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सुधारों की पटरी पर आए रेल

रेलवे की हर एक किलोमीटर पटरी सौ नौकरियां पैदा करती है। यही नहीं, दो सौ किलोमीटर का हाई स्पीड रेल मार्ग देश की अर्थव्यवस्था में सालाना 20 अरब डॉलर जोड़ सकता है। देश भर के उत्पादकों और उपभोक्ताओं को आपस...

सुधारों की पटरी पर आए रेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 23 Feb 2015 10:01 PM
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रेलवे की हर एक किलोमीटर पटरी सौ नौकरियां पैदा करती है। यही नहीं, दो सौ किलोमीटर का हाई स्पीड रेल मार्ग देश की अर्थव्यवस्था में सालाना 20 अरब डॉलर जोड़ सकता है। देश भर के उत्पादकों और उपभोक्ताओं को आपस में जोड़कर यह देश की भौगोलिक परिस्थितियों का समुचित लाभ उठाने का माद्दा रखता है। रेल मार्ग अर्थव्यवस्था में लागत घटाता है और अधिक उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। इसलिए गरीब और उपेक्षित जिलों में विकास को बढ़ावा देने के लिए देश में रेल परिवहन की सुचारु व सक्षम व्यवस्था जरूरी है। इस दिशा में इंटर-सिटी सफर को किफायती बनाकर रेलवे ने सेवा व पर्यटन उद्योग की बुनियाद मजबूत करने में मदद की है। लेकिन यदि भारत को सालाना दस प्रतिशत की विकास दर के साथ आगे बढ़ना है, तो सालाना 15-20 फीसदी विकास दर से रेलवे को आगे बढ़ना होगा।

सुधार को अहमियत देने वाले नए मंत्री की नियुक्ति के साथ सरकार ने इस क्षेत्र के नवीनीकरण पर जोर दिया है। निजी पार्सल ट्रेन चलाने की अनुमति, हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट, फ्रेट कॉरिडोर, सिग्नलिंग सिस्टम और रेलवे-बिजलीकरण में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हरी झंडी देने जैसे कदम बयानबाजी और विकास के बीच की खाई को पाट सकते हैं। क्षेत्रीय रेलवे प्रमुखों को रेल मंत्री द्वारा सशक्त करना आगामी वित्तीय व परिचालन लक्ष्यों में लाभकारी साबित हो सकता है, साथ ही दायित्वों का भी उन पर बोझ बढ़ेगा। ठेके संबंधी फैसले तेजी से होने चाहिए, जबकि सूचना का अधिकार कानून काम के पूरा होने का दबाव बनाए रखेगा।
हम अपने लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। 2014 तक चीन करीब 11,000 किलोमीटर के हाई स्पीड रेल मार्ग का जाल बिछा चुका था, जो कि किसी भी दूसरे देश से काफी अधिक है। वहां प्रति किलोमीटर लगभग 17-21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत आई, जबकि यूरोप में यह 25-39 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी। चीन ने अपनी तकनीकी क्षमता का बेजोड़ इस्तेमाल किया। उसने रेलवे में निवेश किया, सुरक्षा मसलों पर ध्यान दिया और अपेक्षाकृत सस्ती दरों पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाया। इसकी तुलना में, हमारा लक्ष्य है सालाना दो अरब डॉलर खर्च कर 15,000 किलोमीटर हाईवे बनाने का। इसके लिए पूंजी कुछ हद तक पेट्रोल व डीजल पर दो रुपये प्रति लीटर सरचार्ज लगाकर इकट्ठा की जाएगी। साफ है, बड़े स्तर पर सोचने से ही उपाय निकलेगा।
राजस्व में धीमे विकास और उत्तरदायित्वों (पेंशन, पगार और संरक्षण मूल्यों) के बढ़ने से रेलवे अपनी क्षमता बढ़ाने और सुरक्षा व साख सुधारने के लिए जरूरी निवेश करने में असहाय महसूस कर रहा है। देश में सार्वजनिक पूंजी की कमी और व्यावसायिकता तथा सामाजिक उपयोगिता के बीच के पारस्परिक प्रभाव ने अनिश्चितता बढ़ाई है। इससे परिवहन रणनीति भी दिशाहीन हुई। आलम यह है कि परिचालन अनुपात बदतर होता जा रहा है, राजस्व वृद्धि गिरती जा रही है और लागत मूल्य में इजाफा हो रहा है। इसलिए रेलवे निवेश की पूंजी जुटाने में अक्षम है। करीब 340 क्षमता-वृद्धि और नवीनीकरण परियोजनाओं के लिए 1,72,934 करोड़ रुपये की जरूरत है, जबकि हम हर साल सिर्फ 10,000 करोड़ रुपये आवंटित कर पाते हैं।

ऐसे में, तीन उपायों की खास जरूरत है। एक, नई लाइनों, हाई स्पीड रेल, फ्रेट कॉरिडोर, अलग ढुलाई व्यवस्था और अद्र्ध-शहरी नेटवर्क को शामिल करने के लिए एक व्यापक पुनर्निर्माण कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। दूसरा, रेलवे की आमदनी सार्वजनिक निवेश, बाजार से कर्ज लेकर और निजी निवेश को प्रोत्साहित कर स्थिर करने की जरूरत है। तीसरा उपाय यह है कि रेलवे में नीचे से लेकर ऊपर तक कामकाजी रद्दोबदल की जरूरत है। जैसे- निवेश योजनाएं सुधारनी होंगी, प्रोजेक्ट को समय पर लागू करने पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा, मुसाफिरों तथा रेल-संपत्तियों की सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता करनी पड़ेगी।

अब भारत के रेलवे-मानचित्र पर गौर कीजिए। कई मार्गों पर ट्रेनों की आवाजाही अनियमित और असंतुलित है। चार महानगरों को जोड़ने वाले मार्ग कुल रेल-मार्गों के सिर्फ 16 प्रतिशत हैं, लेकिन जहां तक माल ढुलाई और यात्रियों की आवाजाही का सवाल है, तो कई का 100 फीसदी से अधिक इस्तेमाल होता है। जाहिर है, हमें मांग के हिसाब से क्षमता बढ़ानी होगी।

इंजीनियरिंग, इंतजाम व निर्माण परियोजनाओं के जरिये कई कामों को प्राथमिकता दी जा सकती है, जैसे पटरियों का दोहरीकरण, एक पटरी से दूसरी पटरी को जोड़ना और नई पटरियां बिछाना, वगैरह। हाई स्पीड रेल पर भी जोर देने की जरूरत है। इस लिहाज से हाल ही में तैयार दिल्ली-आगरा ट्रायल रन एक स्वागत योग्य पहल है। रेल-मार्गों का नवीनीकरण व विद्युतीकरण, दोनों खास तौर पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में अरसे से बाट जोह रहे हैं। यहां 10,000 किलोमीटर से ज्यादा का काम बाकी है। यही नहीं, पूर्वोत्तर भी भली-भांति रेल से जुड़ने का सामथ्र्य रखता है, लेकिन यह क्षेत्र लंबे समय से केंद्र के वादे के पूरे होने का इंतजार कर रहा है।
नई लाइनों पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिये निजी क्षेत्र परियोजनाओं को आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद बना सकते हैं। रियल इस्टेट व रेलवे स्टेशन का विकास तथा खाली पड़ी हुई जमीनों का व्यावसायिक इस्तेमाल भी संभव है। प्राइवेट इंटर-सिटी ट्रेनों को चलाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। स्वच्छ भारत अभियान की तरह ही रेलवे में भी स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना होगा। आधुनिकतम शौचालयों का प्रबंध किया जाना चाहिए। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी और वल्र्ड बैंक के जरिये प्रतिबद्ध फ्रेट कॉरिडोर को अभी कुछ हद तक अनुदान मिला है। ऐसे कॉरिडोर की बोलियां पीपीपी के तर्ज पर भी लगाई जा सकती हैं। इसके अलावा, ईस्टर्न और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर काम की बारीक निगरानी की जानी चाहिए।

भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) ने लोकोमोटिव, पैसेंजर कोच, फ्रेट वैगन और गार्ड वैन को पट्टे पर देने के अपने अधिकार सीमित कर लिए हैं। जरूरी यह है कि वह रेल-विद्युतीकरण और सिग्नलिंग पर ध्यान दे। इसके अलावा तय परियोजनाओं से अगले पांच साल में 14,000 किलोमीटर के नेटवर्क को बिजली से जोड़ा जा सकता है। बाजार से उधार लेकर और मौजूदा आवंटन से आईआरएफसी इसके लिए पूंजी जुटा सकती है। राज्यों, पीएसयू, पोर्ट कंपनियों और प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर इस क्षेत्र में पूंजी जुटाई जा सकती है।

रेलवे को कुलजमा सुधार-उद्धार की जरूरत है। यह सब निवेश योजना और परियोजनाओं को तरीके से लागू करने पर होगा, जिसमें ज्यादा से ज्यादा जोर क्षमता बढ़ाने पर हो। इंजीनियरिंग के तर्ज पर केंद्रित पुरातन तंत्र को व्यावसायिक तर्ज पर लाने के लिए उसका पुनर्निर्माण जरूरी होता है। यही नहीं, लाभ वाले कई केंद्रों को बनाने से हमारी रेल वैश्विक मानकों पर भी खरा उतरने लगेगी। कई सुधारों के अलावा, रेलवे को समयबद्ध फैसले लेने की दरकार है। इसमें दायित्वों का सांस्थानिक विभाजन भी महत्वपूर्ण है, जिससे मुसाफिर और माल ढुलाई, दोनों पर अलग-अलग विचार संभव हो, तभी जाकर भारत की अर्थव्यवस्था को यह तंत्र आगे ले जाने में मदद करेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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