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आधुनिक दौर में बर्बर विचारधारा

इराक में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड सीरिया यानी आईएसआईएस जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसे लेकर पश्चिमी देशों की दहशत अतार्किक नहीं है। एक तरह से इसमें यह स्वीकार भी शामिल है कि पश्चिमी दखल ने इस इलाके...

आधुनिक दौर में बर्बर विचारधारा
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Aug 2014 08:35 PM
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इराक में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड सीरिया यानी आईएसआईएस जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसे लेकर पश्चिमी देशों की दहशत अतार्किक नहीं है। एक तरह से इसमें यह स्वीकार भी शामिल है कि पश्चिमी दखल ने इस इलाके में किस हद तक गड़बड़ी पैदा कर दी है। सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़कर पश्चिम ने एक तरह से इराक को तोड़ दिया है। इसके पहले इराक में कोई जेहादी संगठन सक्रिय नहीं था। लेकिन अब एक जेहादी संगठन ने इराक को दो फाड़ कर दिया है। यही लीबिया में हुआ, जहां गद्दाफी की सत्ता खत्म होने के बाद बेनगाजी में ‘इस्लामी अमीरात’ की घोषणा हो चुकी है। जमी-जमाई सरकारों को उखाड़कर तानाशाही की जगह लोकतंत्र को स्थापित करने की योजनाओं ने ऐसी अराजकता पैदा की है, जिसमें जेहादी ताकतें अपना दबदबा बना सकती हैं। पश्चिमी हस्तक्षेप ने आईएसआईएस के उभार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असद जैसे धर्मनिरपेक्ष तानाशाह के खिलाफ सीरियाई बागियों को शह देकर पश्चिमी देशों ने वह रफ्तार दे दी, जो आईएसआईएस को अन्यथा शायद न मिलती। जेहादी ताकतों को जिस तरह से सऊदी और कतर से पैसा मिल रहा है, उसके चलते इस बात की जरा भी संभावना नहीं थी कि असद के जाने के बाद उदार विपक्ष के लिए किसी तरह का कोई मौका होगा। अब जो हालत है, उसमें पश्चिमी देश आईएसआईएस को खत्म करने के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते।

किसी को इस बात पर भरोसा नहीं है कि बमबारी करके सैनिक क्षमता वाले ऐसे संगठन को हटाया जा सकता है, जो अब आर्थिक संसाधनों के लिए किसी पर निर्भर नहीं है। खतरा यह भी है कि पश्चिमी देश एक और युद्ध में फंस सकते हैं। पश्चिमी देशों की दहशत के  और भी कई कारण हैं। 21वीं सदी में खिलाफत वाला एक ऐसा संगठन, जो अपनी बर्बरता का प्रचार इंटरनेट पर करता हो, वह आधुनिक विकास की अवधारणा में कहीं फिट नहीं बैठता। कुछ लोगों का कहना है कि इस्लाम का आधुनिकीकरण मुश्किल है, क्योंकि यह हमेशा ही हमला करके जीत हासिल करने वाला धर्म रहा है। लेकिन इस्लाम हिंसा का सहारा लेने वाला अकेला धर्म नहीं है। और आईएसआईएस की जो सोच है, उसे दुनिया भर की इस्लामी सत्ताएं खारिज कर चुकी हैं। हिंसक तौर-तरीकों में ही अपना भविष्य देखने वाले अनेक संगठन मध्ययुग व आधुनिक काल की शुरुआत में यूरोप में भी रहे हैं। उनकी सोच और जून में मोसुल में अबू बकर अल बगदादी ने जो घोषाणाएं की थीं, उनमें बहुत सारी समानताएं मिल जाएंगी। यही नहीं, आईएसआईएस और आधुनिक क्रांतिकारी आंदोलनों में भी बहुत सारी समानताएं हैं। इस संगठन ने अपनी हिंसक रणनीति को बहुत सोच-समझकर बनाया है। वह आतंक का इस्तेमाल अपने दुश्मनों और उन समुदायों को भयाक्रांत करने के लिए करता है, जिन पर उसे जीत हासिल करनी है। आईएसआईएस जो कर रहा है, वह हमें सोवियत दौर के सामूहिक मृत्युदंड की याद दिलाता है या फिर खमेर रूज के बड़े पैमाने पर वध करने की व्यवस्था की। साथ ही आईएसआईएस अपनी सत्ता भी स्थापित कर रहा है। यह उस अल-कायदा से ज्यादा महत्वाकांक्षी है, जिससे यह दस साल पहल अलग हो गया था।

इसने सीरिया के एक तिहाई और इराक के एक चौथाई हिस्से पर कब्जा कर लिया है। इन इलाकों में वह वही तरीके अपना रहा है, जो पिछली सदी में तानाशाही व्यवस्थाएं अपनाती थीं। लेकिन आईएसआईएस में बहुत से ऐसे दुर्गुण भी हैं, जो वैश्वीकरण की 21वीं सदी के अंधेरे साये में पल रहे बहुराष्ट्रीय अपराधी गिरोहों में हैं। उसके लोग बैंक लूटते हैं, तेल कुओं पर कब्जा करते हैं और फिरौती वसूल करते हैं। इन कामों से इस हिंसक संगठन ने जो संपत्ति अजिर्त कर ली है, वह अब तक के इतिहास में किसी भी जेहादी संगठन के पास नहीं रही। यह सिर्फ कोई आतंकवादी संगठन या कोई अनियमित सेना नहीं है, जिसे हम कई देशों में देख चुके हैं। तो फिर आईएसआईएस है क्या? क्या यह इस सदी की हिंसक विचारधारा वाला सक्रिय समूह है या तानाशाह सत्ता? आतंकवादी नेटवर्क है या फिर अपराधी गिरोह? इसका जवाब है कि यह इनमें से कुछ भी नहीं है और साथ ही उसमें ये सारी चीजे हैं। यह अतीत की किसी चीज का दोहराव नहीं है, आईएसआईएस एक नई चीज है, यह बर्बरता का एक आधुनिक संस्करण है, जो उस देश में पैदा हुआ, जिसके सत्ता तंत्र को पश्चिम के हस्तक्षेप ने बिखेर दिया था। लेकिन इसका असर सीरिया और इराक तक सीमित नहीं रहेगा। ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि पाकिस्तान में तालिबान इसका समर्थन कर रहे हैं, और उत्तर-पूर्व नाईजीरिया में खिलाफत की घोषणा करने वाला संगठन बोको हरम भी इसके साथ है।

कुछ ही समय में अगर इसने अल-कायदा को पीछे छोड़ दिया, तो निश्चित तौर पर आईएसआईएस पश्चिमी देशों के खिलाफ ज्यादा खुलकर सामने आ जाएगा। यह कहना बहुत आसान होगा कि पश्चिमी देशों ने अभी तक इतनी भयंकर गलतियां की हैं कि अब उन्हें इससे अपने हाथ खींच लेने चाहिए और घटनाओं को अपनी तरह से घटने देना चाहिए। लेकिन दुनिया के इतने बड़े दानव को पैदा करने के बाद पश्चिमी देश अब इससे मुंह नहीं फेर सकते। नैतिक भाषा में कहा जाए, तो इस तरह की कोई भी कोशिश पूरी तरह अश्लील होगी। पश्चिमी देश ही मुख्य रूप से उस अराजकता के लिए जिम्मेदार हैं, जिसने आईएसआईएस को अपनी सत्ता खड़ी करने का मौका दिया। यजीदी और ऐसे अन्य बेसहारा समुदायों को नरसंहार के खतरे के सामने छोड़ देना भी उतना ही बड़ा अपराध होगा, जितना कि पहले वहां किया गया हस्तक्षेप था। बेशक, बहुत से लोगों को नैतिकता की बात पाखंड लग सकती है। इस तरह के तर्क देने वाले पश्चिमी देशों की निरंतर यथार्थवादी निर्णय प्रक्रिया की बात करते हैं, हालांकि हमें इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। सच तो यह है कि इस मामले में पश्चिमी देशों ने एक के बाद दूसरी भयानक भूलें की हैं।

आईएसआईएस ने जो चुनौती पेश की है, वह बहुत बड़ी है। उसके खिलाफ सैनिक कार्रवाई से हम कुछ नहीं हासिल कर सकते, अगर उसके साथ ही कोई राजनीतिक समाधान नहीं जुड़ा होगा। लेकिन कोई यह नहीं बता पा रहा कि राजनीतिक समाधान कैसा निकलेगा या कैसे लागू किया जाएगा, खासतौर पर जब वहां राज्यसत्ता लगभग है ही नहीं और सरकार बदहाल स्थिति में है। क्या पश्चिमी देश अतीत की इन गलतियों से सीखकर खुद को सिर्फ अपनी सुरक्षा तक सीमित करेंगे? या फिर वे अतीत की अपनी गलतियों को फिर दोहराएंगे? यदि आईएसआईएस का आगे बढ़ना इसी तरह जारी रहा, तो हमें जल्द ही पता चल जाएगा।                                  
साभार- द गार्जियन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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