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उलझना कभी-कभी

दांपत्य जीवन शायद ही नोकझोंक से रहित हो। जो यह कहते हैं कि उनमें कभी नोकझोंक नहीं होती, वे या तो झूठ कहते हैं या फिर उनके रिश्ते में कहीं कुछ गड़बड़ है। थोड़ा विवाद स्वाभाविक है, लेकिन स्वाभाविकता तभी...

उलझना कभी-कभी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Sep 2014 09:46 PM
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दांपत्य जीवन शायद ही नोकझोंक से रहित हो। जो यह कहते हैं कि उनमें कभी नोकझोंक नहीं होती, वे या तो झूठ कहते हैं या फिर उनके रिश्ते में कहीं कुछ गड़बड़ है। थोड़ा विवाद स्वाभाविक है, लेकिन स्वाभाविकता तभी कायम रह सकती है, जब विवाद का हल भी स्वाभाविक तरीके से निकल आए। थोड़ी कहा-सुनी संबंधों की नींव को मजबूत करती है, मगर अक्सर छोटी-छोटी बातों की उलझन जीवन को ही उलझा देती है। बिहेवियरल साइंस के मनोविज्ञानी जेनिस काइकोल्ट ग्लेसर कहते हैं- जिन पति-पत्नी के बीच रोजाना औसतन 30 मिनट का भी समय तनाव में बीतता है, उनकी प्रतिरोधक क्षमता सामान्य लोगों से एक तिहाई कम होती है। उन्होंने यह भी पाया कि ऐसे पति-पत्नी की आनुवंशिक संरचना में भी परिवर्तन की आशंका रहती है। उन्होंने उन दंपतियों को खास चेतावनी दी, जो एक-दूसरे से तीखी भाषा में, धमकियों, चेतावनियों के जरिये बात करते हैं। उनके अनुसार- एक खराब विवाह खराब सेहत से अधिक खतरनाक है। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉक्टर मर्लाकी भी इससे सहमत हैं। उन्होंने अध्ययन से साबित किया कि तनावग्रस्त रहने वाले दंपतियों में एपीनेफ्रीन, नॉरएपीनेफ्रीन और एसीटीएच हार्मोन की अधिकता होती है, जो अच्छे प्रतिरोधक तंत्र पर प्रहार करने वाले समझे जाते हैं। इसी तरह, उनमें प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले हार्मोन प्र्रोलेक्टिन की कमी हो जाती है। अच्छी बात है कि हमारे यहां वैवाहिक विवाद कम होते हैं और बुरी यह कि ऐसे विवाद बढ़ते जा रहे हैं। डॉक्टर काइकोल्ट कहते हैं, रिश्तों में असहमतियां होनी ही चाहिए, ये संबंधों के अनिवार्य हिस्से हैं, लेकिन असहमतियां विचार और सोच के स्तर पर होनी चाहिए, अहं के स्तर पर नहीं। अगर विवाद मन में स्थायी तौर पर जड़ें जमा ले, तो रिश्तों का पुनगर्ठन करें। पुनर्गठन का अर्थ है- रिश्ते की नई शुरुआत। और यह पुनर्गठन आंतरिक तौर पर हो, बाहरी तौर पर नहीं।

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