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सवाल पाबंदी की नीयत का है

कुछ दिनों पहले से ही इस तरह की मीडिया रिपोर्टें आ रही थीं कि इस्लामाबाद कुछ आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगा रहा है। उनमें जमात उद दावा और हक्कानी नेटवर्क के नाम सबसे महत्वपूर्ण थे। अब यह रिपोर्ट आई है...

सवाल पाबंदी की नीयत का है
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 22 Jan 2015 11:29 PM
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कुछ दिनों पहले से ही इस तरह की मीडिया रिपोर्टें आ रही थीं कि इस्लामाबाद कुछ आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगा रहा है। उनमें जमात उद दावा और हक्कानी नेटवर्क के नाम सबसे महत्वपूर्ण थे। अब यह रिपोर्ट आई है कि इन दो संगठनों पर पाकिस्तानी हुकूमत ने पाबंदी लगा दी है। हालांकि, इस मामले में अब भी संशय बरकरार है, क्योंकि कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई है।

खैर, अगर यह मान लें कि पाकिस्तान ने जमात उद दावा पर प्रतिबंध लगा दिया है, तब भी हमें दो मसलों पर गौर करने की जरूरत होगी। पहला, हमें पाकिस्तान के हाल के इतिहास को देखना होगा, जब 2002 में पाकिस्तान ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा पर अपने यहां प्रतिबंध लगाया था। और अपनी इस प्रक्रिया में पाकिस्तानी सरकार ने अच्छा-खासा समय लिया था। नतीजतन, जब तक इस आतंकी संगठन के सभी बैंक खाते जब्त हुए, तब तक वे खाली हो चुके थे। इस आतंकी संगठन के गुर्गे भी इससे अलग हो चुके थे और लश्कर-ए-तैयबा को इतनी मोहलत मिल चुकी थी कि उसने खुद ही ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान में उसका कोई अपना वजूद नहीं है और वह सारी कार्रवाई पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से करेगा। राजनीति की भाषा में इसे ‘कॉरपोरेट बेल’ भी कहते हैं। 2002 में प्रतिबंध से पहले ही इस संगठन के आका ने इसके तंजीमी ढांचे को जमात उद दावा नाम के नए संगठन में बदल दिया। ऐसे में, इस बार जो प्रतिबंध लगा है, उससे यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान की तरफ से वास्तव में प्रतिबंध लगाया गया है या बस यह कागजी खानापूर्ति है? यह सवाल इसलिए मौजूं है कि अब तक यह नहीं मालूम है कि पाकिस्तान ने इस संगठन के बैंक खाते जब्त किए हैं या नहीं। इसे इस तरह से भी देखने की जरूरत है कि साल 2008 में जब संयुक्त राष्ट्र ने इस आतंकी संगठन पर प्रतिबंध लगाया, तब पाकिस्तान ने अपने यहां ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। पाकिस्तानी इलाके मुरीदके में इस संगठन का मुख्यालय चलता रहा और वहां इस संगठन द्वारा संचालित हो रहे विश्वविद्यालयों और अन्य कार्यों को पंजाब सरकार की फंडिंग मिलती रही, जबकि वहां नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) सत्ता में थी। क्या यह उसी तरह का प्रतिबंध है या पाकिस्तान सरकार ने वाकई कोई ठोस कदम उठाया है? इसका खुलासा एक-दो महीने में ही हो पाएगा।

दूसरा, अगर हम यह मान लें कि पाकिस्तान ने बड़ी संजीदगी के साथ इस बार कार्रवाई की है, तो यह निश्चित तौर पर एक बड़ा कदम कहलाएगा और यहां से दो चीजें होती दिखाई देती हैं। पहली, भारत से रिश्ते बनाने का रास्ता खुलेगा। इसके बाद भी अगर हम यह कहते हैं कि जब तक हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, हम इससे दूर रहेंगे, तो यह स्वीकार्य कूटनीति नहीं मानी जाएगी। हां, उस बातचीत की प्रक्रिया में यह संभावना  बनेगी कि हम आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को मजबूर कर दें। जैसे, उस पर दबाव बनाकर 26/11 के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी के मामले को आतंकवाद विरोधी अदालत से फौजी अदालत में लाया जा सकता है।

ऐसी भी खबर है कि अमेरिकी दबाव के कारण यह प्रतिबंध लगा है। दरअसल, हमारे गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा हिन्दुस्तान आ रहे हैं। अब पाकिस्तान को लेकर अमेरिका हिन्दुस्तान पर बातचीत शुरू करने का दबाव बना सकता है। हालांकि, यह बहस का एक अलग विषय है कि कौैन दबाव लेता है और कितना लेता है, लेकिन पाकिस्तान ने सचमुच ऐसा किया है, तो इसलिए नहीं कि उस पर अमेरिका या भारत का दबाव है, बल्कि इसलिए कि यह कार्रवाई अब उसके खुद के हित में है। हालांकि, वह दबाव के कारण का ही इस्तेमाल करना चाहेगा, किंतु यह गौरतलब है कि उसने जमात उद दावा के साथ हक्कानी नेटवर्क को भी प्रतिबंधित किया है, जो बीते दिनों में पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना है। ऐसे में, इस कार्रवाई के दो महत्वपूर्ण कारण होंगे। पहला, आज के समय में जिहाद का यह पूरा तंत्र अब पाकिस्तान की स्थिरता के लिए सही नहीं है। इसलिए इससे पाकिस्तान कन्नी काट रहा है। दूसरा, जमात उद  दावा एक खौफनाक किस्म की आतंकी जमात है। इसका नेटवर्क सरकार से लेकर फौज, प्रशासन और इलाकाई तंजीमों तक अब पहुंच चुका है। कमोबेश यही हाल हक्कानी नेटवर्क का भी है। यह देखा गया है कि दहशतगर्द संगठनों को पाकिस्तान एक स्तर के बाद या तो कमजोर कर देता है या तोड़ता है या नष्ट कर देता है, क्योंकि वहां की व्यवस्था उसके वजूद को अपने लिए खतरा मानने लगती है।

हालांकि, पाकिस्तान के अंदर यह आशंका भी जरूर होगी कि इस पूरी कार्रवाई से उसके यहां उथल-पुथल मच सकती है। दरअसल, किताबें और रिपोर्ट जो बयां करती हैं, उनके मुताबिक जमात उद दावा ने इतने वर्षों में वहां पांच लाख जेहादियों को तैयार कर चुका है। अगर इस बात पर यकीन न भी करें और मान लें कि सिर्फ पांच हजार आतंकी प्रशिक्षित हुए हैं, तब भी यह बड़ा आंकड़ा है और पाकिस्तान को अस्थिर और भयाक्रांत करने के लिए काफी है। अब तक जो दिखा है, उसके आधार पर पंजाब और सिंध में इस संगठन का नेटवर्क तो था, पर आतंकी हिंसा का चरम बलूचिस्तान और कबीलाई क्षेत्र फाटा में था, लेकिन पाकिस्तानी हुकूमत के ताजा कदम के बाद पाकिस्तान के समक्ष आंतरिक सुरक्षा की मुश्किल चुनौतियां आ सकती हैं।

बहरहाल, बेहद सीमित अर्थ में आतंकवाद के मसले पर हिन्दुस्तान-पाकिस्तान में एक किस्म का झुकाव दिखता है। दोनों का मानना है कि आतंकवाद उनके लिए खतरा है और यहीं से अवसरों की खिड़की खुल जाती है। ऐसा नहीं कि इससे सारे मसले-मसाइल सुलझ जाएंगे, किंतु आपसी विश्वास बहाली का रास्ता तो बनेगा। एक उम्मीद जगती है। ऐसे में, हमारा भी एक दायित्व बनता है कि हम कुछ ऐसा न करें, जिससे पाकिस्तान अपने कदम यह कहते हुए पीछे खींच ले कि जी, हमें हिन्दुस्तान से सहयोग नहीं मिला। अगर कार्रवाई में उनकी तरफ से सुरक्षा सहयोग मांगा जाता है, तो हमें इस विचार करना होगा। निस्संदेह, इससे पहले पाकिस्तान को यह सबूत देना होगा कि वह इन आतंकी संगठनों के ढांचों को ध्वस्त करे, उनके सदस्यों के खिलाफ मुकदमा चलाए, उनके भाषण देने पर प्रतिबंध लगाए, उनके आतंकी शिविरों को तहस-नहस करे और बैंक खातों को जब्त कर उनकी तमाम कारोबारी गतिविधियों पर रोक लगाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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