फोटो गैलरी

Hindi News‘कोमा’ में है मानवता

‘कोमा’ में है मानवता

मुंबई के एक अस्पताल में 27 नवंबर, 1973 को अपने ही सहकर्मी की यौन हिंसा की शिकार बनी अरुणा अपना 68वां जन्मदिन देखने से कुछ ही दिनों से चूक गईं। बीते 42 सालों की तरह जून के पहले हफ्ते में उनके जन्मदिन...

‘कोमा’ में है मानवता
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 May 2015 08:56 PM
ऐप पर पढ़ें

मुंबई के एक अस्पताल में 27 नवंबर, 1973 को अपने ही सहकर्मी की यौन हिंसा की शिकार बनी अरुणा अपना 68वां जन्मदिन देखने से कुछ ही दिनों से चूक गईं। बीते 42 सालों की तरह जून के पहले हफ्ते में उनके जन्मदिन पर उनकी सुध लेने वाले वही गिने-चुने लोग होते, जो कई दशकों से उनकी सेवा करते आए हैं। शानबाग की अंतिम सांस के साथ कई लोगों के मन से एक बोझ हट गया। जिन्हें भी उस जड़ हो चुकी महिला से जरा भी हमदर्दी थी, अपने शोक में वे कहीं न कहीं राहत भी महसूस कर रहे होंगे। राहत इस बात की कि कम से कम अरुणा को जीने का और बोझ तो नहीं ढोना पड़ेगा। पत्रकार पिंकी वीरानी ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में शानबाग के लिए इच्छा मृत्यु की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय इच्छा मृत्यु को गैर-कानूनी मानता है। भारत के लोगों की चरम सकारात्मकता और चमत्कारों में उनके विश्वास के चलते यूथेनेसिया को स्वीकार करना कठिन हो जाता है। यूथेनेसिया ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है- एक अच्छी मौत। इसका आशय जान-बूझकर गले लगाई जाने वाली ऐसी मौत से है, जब कोई व्यक्ति लाइलाज और असह्य शारीरिक पीड़ा के कारण जीवन से एक गरिमामय मुक्ति चाहता हो। कई देशों में इसे कानूनी मान्यता मिली हुई है। बहरहाल, दुनिया में सबसे लंबे समय तक कोमा में रहने वाली शानबाग को 42 साल बाद जाकर मौत के हाथों मुक्ति नसीब हुई। न कानून और न ही समाज ने उसे किसी तरह की राहत दी।
डॉयचे वेले में ऋतिका राय

 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें