धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियां
स्वस्थ व्यवस्था के तौर पर लोकतंत्र के विकास के लिए जरूरी है कि राजनीति से लेकर समाज तक सबको अतीत के बोझ से मुक्त करें। अतीत के मलबों के जरिये जनता में एकता कायम करने से सांप्रदायिकता तात्कालिक तौर पर...
स्वस्थ व्यवस्था के तौर पर लोकतंत्र के विकास के लिए जरूरी है कि राजनीति से लेकर समाज तक सबको अतीत के बोझ से मुक्त करें। अतीत के मलबों के जरिये जनता में एकता कायम करने से सांप्रदायिकता तात्कालिक तौर पर कमजोर होती दिखती है, पर वह कमजोर नहीं होती। अतीत का मलबा सांप्रदायिकता को ईंधन देता है, उसे दीर्घजीवी बनाता है। लोकतंत्र में अतीत को जानना चाहिए, पर अतीत को पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। सांप्रदायिक ताकतों ने अपने विकास के लिए अतीत के मसलों को औजार की तरह इस्तेमाल किया है।... नीत्शे ने कहा है- न केवल सदियों का ज्ञान, बल्कि सदियों का पागलपन भी हममें फूट निकलता है। वारिस होना खतरनाक है। हमारी मुश्किल है कि हमने विरासत के नाम पर बहुत सारी चीजों का बोझ अपने लोकतंत्र पर लाद दिया है। लोकतंत्र को पुरानी चीजों का वारिस न बनाया जाए। लोकतांत्रिक मनुष्य को पुराने लबादों से न ढका जाए। लोकतंत्र पर अतीत की विरासत का एक ही असर है और एक ही मूल्यवान चीज है, जो हमें विरासत मिली है, वह है शिरकत। लोकतंत्र शिरकत के जरिए विकास करता है। पंडित नेहरू पर महात्मा गांधी का गहरा असर था और उन्होंने गांधी को हिन्दुस्तान की कहानी में उद्धृत किया है- ‘मुझे गांधीजी के वे लफ्ज याद हैं, जो उन्होंने सात अगस्त,1942 की भविष्य-सूचक शाम को कहे थे- ‘दुनिया की आंखें अगरचे आज खून से लाल हैं, फिर भी हमें दुनिया का सामना शांत और साफ नजरों से करना चाहिए।’
नया जमाना में जगदीश्वर चतुर्वेदी