घटते पोषण से गहराती स्वास्थ्य समस्याएं
जब हम कुपोषण से लड़ाई में जीत दर्ज कराने की सोच रहे हैं, तब एक अन्य मोर्चे पर हारते हुए दिख रहे हैं। देश में हर व्यक्ति को सेहतमंद जीवन जीने के लिए जितने कैलोरी भोजन और जितने प्रोटीन की जरूरत होती...
जब हम कुपोषण से लड़ाई में जीत दर्ज कराने की सोच रहे हैं, तब एक अन्य मोर्चे पर हारते हुए दिख रहे हैं। देश में हर व्यक्ति को सेहतमंद जीवन जीने के लिए जितने कैलोरी भोजन और जितने प्रोटीन की जरूरत होती है, उसकी प्रति व्यक्ति उपलब्धता कम होती जा रही है। यह बात राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के सर्वे में भी सामने आई है और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एक अध्ययन में भी यह पता चला है। इनके अलावा नेशनल न्यूट्रीशन मॉनीटरिंग ब्यूरो के आंकड़े भी यही कहते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, साल 1983 में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 2221 कैलोरी रोजाना उपलब्ध थी, जो एक दशक में और घटकर 2153 कैलोरी तक पहुंच गई। 2004-05 तक यह आंकड़ा लगातार कम होता हुआ 2047 तक पहुंच गया। शहरी क्षेत्रों में 20 वर्षों में यह कमी 2089 से 2020 तक दर्ज की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में उचित पोषण के लिए 2400 कैलोरी ऊर्जा देने वाला भोजन पर्याप्त माना जाता है। मगर ऐसे लोग भी होते हैं, जो औसत से कहीं अधिक कैलोरी प्राप्त करते हैं, इसलिए अगर यह औसत 2400 से 20 प्रतिशत अधिक हो, तभी उसे अच्छा कहा जा सकता है। इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रोटीन की उपलब्धता इन दो दशकों में प्रतिदिन 62 ग्राम से कम होकर 57 ग्राम तक पहुंच गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसमें बदलाव नहीं आया।
न्यूट्रीशन मॉनीटरिंग ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि चार से छह वर्ष आयु वर्ग के 28.2 प्रतिशत बच्चों को 2002 में पर्याप्त कैलोरी व प्रोटीन उपलब्ध थे, जबकि 2006 में यह प्रतिशत कम होकर 23.8 फीसदी पर सिमट गया। इसी तरह, सात से नौ वर्ष के आयु वर्ग के मामले में यह आंकड़ा 28.1 प्रतिशत से घटकर 24.4 प्रतिशत पर पहुंच गया। लड़कियों में यह कमी लड़कों से भी अधिक दर्ज हुई है। 10 से 12 वर्ष आयु वर्ग में 32.9 प्रतिशत लड़कियों को पर्याप्त कैलोरी और प्रोटीन उपलब्ध थे, जो घटकर 21.7 प्रतिशत तक सिमट गया। यही वे चीजें हैं, जिसके चलते हम हंगर इंडेक्स में लगातार पिछड़ते जा रहे हैं।
भूख व कुपोषण के कारण बीमारी से लड़ने की शरीर की क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है। इसकी वजह से कई बीमारियों को खत्म करना मुश्किल होता जा रहा है। भारत में प्रतिवर्ष तपेदिक से 23 लाख लोग प्रभावित होते हैं, जो विश्व के किसी भी अन्य देश से अधिक हैं। ‘द नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया’ के ताजा अंक के अनुसार, इनमें से दस लाख से अधिक केस तो अल्प-पोषण से जुड़े होते हैं। यानी पोषण ठीक हो, तो इनमें बहुत सारे लोगों को तपेदिक की चपेट में आने से बचाया जा सकता है। भारत में टीबी बैसीलस का संक्रमण सबसे ज्यादा है, जिससे लड़ने का काम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाकर ही किया जा सकता है, और यह तभी हो सकेगा, जब लोगों को पर्याप्त पोषण मिले।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)