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तमिल राजनीति की पटकथा

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में हुई बहस का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसा जवाब दिया, वह बहुत दिलचस्प भी था और उसमें ऐसे तत्व भी थे कि उसे विवादास्पद ठहराया जा सकता था। लेकिन मीडिया में इस भाषण...

तमिल राजनीति की पटकथा
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 08 Feb 2017 11:46 PM
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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में हुई बहस का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसा जवाब दिया, वह बहुत दिलचस्प भी था और उसमें ऐसे तत्व भी थे कि उसे विवादास्पद ठहराया जा सकता था। लेकिन मीडिया में इस भाषण की चमक कुछ ही देर रही, रात होते-होते सारी सुर्खियां तमिलनाडु के कामचलाऊ मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम ने बटोर लीं। अभी दो दिन पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पार्टी की सर्वेसर्वा बन चुकीं शशिकला के लिए रास्ता साफ किया था। इसके लिए सोशल मीडिया पर उनका खासा मजाक भी उड़ाया जा रहा था। इसलिए कल रात जब उनके जयललिता की समाधि पर जाकर ध्यान लगाने की खबरें आईं, तो हर किसी को हैरत हुई। पनीरसेल्वम के पूरे करियर को देखते हुए किसी को उनसे बगावत की उम्मीद नहीं थी। और ध्यान लगाने या उसका अभिनय करने के बाद उठकर जब उन्होंने वहां मौजूद मीडिया के सामने मुंह खोला, तो पता चला कि बगावत हो चुकी है। ऐसी बगावत, जिसकी कुछ मिनट पहले तक किसी को भनक भी नहीं लग सकी थी। यह ठीक है कि पार्टी के कुछ कोनों से शशिकला के विरोध की खबर आ रही थी। पार्टी के एक सांसद जयललिता के निधन पर शशिकला की भूमिका की जांच की भी मांग कर रहे थे। मगर पनीरसेल्वम ऐसा कुछ करेंगे, यह ज्यादातर लोगों की कल्पना से परे था। पनीरसेल्वम ने यहां तक कहा कि अगर पार्टी चाहेगी, तो वह अपना इस्तीफा वापस लेने को तैयार हैं। यह बात अलग है कि तब तक उनका इस्तीफा स्वीकार हो चुका था। उन्होंने कामचलाऊ मुख्यमंत्री की हैसियत से जयललिता के निधन की जांच कराने का आदेश दे दिया। उधर शशिकला का खेमा भी सक्रिय हुआ। आनन-फानन में पार्टी के ज्यादातर विधायक और पदाधिकारी पोएस गार्डन पहुंच गए और पनीरसेल्वम को पार्टी कोषाध्यक्ष पद से निकाल बाहर किया गया। विधायकों को अब एक होटल में भेज दिया गया है, ताकि उन्हें तोड़ने की कोशिश न हो। 

वैसे तोड़ना इतना आसान भी नहीं है। अन्नाद्रमुक के पास विधानसभा में ठीक-ठाक बहुमत है। अभी जो स्थितियां हैं, उनमें विभाजन के लिए पनीरसेल्वम को कम से कम 45 विधायक जुटाने होंगे, जो आसान नहीं है। छोटी-मोटी तोड़-फोड़ वह भले ही कर लें, लेकिन इससे किसी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। इस बीच शशिकला खेमा उन्हें जल्द से जल्द मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए बेताब दिख रहा है, पर राज्यपाल प्रदेश में नहीं हैं और वह कब लौटेंगे, इसकी किसी को कोई खबर नहीं है। उनकी अनुपस्थिति इस आशंका को भी विस्तार दे रही है कि यह पटकथा बड़े स्तर पर कहीं और तो नहीं लिख जा रही है? एक दूसरी सोच यह है कि हफ्ते भर में सुप्रीम कोर्ट शशिकला के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले पर अपना फैसला देगा, राज्यपाल तब तक इंतजार करना चाहते हैं।

पिछले दो विधानसभा चुनावों में जयललिता ने साबित कर दिया था कि वह तमिलनाडु की सबसे बड़ी नेता हैं। उनके अचानक चले जाने ने व्यक्ति आधारित हमारी राजनीति की कमियों को भी सामने ला दिया है। अगर पार्टी के सर्वेसर्वा का कोई स्पष्ट वारिस नहीं है, तो उसके अचानक विदा हो जाने का अर्थ है, राजनीति का षड्यंत्रों के हवाले हो जाना। देश की कई दूसरी पार्टियों की तरह अन्नाद्रमुक भी ऐसी पार्टी नहीं रही कि उसके निचले स्तर के कार्यकर्ता अपना नेता चुनते हों। उल्टे जनता के बीच छवि स्थापित करने वाला नेता ही अपने निचले स्तर के नेता और कार्यकर्ता भी चुनता है। यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विचारधारा से ज्यादा बड़ी चीज वफादारी होती है। पनीरसेल्वम और शशिकला, दोनों इसी प्रक्रिया की उपज हैं। 

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