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संकीर्ण सियासत से राज्य नहीं बनते

हैदराबाद स्थित एक छोटी आईटी कंपनी की मालकिन इन दिनों बेहद परेशान हैं। वह राजमुंदरी को अपना नया ठिकाना बनाने की कोशिश में हैं। आंध्र प्रदेश का यह शहर गोदावरी नदी के किनारे बसा है। उनकी पसंद का दूसरा...

संकीर्ण सियासत से राज्य नहीं बनते
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 Aug 2014 10:45 PM
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हैदराबाद स्थित एक छोटी आईटी कंपनी की मालकिन इन दिनों बेहद परेशान हैं। वह राजमुंदरी को अपना नया ठिकाना बनाने की कोशिश में हैं। आंध्र प्रदेश का यह शहर गोदावरी नदी के किनारे बसा है। उनकी पसंद का दूसरा शहर है काकीनाड़ा। इस महिला ने स्कूल और कॉलेज की अपनी पूरी पढ़ाई हैदराबाद में ही की और वहीं पर  अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू कर संपन्नता अर्जित की। उनकी कंपनी अस्पतालों और स्कूलों के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करती है। लेकिन अब राज्य के बंटवारे के बाद वह शिद्दत से महसूस करने लगी हैं कि उन्हें हैदराबाद छोड़ देना चाहिए। 

एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी और तीन जवान बच्चों के पिता भी चिंतित हैं। एक दूरदर्शी अभिभावक की भूमिका में उन्होंने समझदारी से बचत करते हुए अपने बच्चों के लिए तीन मकान बनवाए हैं। वह सोचते थे कि उन्होंने न केवल रिटायरमेंट के बाद की सुकून भरी जिंदगी की मुकम्मल व्यवस्था कर ली है, बल्कि वह अपने परिवार के लिए आर्थिक सुरक्षा भी विरासत में छोड़ जाएंगे। लेकिन अचानक चिंता ने उन्हें घेर लिया है। अब वह सोचने लगे हैं कि क्या उनका हैदराबाद में बसने का फैसला सही था या फिर उन्हें कहीं और चले जाना चाहिए?
सीमांध्र या रायलसीमा मूल के हजारों परिवार, जो हैदराबाद में बस गए हैं, इन दिनों अजीब उलझन में हैं। वे इस आशंका में डूब-उतरा रहे हैं कि नए राज्य तेलंगाना, खासकर उसकी राजधानी हैदराबाद में उनके साथ अच्छा व्यवहार होगा भी या नहीं। इनमें से अनेक परिवार तो 1950 के दशक में हैदराबाद आकर बसे थे, जब मद्रास प्रेसिडेंसी से काटकर आंध्र प्रदेश का गठन हुआ था। निजाम राज के खात्मे के बाद हैदराबाद को नई राजधानी चुना गया था और कई परिवारों ने सीमांध्र, रायलसीमा, यहां तक कि मद्रास (अब चेन्नई) को छोड़कर हैदराबाद को अपना नया घर बनाया। लेकिन यहां जो लोग तेलंगाना इलाके के थे, वे अपने को उपेक्षित महसूस करने लगे और इसीलिए उनमें असंतोष का भाव गहराता गया। और वर्षों के आंदोलन के बाद आज जब तेलंगाना एक अलग राज्य के वजूद में है, तो लगता है कि दूसरे इलाकों के जो लोग यहां पर रहते हैं, उनमें उपेक्षा का बोध गहरा रहा है।

पिछले सप्ताह राज्य सरकार द्वारा की गई एक घोषणा ने ऐसे लोगों की आशंकाओं को और मजबूत कर दिया है। तेलंगाना की नई सरकार ने मंगलवार को यह ऐलान किया कि राज्य में तमाम परिवारों का एक सघन सर्वे कराया जाएगा। वैसे, इस सर्वे का मकसद कल्याणकारी योजनाओं के लाभान्वितों की पहचान करना बताया गया है। तेलंगाना के अधिकारियों का दावा है कि इस अभियान के पीछे फर्जी राशन कार्डों को निकाल फेंकना है, ताकि वास्तविक जरूरतमंदों के लिए सामाजिक कल्याण की योजनाओं के लाभ सुनिश्चित किए जा सकें। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस सर्वेक्षण के साये में सीमांध्र और रायलसीमा क्षेत्र के लोगों की पहचान करना है। इसलिए ऐसे लोगों में यह चिंता घर कर गई है कि कहीं धीरे-घीरे उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित न कर दिया जाए। दरअसल, टकराव का मूल मुद्दा हैदराबाद है। हालांकि यह तय हुआ है कि अगले दस वर्षों तक हैदराबाद दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी रहेगा, मगर सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहती। इस संकेत को समझते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने नई राजधानी के फैसले तक विजयवाड़ा को राज्य का अंतरिम मुख्यालय घोषित कर दिया है।

बहरहाल, के चंद्रशेखर राव सरकार ने 20 करोड़ रुपये खर्च करके यह सर्वे एक ही दिन में 19 अगस्त को करा लिया। दस से अधिक जिलों में बसे करीब 84 लाख परिवारों का यह सर्वे 12 घंटे में पूरा कर लिया गया। इस काम को तीन लाख सत्तर हजार सरकारी कर्मचारियों ने अंजाम दिया। इस विशालकाय अभियान ने तेलंगाना और बाहर से आकर बसे, दोनों तरह के लोगों को चिंतित कर दिया। तेलंगाना क्षेत्र के अनेक लोग, जो दूसरे राज्यों में रह रहे हैं, वे इस डर से भागे-भागे अपने-अपने मूल स्थान पर पहुंचे कि कहीं उन्हें सरकारी सुविधाओं से वंचित न होना पड़ जाए। टे्रनें और बसें ठसाठस भरी दौड़ती रहीं। राज्य सरकार ने इस दिन राजकीय अवकाश घोषित कर दिया। दूसरी तरफ, हैदराबाद में रह रहे दूसरे खित्ते के लोग इस बात को लेकर भयभीत रहे कि कहीं इस पूरी कवायद का मतलब उन्हें राज्य की सुविधाओं से वंचित करना तो नहीं। कहानी में मोड़ यह भी था कि यह सर्वे स्वैच्छिक है और किसी पर इसमें शामिल होने का कोई दबाव नहीं है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह किसी नागरिक से निजी विवरण, जैसे बैंक खाता नंबर, मोबाइल नंबर आदि नहीं मांग सकती।

दो बड़े फिल्मी सितारे पवन कल्याण और विजयाशांति ने इस सर्वे का यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया कि वे अपनी सूचनाएं सार्वजनिक नहीं करना चाहते, क्योंकि वे सरकार की किसी कल्याणकारी योजना के लाभान्वित नहीं हैं। उन पर कटाक्ष करते हुए मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा कि ‘जो लोग यहां (हैदराबाद में) अतिथि या पर्यटक की तरह रुकना चाहते हैं, उन्होंने इस अभियान में भाग नहीं लिया।’ उन्होंने कहा कि किसी का यह दलील देना कि वह सरकारी योजना का लाभान्वित नहीं है, दरअसल एक ‘सामाजिक अपराध’ है, क्योंकि वह पेयजल, स्ट्रीट लाइट, सड़क और अन्य तमाम तरह की नागरिक सुविधाएं भोग रहा है।

लोगों ने सोचा था कि चुनावों में एक बड़ी जीत के बाद चंद्रशेखर राव सकारात्मक नजरिये के साथ शासन चलाएंगे। आखिर राज्य को विकास के लिए भारी निवेश की दरकार है। कारोबारियों को उम्मीद थी कि आंदोलन के अस्त-व्यस्त रहे पिछले कुछ वर्षों से उन्हें निजात मिल जाएगी, मगर इन सबके उलट चंद्रशेखर राव पूरे दिन तक कारोबार बंद करने के आदेश जारी कर रहे हैं। हैदराबाद में तनाव है और राजधानी की एक बड़ी आबादी चिंतित है। केंद्र फिलहाल चुपचाप देख रहा है।

चंद्रशेखर राव को यह मानना पड़ेगा कि सरकार चलाना किसी आंदोलन की अगुवाई से बिल्कुल अलहदा काम है। सत्ता में आने के बाद उन्हें सभी तबकों को साथ लेकर चलना पड़ेगा। उन्हें अपने लक्ष्य को लेकर भी स्पष्ट होना चाहिए। एक तरफ तो तेलंगाना को भारी निवेश चाहिए, जिसमें आंध्र प्रदेश का निवेश भी शामिल है, दूसरी तरफ सर्वे जैसे कदमों से वह लोगों को अलग-थलग कर रहे हैं। तथ्य यह है कि हैदराबाद में सीमांध्र के पूंजीपतियों ने बड़ा भारी निवेश कर रखा है और अब वे चंद्रबाबू नायडू को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह आंध्र में ऐसा माहौल पैदा करें, जिससे वे वहां निवेश कर सकें। नायडू ने उनसे वादा किया है कि वह किसी तटवर्ती शहर को नया ‘आईटी हब’ बनाने पर विचार करेंगे। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से दोनों सूबों को फायदा हो सकता है, मगर प्रतिस्पर्धी सियासत से दोनों का नुकसान ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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