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जहां बीतता नहीं इतिहास

दो दिनों से अरावली के कुंभलगढ़-हल्दीघाटी क्षेत्र की धूल छान रहे हैं। कण-कण में जैसे मेवाड़,  राणाप्रताप,  पद्मावती, मीरा के इतिहास का रोमांच छिपा हो। हल्दीघाटी के म्यूजियम में दिखाई जा रही...

जहां बीतता नहीं इतिहास
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 24 Nov 2014 07:59 PM
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दो दिनों से अरावली के कुंभलगढ़-हल्दीघाटी क्षेत्र की धूल छान रहे हैं। कण-कण में जैसे मेवाड़,  राणाप्रताप,  पद्मावती, मीरा के इतिहास का रोमांच छिपा हो। हल्दीघाटी के म्यूजियम में दिखाई जा रही एनिमेशन फिल्म का सूत्रधार कह रहा था- हल्दीघाटी की लड़ाई में सांप्रदायिकता का रंच मात्र न था। अकबर की सेना का सेनापति आमेर का राजा मान सिंह था,  तो राणा प्रताप की सेना का सेनापति था काबुली पठान हकीम खां सूर। इस लड़ाई का आंखों देखा हाल लिखा था अल बदायूनी ने। राणा लड़ाई जीत चुके थे कि अचानक इस खबर ने मुगल सेना में नई जान फूंक दी कि बादशाह खुद रणक्षेत्र में आ गए हैं। फिर भी मान सिंह की सेना में राणा प्रताप का पीछा करने की ताकत नहीं बची थी। मान सिंह अपने अभियान में विफल रहा,  न राणा प्रताप मारे गए,  न पकड़े गए और न ही मेवाड़ पर उनका कब्जा हुआ।

सात महीनों तक मेवाड़ में डेरा डाले बैठा अकबर अपनी राजधानी लौट गया। युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला, सिवाय इसके कि दोनों ओर के 18,000 लड़ाके मारे गए। रणभूमि लाशों से पट गई। अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ में इस लड़ाई के बारे में लिखा है कि ‘दोनों पक्षों के वीरों ने लड़ाई में जान सस्ती और इज्जत महंगी कर दी थी।’ महाभारत की लड़ाई का अंत भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था। तब भी सिवाय लाशों के ढेर के किसी को कुछ हासिल न हुआ था। राणाओं के इस क्षेत्र में रह-रहकर मीरा भी याद आती रही। पद्मिनी और हजारों औरतों के जौहर का इतिहास भी।
अरुण महेश्वरी की फेसबुक वॉल से

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