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इमोशनल अत्याचार

उन्हें लगता कि कोई हमेशा उनकी भावनाएं आहत कर रहा है। हर दिन वह खुद को बेचारा पाते और ऐसा व्यवहार करते, जैसे दुनिया उनके लिए हो ही नहीं। हम-आप भी कहीं न कहीं उन जैसे हैं। हम सबको ऐसा लगता है, जैसे...

इमोशनल अत्याचार
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 25 Sep 2014 08:48 PM
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उन्हें लगता कि कोई हमेशा उनकी भावनाएं आहत कर रहा है। हर दिन वह खुद को बेचारा पाते और ऐसा व्यवहार करते, जैसे दुनिया उनके लिए हो ही नहीं। हम-आप भी कहीं न कहीं उन जैसे हैं। हम सबको ऐसा लगता है, जैसे हमारी भावनाओं की कोई कदर ही नहीं। अमेरिकी लेखक जैक वेल्स कहते हैं, हम उस मोड़ पर हैं, जहां हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती इमोशनल इंटेलीजेंस के मोर्चे पर है। हम जेब से जितने समृद्ध हुए हों, इस मोर्चे पर गरीब ही हुए हैं। वेल्स कहते हैं- आप अपने चाहे में जरा भी बदलाव नहीं चाहते, इससे आपका नुकसान होता है। हमें इस बात के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए कि हमारे खिलाफ भावनात्मक सख्ती हो सकती है। इस सख्ती का सबसे मजबूत पिलर है- आलोचना। पाब्लो नेरूदा अपनी जीवनी में लिखते हैं, आलोचना का सामना मुझे अपनी पहली ही कविता के लिए करना पड़ा। वह भी अपने माता-पिता द्वारा।

पाब्लो कहते हैं कि यह कविता उन्होंने अपनी प्यारी सौतेली मां पर लिखी। कविता जब उन्होंने अपने माता-पिता को दिखाई, तो उन्होंने छूटते कहा, कहां से नकल मारी? पाब्लो ने अपने इस अनपेक्षित और गैरजरूरी आलोचना को एक सीख की तरह लिया। उनके दिमाग में यह बात पैठ गई कि बस काम करते जाएं, आलोचनाएं होंगी और उनमें से ज्यादातर कूड़ेदान में डालने लायक होंगी। तो क्या वह आलोचनाओं की कद्र नहीं करते थे? नहीं, उन्हें कुछ आलोचनाएं उतनी ही प्यारी थीं, जितनी अपनी कविताएं। जरूरत इस बात की है कि हम अपनी आलाचनाओं की जांच करें। अगर वे अज्ञानता या ईष्र्या की वजह से हैं, तो उन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं। पर अगर उनमें आपके लिए कोई सुझाव छिपा हो, तो उसका स्वागत करें। अब्राहम लिंकन अपने खिलाफ लिखी गई बातों की क्लिपिंग रखते थे, जिसमें उस जगह अंडरलाइन किया होता जहां से उन्हें कुछ हासिल करना होता था। क्यों न हम-आप भी ऐसा ही करें?                         

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