फोटो गैलरी

Hindi Newsसत्य ही गांधी का महत्व है

सत्य ही गांधी का महत्व है

बापू ने कहा था- एक व्यक्ति को परिवार की भलाई के लिए, एक परिवार को समाज की भलाई के लिए, एक समाज को नगर की भलाई के लिए, एक नगर को राज्य की भलाई के लिए और एक राज्य को देश की भलाई के लिए उत्सर्ग हो जाना...

सत्य ही गांधी का महत्व है
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 01 Oct 2014 09:37 PM
ऐप पर पढ़ें

बापू ने कहा था- एक व्यक्ति को परिवार की भलाई के लिए, एक परिवार को समाज की भलाई के लिए, एक समाज को नगर की भलाई के लिए, एक नगर को राज्य की भलाई के लिए और एक राज्य को देश की भलाई के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए। अगर जरूरत पड़े, तो एक देश को दुनिया की भलाई के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए।

ये थे महात्मा गांधी के विचार। समय के साथ नई-नई विचारधाराएं पनपीं और उन सबने समाज की सोच-समझ को नए मतलब भी दिए। इनसे देश और दुनिया में कई बड़े बदलाव हुए, सार्थक और निरर्थक, दोनों। लेकिन कुछ नहीं बदला, तो वह सत्य है, वह गांधी के विचार का महत्व है। विश्व शांति की स्थापना के लिए आज इसी सत्य व विचार की आवश्यकता है। इराक, सीरिया जैसे देश आज आतंक के नए और बड़े ठिकाने बन चुके हैं। पाकिस्तान अपने ही आतंकवाद से त्रस्त है। अफगानिस्तान, लीबिया जैसे देश जर्जर हालत में हैं। अमेरिका और भारत जैसे देश आज आतंकवाद के निशाने पर हैं। एक तरह से पूरी दुनिया आतंकवाद समेत कई बुराइयों के खिलाफ घोषित-अघोषित लड़ाई लड़ रही है। कई स्तरों पर ये लड़ाइयां अनिवार्य भी हो गई हैं। भारत को ही देख लें, अपनी सुरक्षा के लिए वह हथियार इकट्ठा करने की दौड़ में शामिल हो चुका है। आज भारत दुनिया में हथियार का बड़ा खरीदार देश है। हम यह कह सकते हैं कि युद्ध एक व्यवसाय बन चुका है और यह हथियारों की मांग और आपूर्ति के खेल पर टिका है। ऐसा नहीं है कि हम या दुनिया युद्ध के विनाशकारी स्वरूप से अनभिज्ञ हैं। याद रहे कि साल 2014 को हम पहले विश्व युद्ध की सौवीं बरसी के तौर पर मना रहे हैं। ऐसे में, महात्मा गांधी के विचार हमें याद हो आते हैं कि व्यक्तिवादी नजरिये से ऊपर उठकर विश्व कल्याण का दृष्टिकोण मानव समाज को अपनाना चाहिए। लेकिन गांधी के बाद के दशकों में जिस खुदगर्ज वैश्विक समाज की हमने स्थापना की है, वहां अपना फायदा प्रमुख है, बलिदान नहीं। जिम्मेदारी की परवाह किसे है, क्या हमें है? अगर होता, तो क्या प्रधानमंत्री को स्वच्छता अभियान को मुकम्मल बनाने के लिए झाड़ू उठाना पड़ता?

अप्रासंगिकता के इस दौर में, पल-पल बदलने वाली दुनिया में, अगर वाकई कुछ प्रासंगिक है, तो वह सिर्फ और सिर्फ गांधी के विचार हैं। किंतु अपने यहां मूर्ति पूजा की संस्कृति है, हम किसी व्यक्ति और भगवान की पूजा तो कर लेते हैं, लेकिन आदर्शों और विचारों का अनुसरण नहीं करते। इसलिए कई कार्यक्रमों में मंचों से मैंने विद्वतजनों के मुंह से यह प्रश्न सुना है कि यदि गांधी आज होते, तो उनके विचार कितने प्रासंगिक होते? मेरा इस अखबार के माध्यम से उनसे सवाल है कि क्या इस संसार को सत्य की जरूरत नहीं? क्या हमारी आत्मा में सत्य नहीं बसता? क्या इंसानियत को बचाए-बनाए रखना जरूरी नहीं है? अगर इन सबका जवाब ‘नहीं’ में आता है, तो यह मान लेना होगा कि गांधी के विचार अप्रासंगिक हो गए हैं। लेकिन यदि आज भी इंसानियत है, आज भी अच्छे और बुरे के बीच फर्क है, तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि महात्मा गांधी के विचार अमिट और शाश्वत हैं। वह और उनके विचार कहीं न दिखें, तो उस आखिरी ताबीज में देखिए, जिसकी बात वह कहा करते थे।

यों तो महात्मा गांधी कहा करते थे कि हालात के साथ विचारों में बदलाव जरूरी है। लेकिन उनका यह भी कहना था कि ‘जो आखिर में लिखा है, वही सत्य है।’ आखिर में तो यही है कि खुद महात्मा गांधी अपने जीवन-काल में सत्य और अहिंसा से नहीं डिगे, परोपकार के रास्ते पर चलते रहे। दक्षिण अफ्रीका में जिस आजादी की नींव उन्होंने रखी, उसको उन्होंने भारत में सींचा और आंखों के सामने फलीभूत भी किया। जब यह सब हो रहा था, तब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के दंश झेल रहा था। जरा फर्क देखिए, उस दूसरे विश्व युद्ध में हथियारों द्वारा मची भीषण तबाही का और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में हिंसा के हथियार का।
 
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को इस बात पर यकीन नहीं होगा कि हाड़-मांस का एक ऐसा जीवित पुतला इस धरती पर था, जिसने अहिंसा को ही अपना अस्त्र बनाया। आइंस्टीन यह समझ गए थे कि आने वाली पीढ़ियों में इतना धैर्य और साहस नहीं होगा कि वे महात्मा गांधी के विचारों पर चल सकें। सचमुच, बापू के परोपकार की विशालता के सामने व्यक्ति, परिवार, समाज, देश, सब छोटे पड़ जाते हैं और विश्व की भलाई की बात मुखर हो आती है। मौजूदा दुनिया को आज इसी की सबसे अधिक जरूरत है।
और यह तभी हो पाएगा, जब आज की पीढ़ी उनके मूल्यों को सही अर्थों में ले। एक उदाहरण देखिए, आज दुनिया भर में गांधी जी से जुड़ी चीजों की नीलामी की होड़-सी लग जाती है। ऐसा क्यों? क्योंकि आज की पीढ़ी को उनके मूल्यों का सही अंदाजा नहीं है। यह पीढ़ी किसी भी सामग्री का आर्थिक मतलब ही निकाल पाती है, जबकि पुरानी पीढ़ी के लिए ये पूजनीय सामग्रियां थीं। अब इन नीलामियों को रोकना किसी सरकार या संस्थान के बस की बात नहीं है, बल्कि वे इनको रोकने की याचना ही कर सकते हैं। ये नीलामियां तभी बंद होंगी, जब महात्मा गांधी के विचारों को वे अपनाएंगे।

यह मुद्दा महत्वपूर्ण है कि कैसे उनके विचारों का प्रचार-प्रसार सही तरीके से सभी जगह हो। मुश्किलें इसमें हजार हैं और खुद महात्मा गांधी कहा करते थे कि हर भले काम के रास्ते में कई रुकावटें आती हैं, पर उनसे घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर अहिंसात्मक तरीके से सत्य के साथ सामना करना चाहिए। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि रोशनी के लिए सूरज का होना ही जरूरी है। उनका मानना था कि अगर आप एक दीया भी जलाएंगे, तो वह अंधेरे में प्रकाश कर देगा। आइए, गांधी के विचारों से सीख लेकर विश्व शांति के मार्ग में हम सब दीये की तरह झिलमिलाएं और उजाला करें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें