फोटो गैलरी

Hindi Newsसंघ और मोदी के रिश्ते

संघ और मोदी के रिश्ते

राजग की 2004 में हुई हार के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे दस बरस तक राजनीतिक बियाबान में रहा। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उसके सबसे योग्य स्वयंसेवक और पूर्व प्रचारक नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व...

संघ और मोदी के रिश्ते
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Oct 2014 08:08 PM
ऐप पर पढ़ें

राजग की 2004 में हुई हार के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे दस बरस तक राजनीतिक बियाबान में रहा। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उसके सबसे योग्य स्वयंसेवक और पूर्व प्रचारक नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व विजय के बाद से सत्ता का हत्था एक बार फिर संघ की पहुंच और प्रभाव के दायरे में आ गया है। पर अबकी बार संघ ने इस हत्थे को अपने हाथों में लपकने की जल्दबाजी नहीं दिखाई है। संघ ने सत्ता लपकने की जल्दबाजी 1998 में दिखाई थी, जब उसके एक और पुराने स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी ने सहयोगी पार्टियों की मदद से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इस जल्दबाजी के कारण आरएसएस और वाजपेयी सरकार के बीच लगभग रोजाना कलह होता था, घर के भीतर ही नहीं, बल्कि सड़कों पर और खुले मैदानों में भी।

एक ओर संघ के वरिष्ठ विचारक व भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी वाजपेयी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को खुली सभा में ‘अपराधी’ घोषित कर रहे थे, तो दूसरी तरफ विहिप जैसे संगठनों ने वाजपेयी के लिए चैन से सरकार चलाना मुश्किल कर दिया था। संघ के भीतर पहुंच रखने वाले लोग कहते हैं कि आरएसएस की ओर से मोदी को फिलहाल कोई चुनौती नहीं मिलेगी, क्योंकि पिछली बार से संघ काफी परिपक्व हुआ है। उसे यह अच्छी तरह से एहसास हो चुका है कि जिस पार्टी को सत्ता में लाने में उसके स्वयंसेवक जी-जान लगा देते हैं, उसी की कब्र खोदना खुद के लिए राजनीतिक बियाबान का टिकट कटाने जैसा होगा।
बीबीसी में राजेश जोशी

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें