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तुर्की में आतंकवादी हमला

तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में कमाल अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आतंकवादी हमले से समूचे यूरोप में असुरक्षा की भावना फैल जाना स्वाभाविक है। यूरोप के कई बड़े शहरों में आईएस ने आतंकवादी हमले किए...

तुर्की में आतंकवादी हमला
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Jul 2016 10:27 PM
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तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में कमाल अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आतंकवादी हमले से समूचे यूरोप में असुरक्षा की भावना फैल जाना स्वाभाविक है। यूरोप के कई बड़े शहरों में आईएस ने आतंकवादी हमले किए हैं। पिछले दिनों बेल्जियम के ब्रूसेल्स में हुए आतंकवादी हमले और इस्तांबुल के हमले में कई समानताएं हैं, जिन्हें एक ही आतंकवादी गुट का हाथ होने का प्रमाण माना जा सकता है। दोनों ही हमलों में तीन आतंकी शामिल थे। दोनों ही हमलों में दो आतंकवादियों ने हवाई अड्डे में पहले अंधाधुंध गोलीबारी की, फिर खुद को उड़ा दिया। ब्रूसेल्स में तीसरे आतंकी ने जहां पास के मेट्रो स्टेशन में आत्मघाती विस्फोट किया, वहीं इस्तांबुल में तीसरे आतंकवादी ने पार्किंग लॉट में अपने को उड़ा लिया। जहां समूचा यूरोप ही आतंकवादी हमलों की आशंका से जूझ रहा है, वहां तुर्की विशेष रूप से असुरक्षित है। तुर्की यूरोप और एशिया की सीमा पर है और वह दोनों के बीच आवाजाही का केंद्र है। उसकी सीमाएं इराक और सीरिया से मिलती हैं, जहां काफी हिस्सों में इस्लामिक स्टेट का राज है। सीरिया और इराक से यूरोप जाने वाले शरणार्थी भी तुर्की के रास्ते ही जाते हैं और इन शरणार्थियों के बीच मुमकिन है कि कुछ आतंकवादी भी हों। इस वजह से तुर्की में पहले भी कई आतंकवादी हमले हो चुके हैं।

तुर्की की आंतरिक स्थिति बहुत शांतिपूर्ण नहीं है और इसमें वहां की मौजूदा सरकार की भी बड़ी भूमिका है। तुर्की के दक्षिण पूर्वी इलाके में कुर्द बसते हैं और कुर्दों से सरकार के संबंध ठीक नहीं हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगान ने पहले इस्लामिक स्टेट के खतरे का मुकाबला करने की बजाय उसे अपने फायदे में इस्तेमाल करने की कोशिश की और उसे बढ़ावा दिया। एर्दोगान ने कमाल अतातुर्क के जमाने से चली आ रही धर्मनिरपेक्ष राजनीति को इस्लामी रंग दिया और सुन्नी इस्लामी दुनिया का नेता बनने की महत्वाकांक्षा पाली। इसीलिए सीरिया में बशर असद की शिया सरकार के खिलाफ लड़ने वाले तमाम गुटों को उन्होंने मदद की। उन्हें यह भी लगता था कि ये गुट कुर्दों से लड़ रहे हैं, इसलिए उनके लिए फायदेमंद हैं। इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वाले ज्यादातर विदेशी नौजवान तुर्की के रास्ते ही सीरिया और इराक जाते थे। तुर्की की सरकार ने उन्हें रोकने की गंभीर कोशिश कभी नहीं की। कहा जाता है कि एर्दोगान उम्मीद कर रहे थे कि इस रणनीति से वह सुन्नी इस्लामी नेतृत्व को सऊदी अरब से छीन तुर्की की ओर ले आएंगे, जहां कई सदियों पहले खिलाफत मौजूद थी, जिसे कमाल अतातुर्क ने खत्म किया था। बदली स्थितियों में और शरणार्थियों की बाढ़ की वजह से एर्दोगान को अपना रवैया बदलना पड़ा और इस्लामिक स्टेट भी उनका दुश्मन हो गया।

इस हमले का अर्थ यह नहीं है कि इस्लामिक स्टेट की ताकत बढ़ी है, बल्कि यह है कि वह कमजोर हो रहा है। सीरिया और इराक में उसे लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। उसके कब्जे की जमीन भी निकल रही है और उसकी आय के जरिये भी बंद हो रहे हैं। इसी वजह से वह यूरोप में सनसनीखेज आतंकवादी हमले करके प्रासंगिक बने रहने की कोशिश कर रहा है। इसका मतलब यह भी है कि वह जैसे-जैसे कमजोर होगा, ऐसे हमलों की आशंका और बढ़ जाएगी। दुनिया के कई देशों में इस्लामिक स्टेट के समर्थक मौजूद हैं और बौखलाहट में वे खतरनाक हमले कर सकते हैं। इसलिए इस वक्त दुनिया के सभी देशों को अपनी सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए और आपसी सहयोग भी बढ़ाना चाहिए। हो सकता है कि आने वाला वक्त ज्यादा चुनौती भरा हो।
 

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