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मुल्ला मंसूर की मौत

तालिबान के मुखिया मुल्ला अख्तर मंसूर का अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा जाना कई तरह से महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान ने अपनी सीमा के अंदर अमेरिकी ड्रोन हमले का कड़ा विरोध किया है, हालांकि यह देखना होगा कि यह...

मुल्ला मंसूर की मौत
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 23 May 2016 09:49 PM
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तालिबान के मुखिया मुल्ला अख्तर मंसूर का अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा जाना कई तरह से महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान ने अपनी सीमा के अंदर अमेरिकी ड्रोन हमले का कड़ा विरोध किया है, हालांकि यह देखना होगा कि यह विरोध किस हद तक जाता है। यह हमला अमेरिकी रणनीति में भी बदलाव का सूचक है।

लंबे वक्त से अमेरिका, पाकिस्तान के सहयोग से अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच समझौते का समर्थन कर रहा था। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी इसीलिए पाकिस्तान सरकार, सेना और आईएसआई के साथ सहयोग की नीति अपनाई थी। लेकिन न तो तालिबान ने, और न ही पाकिस्तान ने किसी किस्म के समझौते में सचमुच दिलचस्पी दिखाई। कहा जाता है कि पाकिस्तान की रणनीति यह थी कि समझौते के प्रयास से जब अमेरिका थक जाए और अफगानिस्तान से लौट जाए, तब वहां तालिबान की कठपुतली सरकार स्थापित की जाए। मुल्ला मंसूर पर अमेरिकी हमला यह दिखाता है कि अमेरिका को तालिबान से फिलहाल कोई उम्मीद नहीं है।

इसके साथ ही पहली बार अमेरिकी ड्रोन हमला बलूचिस्तान में हुआ है, जो अफगान तालिबान का सुरक्षित ठिकाना है। अब तक सारे ड्रोन हमले उत्तरी व दक्षिणी वजीरिस्तान के कबाइली इलाकों में होते रहे हैं, पहली बार कबाइली इलाकों के बाहर अमेरिका ने हमला किया है। हो सकता है कि अमेरिका ने सचमुच पाकिस्तान सरकार व सेना को इसकी जानकारी पहले न दी हो, लेकिन एक राय यह भी है कि पाकिस्तान को जानकारी पहले दी गई हो और उसका विरोध सिर्फ रस्म-अदायगी भर हो। यह भी हो सकता है कि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान ने ही अमेरिका को मुल्ला मंसूर के बारे में जानकारी दी हो। ओसामा बिन लादेन की मौत के बारे में भी इस तरह की बातें की जाती रही हैं कि तब भी पाकिस्तानियों ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों को जानकारी दी थी।

मुल्ला मंसूर के पहले तालिबान के मुखिया रहे मुल्ला उमर की मौत पाकिस्तानी अस्पताल में प्राकृतिक कारणों से हुई बताई जाती है। एक तालिबान गुट का दावा था कि मुल्ला अख्तर मंसूर और मुल्ला गुल आगा ने मुल्ला उमर की हत्या की थी। यह भी कहा जाता है कि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान को यह लग रहा था कि मुल्ला उमर पूरी तरह उनके इशारे पर नहीं चल रहा है, इसलिए उसने मुल्ला उमर की हत्या में सहयोग किया।

अब मुल्ला मंसूर के बारे में भी कहा जा रहा है कि वह कुछ ज्यादा ही स्वायत्त हो गया था, जो पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को पसंद नहीं था। हो सकता है कि अब सिराजुद्दीन हक्कानी या मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब तालिबान का नेता बने। ये दोनों पाकिस्तानी सेना के विश्वसनीय माने जाते हैं। यह भी मुमकिन है कि तालिबान में नेतृत्व के लिए विभिन्न गुटों में संघर्ष हो, लेकिन पाकिस्तानी सेना की मदद की वजह से  हक्कानी या मुल्ला याकूब के आखिरकार जीतने की संभावना है।

तालिबान जैसे हिंसक और गुटों में बंटे संगठन पर नियंत्रण आसान नहीं है। अक्सर उसके नेता पाकिस्तानी सेना के आदेशों को नहीं भी मानते। दूसरी ओर, अमेरिका अपने तालिबान विरोधी अभियान को ज्यादा तेज कर रहा है और चीन भी पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है कि वह आतंकवादी गिरोहों को नियंत्रित करे, क्योंकि ग्वादर बंदरगाह से चीन तक जो आर्थिक राजमार्ग बनना है, उसकी सुरक्षा का ख्याल चीन को है। जो भी हो, मुल्ला मंसूर की मौत तालिबान के लिए एक झटका जरूर है, लेकिन अब भी अफगानिस्तान का भविष्य उतना ही अनिश्चित बना हुआ है।

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