपी के आतंकियों ने फौज को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया था, इसलिए फौज भी उसके खिलाफ हो चुकी थी।
अब पाकिस्तान की फौज जी-जान से टीटीपी का सफाया करने में जुट गई है। यह भी कहा जाता है कि हमला शुरू होते ही बहुत सारे आतंकवादी वहां से भागकर छिप गए हैं। और मौका देखकर वे पाकिस्तानी फौज को करारा जवाब देने का पूरा प्रयास करेंगे। अमेरिकी विशेषज्ञों का यह मानना है कि टीटीपी के आतंकवादियों के तार इराक के आईएसआईएस आतंकवादियों से जुड़े हुए हैं। इसलिए यह कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं होगी कि यदि टीटीपी और आईएसआईएस के आतंकवादी मिलकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपनी वारदात को अंजाम दें।
अमेरिकी विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि उत्तरी वजीरिस्तान में पाकिस्तान सरकार को थोड़ी-सी सफलता मिल भी जाए, तो यह सफलता स्थायी नहीं होगी, क्योंकि पाकिस्तानी फौज में कट्टरपंथियों का एक बहुत बड़ा तबका है, जिसकी हमदर्दी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से है। ऐसे में, अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान से निकलने के बाद ये आतंकवादी क्या रणनीति अपनाएंगे, यह बड़ा सवाल है। यह इस पर भी निर्भर करेगा कि पाकिस्तान क्या नीति अपनाता है। अभी तक तो उसकी रणनीति आतंकियों के इस्तेमाल की रही है, लेकिन अब ये आतंकवादी उसी के लिए खतरा बन रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)