दुमदार दोपाए और चुपचाप चौपाए
निर्माता द्वारा दुम की निर्धारित जगह चौपायों का पृष्ठ भाग है। एक शेर अपने शरण्यस्थल यानी जंगल से शहर जा भटका। वहां मची भगदड़ से शेर हड़बड़ाकर उल्टे पांव वन की ओर भागा, तो दुम निराश थी। स्वामी कैसा मूर्ख...
निर्माता द्वारा दुम की निर्धारित जगह चौपायों का पृष्ठ भाग है। एक शेर अपने शरण्यस्थल यानी जंगल से शहर जा भटका। वहां मची भगदड़ से शेर हड़बड़ाकर उल्टे पांव वन की ओर भागा, तो दुम निराश थी। स्वामी कैसा मूर्ख है? असली हिंसक मंजिल को छोड़कर फिर क्यों शरीफों की बस्ती में लौटने पर आमादा है? दुम को कौन बताता? दुमदार चौपायों की गुजर अब न शहर में है, न जंगल में। उनका नियत स्थल सिर्फ ‘जू’ है। बच्चों के लिए वे शिक्षाप्रद मनोरंजन के साधन हैं। बचपन से उन्हें सिखाया जाता है कि वे शेर से निर्भीक, हिरण से फुर्तीले और सियार से मक्कार कैसे बनें? एक दुनियादार शिक्षा-शास्त्री मित्र की मान्यता है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी ही परंपराग्रस्त दुष्प्रवृत्तियों की मिसाल है। आदमी का आदमी रहना कठिन है। जाने क्यों, हम उसे पशुओं का कॉकटेल बनाने पर उतारू हैं?
आदमी के अंदर एक पशु वैसे ही बसता है जैसे हर दल में एक अदद हाईकमान। छुटभइए वहां पहुंचने को तरसते हैं। कानून-व्यवस्था की हो या अराजकता की, एक म्यान में एक ही तलवार का स्थान है। उनके अनुसार, आधुनिक समय का एक अन्य सार्वकालिक सत्य श्वान नामक चौपाए से जुड़ा है। हर बड़ा आदमी कुत्ता पालता है। वह दोपाया भी हो सकता है और चौपाया भी। जितनी इनकी दुम हिलती है, उसी अनुपात में मालिक का महानता बोध बढ़ता है। बड़े, अधिकतर मृदु और मितभाषी हैं। दूसरों को भौंकने-काटने का दायित्व पालतू कुत्तों का है।
यह महज मुगालता है कि आदमी कहे जाने वाले दोपाए दुम-रहित हैं। कभी पीछे थी, अब दुम सामने आकर जुबान के साथ समाहित है। मालिक की तारीफ में जब जुबान धाराप्रवाह चलती है, तो दुम भी उसी रफ्तार से हिलती है। उसका अनिवार्य कर्म स्वामी के मुंह पर प्रशंसा और पीठ पीछे निंदा है। इनका दावा है, कि ‘हम भी मुंह में जुबान रखते हैं।’ सबको पता है उनका आशय हिलने को उत्सुक लपलपाती दुम से है। चौपायों की दुम की क्षमता हाथी की दुम के समान सीमित है, जबकि आदमी की दुमदार जुबान अच्छे अच्छों का शिकार करने में समर्थ। दुम सज्जित दोपाए, चौपाए से ज्यादा खतरनाक हैं।