फोटो गैलरी

Hindi Newsमुरझाए चेहरे

मुरझाए चेहरे

भारतीय समाज की कल्पना थोड़ी देर के लिए एक विशाल कैनवास के रूप में करें और इसमें अब तक के सफर के कोलाज को देखें। एक बहुत विशाल पेंटिंग, जिसमें तमाम कलाएं अभिव्यक्त होकर जीवंत हैं। लोग आते हैं, रंग भरते...

मुरझाए चेहरे
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 13 Aug 2014 10:11 PM
ऐप पर पढ़ें

भारतीय समाज की कल्पना थोड़ी देर के लिए एक विशाल कैनवास के रूप में करें और इसमें अब तक के सफर के कोलाज को देखें। एक बहुत विशाल पेंटिंग, जिसमें तमाम कलाएं अभिव्यक्त होकर जीवंत हैं। लोग आते हैं, रंग भरते हैं और एक बहुत बड़ा रंग संसार हमारे सामने खुला रहता है। अद्भुत छटाओं और दिव्य रौनकों में खिला हुआ। एक नजरिया भारत का चेहरा कुछ ऐसा ही दिखाता है। महानता और जय-जय में जगमगाता हुआ। लेकिन इस कैनवास के नजदीक जाकर खड़े हो जाएं, तो रंग उड़ते और आकृतियां कांपती हुई नजर आती हैं। यह कौन-सा भारत है? ये किस समाज के कैसे चेहरे हैं? हमारी चिंता यही है। गर्व और सीना फुलाए कुछ प्रतीकों के सहारे ही तो हम जिंदा या खुश नहीं रह सकते। दुनिया में हम कई क्षेत्रों में पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी या पांचवीं शक्ति बन गए हैं या बनने ही वाले हैं। लेकिन क्या इसी पर गाजा-बाजा कर लें या यह फिक्र भी करनी चाहिए कि देश में एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो इन शक्तियों से अनजान है। सत्ता राजनीति और अब तक के प्रशासकों ने कृत्रिम गौरव और कृत्रिम महिमा-गान से जनता को झुमाए रखा, लेकिन अब सब जान गए हैं कि कैसी ढांचागत खामियां यहां जमा थीं और विकास के मॉडल किन नाइंसाफियों पर टिके हुए थे। मुझे अपने देश से बहुत प्यार है, यह जताने के लिए परम संतोष वाला चेहरा दिखाते रहना उचित नहीं होगा। हम सबको मिलकर अपने-अपने चेहरों से विकृतियों को पोंछना चाहिए। एक साफ व पारदर्शी समाज ऐसे ही बनेगा।
डायचे वेले में शिवप्रसाद जोशी

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें