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बेहतर भविष्य के हकदार हैं नवजात बच्चे

जब राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) प्रारंभ हुआ था, तो ऐसी व्यवस्था और संरचना बनाने की परिकल्पना की गई थी, जिससे सभी राज्यों में स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हो सके। राष्ट्रीय स्वास्थ्य...

बेहतर भविष्य के हकदार हैं नवजात बच्चे
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Aug 2015 09:36 PM
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जब राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) प्रारंभ हुआ था, तो ऐसी व्यवस्था और संरचना बनाने की परिकल्पना की गई थी, जिससे सभी राज्यों में स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हो सके। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन यानी एनएचएम के अंतर्गत राज्यों को कई तरह के संसाधन दिए गए। जहां एक ओर कुछ राज्य एनएचएम के माध्यम से लाभान्वित हो सके, वहीं अन्य साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया में हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत, विशेष रूप से मां और बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस दिशा में हमें उल्लेखनीय सफलता भी मिली है। 1990 में, भारत में पांच वर्ष से छोटे बच्चों की प्रति हजार मृत्यु-दर 126 थी, जबकि इसका वैश्विक औसत 90 था। वर्ष 2013 में, यह संख्या घटकर 49 रह गई, जबकि इसका वैश्विक औसत 46 था। 1990 में वैश्विक औसत से हमारा अंतर 36 प्वॉइंट का था, जिसमें 2013 तक महत्वपूर्ण कमी आई और वह मात्र तीन  प्वॉइंट का रह गया। भारत में वैश्विक दर से कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से पांच साल से छोटे बच्चों की मृत्यु-दर में कमी आई है। 2008-13 के दौरान इस कमी की वार्षिक दर 6.6 प्रतिशत रही। यह दर बरकरार रही, तो भारत जल्द ही अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा।

एनएचएम समुदाय और सुविधा, दोनों स्तरों पर नवजात शिशु की निरंतर देख-रेख पर भी जोर देता है। जिलास्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के अंतर्गत, जहां 575 अत्याधुनिक नवजात शिशु विशेष देखरेख (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर) यूनिट्स की स्थापना की गई है, वहीं इस समय देश भर में रेफरल स्वास्थ्य सुविधाओं में 2020 से ज्यादा न्यूबॉर्न स्टैब्लाइजेशन यूनिट्स और 14,441 न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर्स चलाए जा रहे हैं। सामुदायिक स्तर पर नौ लाख प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का, जिन्हें आशा के नाम से जाना जाता है, काम नवजात शिशुओं की देखरेख है। सार्वजनिक केंद्रों में सुरक्षित प्रसव के लिए जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसी योजनाओं से ग्रामीण व शहरी, दोनों स्थानों पर गर्भवती महिलाओं व बीमार नवजात शिशुओं को बेहतर सेवाओं का लाभ मिल सका है, जिसमें सीधे स्वास्थ्य लाभ देने के अलावा मुफ्त ट्रांसपोर्ट और दवाओं जैसी चीजें कैशलेस देने का प्रावधान है। इससे सार्वजनिक केंद्रों में होने वाले प्रसव की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। यह दर साल 2006-07 के 47 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में लगभग 79 प्रतिशत हो गई। इससे मातृ मृत्यु-दर में काफी कमी आई है। इसी तरह, बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण के लिए मिशन इंद्रधनुष चलाया गया है, जो दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है। निस्संदेह हमारी माताएं, हमारे नवजात शिशु और छोटे बच्चे बेहतर भविष्य के हकदार हैं और यही सरकार की प्रतिबद्धता भी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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